‘कार्टर’ फ़िल्म समीक्षा: दक्षिण कोरिया की फिल्मों के हिंदी रीमेक बनते रहे हैं. कभी अच्छे तो कभी बहुत ही घटिया. कोरियाई फिल्मों में कहानी शायद उतनी अच्छी न भी होती हो उसे बनाने के लिए स्टाइल एकदम अलग ही होती है, खासकर एक्शन फिल्मों में. चाहे ओल्ड बॉय हो या ट्रेन टू बुसान, कोरियन फिल्मों में एक्शन की एक खास वजह होती है सिर्फ हीरