Home Film Review Detail Review: ‘खाकी: द बिहार चैप्टर’ में कहानी देखी हुई है, लेकिन...

Detail Review: ‘खाकी: द बिहार चैप्टर’ में कहानी देखी हुई है, लेकिन सीरीज दमदार है

141
0
Advertisement

खाकी वर्दी का रंग निराला ही होता है. फिल्मों में कई बार खाकी का महिमा मंडान कुछ इस तरीके से किया जाता है कि वे सुपरहीरो से भी ज़्यादा कुछ नज़र आते हैं. असल जिंदगी में जब कोई खाकी वर्दी धारी अपने अनुभवों को समेट कर किताब की शक्ल में ढालने की कोशिश करता है तो उसे इस बात का ख़ास ख्याल रखना पड़ता है कि वो भावनाओं में न बहकर तथ्यों को प्रस्तुत करता रहे. बिहार के आईपीएस ऑफिसर अमित लोढ़ा ने शेखपुरा जिले में पैदा हुए, फले फूले और फिर अमित द्वारा ध्वस्त किये गए माफिया साम्राज्य की कहानी को अपनी किताब ‘बिहार डायरीज : द ट्रू स्टोरी ऑफ़ हाउ बिहार’स मोस्ट डेंजरस क्रिमिनल वाज़ कॉट में कैद किया है.

किताब मनोरंजन की दृष्टि से लिखी नहीं गयी थी और ना ही अमित को किस्सागो हैं जो इस पूरे प्रकरण को रसभरे अंदाज़ में प्रस्तुत करते. किताब ठीक ही लिखी गयी थी और इतनी ज़्यादह चली भी नहीं थी. इस किताब पर नीरज पांडे (अ वेडनेसडे, अय्यारी, एमएस धोनी और स्पेशल ऑप्स) ने एक सीरीज का निर्माण किया है. भव धुलिया के निर्देशन में बनी इस वेब सीरीज का नाम है खाकी फाइल्स – द बिहार चैप्टर.

अमित लोढ़ा एक दिलचस्प पुलिस ऑफिसर हैं. शर्मीले हैं. कम बोलते थे. पुलिस की वर्दी बहुत पसंद थी मगर जाने की हिम्मत नहीं थी तो आईआईटी क्लियर कर लिया. वहां भी दोस्ती नहीं कर पाए और एक घुन्ना शख्स बनकर पढ़ते रहे. पार्टियों से दूर, मस्ती से दूर अजीब से आदमी. फिर आईआईटी के बाद यूपीएससी की परीक्षा निकाली और पुलिस लाइन में आ गए. यहां उनकी शख्सियत को लगे कई रंग जिसमें सबसे गहरा था अपने क्षेत्र के लोगों के साथ निजी संपर्क. मात्र 25 साल की उम्र में नालंदा के एसपी और फिर मुजफ्फरपुर के एसएसपी बन गए. अमित को पुलिस के नौकरी भा गयी और इसलिए जब उन्हें शेखपुरा जिला में पोस्ट किया गया तब उन्होंने शेखपुरा के गब्बर सिंह कहे जाने वाले पिंटू महतो के साम्राज्य का ख़त्म कर के उसे गिरफ्तार किया.

उनकी किताब पर नीरज पांडेय की वेब सीरीज काफी अच्छी बन गयी है. इसके निर्देशक हैं भव धुलिया जिन्होंने इसके पहले ज़ी5 की बहु चर्चित वेब सीरीज रंगबाज़ का पहला सीजन निर्देशित किया था. कुख्यात गैंगस्टर श्री प्रकाश शुक्ल के जीवन पर आधारित रंगबाज़ के पहले सीजन में साकिब सलीम, तिग्मांशु धुलिया, रणवीर शौरी, आहना कुमरा जैसे मंजे हुए कलाकार थे. तिग्मांशु धुलिया के पुत्र होने के नाते भव को काम आना तो चाहिए लेकिन उनकी दीक्षा पान सिंह तोमर, शागिर्द, फ़ोर्स, दृश्यम जैसी फिल्मों में असिस्टेंट डायरेक्टर बन कर ही हुई. भव, स्वर्गीय निर्देशक निशिकांत कामत के कई समय तक असिस्टेंट बन कर काम सीखते रहे. प्रेजिडेंट अवार्डी अमित लोढ़ा की 2016 की किताब पर उन्हें वेब सीरीज बनाने का मौका, उनका काम देख कर नीरज पांडेय ने दिया था.

Advertisement

वेब सीरीज मसालेदार है, और पूरी तरह से एंटरटेनमेंट का ख्याल रखते हुए बनायी गयी है. इसमें क्राइम के पीछे की असल कहानी पर कम फोकस रखा गया है, ज़्यादातर मसला पुलिस की सक्षमता का ही दिखाया गया है. किताब में भी अमित सिर्फ अपनी बात कहते हैं और इस सीरीज में भी ऐसा ही हुआ है. एक तरीके से अच्छा भी है क्योंकि सीरीज इस वजह से बोझल होने से बच गयी और लोगों को देखने में इंटरेस्ट भी आया है. कहानी चूंकि असली है इसलिए कई बातों पर यकीन किया जा सकता है लेकिन अमित लोढ़ा जैसे आइपीएस को पिंटू महतो जैसे निम्न दर्ज़े के क्रिमिनल के पीछे स्वयं पड़ना थोड़ा ज़्यादा लगा है. अमित के साथ कोई और साथी भी नहीं दिखाए गए हैं जिनका कोई खास कंट्रीब्यूशन रहा हो. जानबूझ कर है या अनजाने में ये तो निर्माता निर्देशक ही जाने. वो तो भला हो कि बीच सीजन में अभिमन्यु सिंह का किरदार आ गया वरना तो ये सीरीज सिंगल हीरो सीरीज ही नज़र आती.

अमित लोढ़ा की भूमिका में है करण टैकर जिनके जीवन का ये अत्यंत महत्वपूर्ण रोल है. उन्होंने इसे निभाया भी बहुत अच्छे से है. करण पहले नीरज पांडेय की डिज्नी+हॉटस्टार वाली सीरीज स्पेशल ऑप्स में काम कर चुके हैं. यहां उन्हें काफी बड़ा रोल मिला है. इतने सीधे और इतने कानून पसंद, नैतिकता के पुजारी के किरदार में करण थोड़े अजीब लगे हैं. उनकी पत्नी के किरदार में निकिता दत्ता हैं जो बहुत सुन्दर हैं और पूरी सीरीज में पार्श्व में हैं और महत्वपूर्ण बनी हुई हैं. निकिता दत्ता को ज़ुबीन नौटियाल की पत्नी कहने वालों को के लिए ये सीरीज एक अच्छा जवाब हो सकती है. चन्दन महतो का रोल कर रहे हैं अविनाश तिवारी. एक सामान्य टटपूंजिये से शुरू कर के, जेल में अपने ही गुरु को ख़त्म कर के गैंगस्टर बन बैठने वाले चन्दन की भूमिका अच्छी तो निभाई है लेकिन अविनाश तिवारी के अभिनय में अभी नए आयाम आये नहीं है इसलिए उनका अभिनय उथला है. विनय पाठक, जतिन सरना, ऐश्वर्या सुष्मिता, अभिमन्यु सिंह भी ठीक ठीक लगे हैं. रवि किशन और आशुतोष राणा के स्क्रीन पर आते ही सीन की रंगत बदल जाती है.

तथ्यों पर बवाल संभव नहीं है लेकिन कहानी की नाटकीयता पर ज़रूर सवाल खड़े किये जाएंगे. नीरज पांडेय और उमाशंकर सिंह ने मिलकर पटकथा लिखी है इसलिए हर बात को समझाने का तरीका नीरज की फिमों की तरह लम्बा है. हर सीन काफी डिटेल में लिखा गया है और इस वजह से 90 के दशक से काम कर रहे सिनेमेटोग्राफर हरि नायर ने भी बड़े सीन शूट किये हैं. बिहार प्रदेश का अपना कोई रंग नहीं है और इसलिए बिहार की घटना पूरे देश में कहीं भी हो सकती है. हरि के पास मौका था कुछ नया करने का जो उन्होंने किया नहीं. एडिटर के. प्रवीण के पास भी भरपूर मात्रा में फुटेज था इसलिए उन्होंने भी छोटे सीन बनाने की ज़हमत नहीं ली.

खाकी: द बिहार चैप्टर की समस्या में शामिल है मुख्य किरदार को शराफत का पुतला बनाने की कोशिश करना. ये बात और मौजूं इसलिए हो जाती है क्योंकि सीरीज रिलीज़ होने के बाद, इसके पेमेंट को लेकर अमित लोढ़ा पर केस चल रहा है. उन्होंने आईपीएस रहते हुए सौदा किया था और उसका नाजायज़ फायदा उठाया था ऐसा इलज़ाम है. कितना सच और कितना झूठ है ये तो समय बता ही देगा. दर्शकों को वेब सीरीज देख लेनी चाहिए. एक तो बहुत दिनों बाद बिहार की पृष्ठभूमि पर कुछ आया है और काफी हद तक अच्छा बन गया है.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

टैग: समीक्षा, वेब सीरीज

(टैग्सटूट्रांसलेट)विस्तार समीक्षा(टी)खाकी द बिहार चैप्टर(टी)वेब सीरीज(टी)खाकी द बिहार चैप्टर डिटेल रिव्यू(टी)खाकी द बिहार चैप्टर रिव्यू(टी)वेब सीरीज खाकी द बिहार चैप्टर

Source link

Previous articleREVIEW: सिर्फ 3 एपिसोड में ही आपको गिरफ्त में ले लेती है तमिल वेब सीरीज ‘फॉल’
Next articleDetail Review: जिंदा होने का एहसास करना हो तो ‘नजर अंदाज’ को नजर अंदाज न करें

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here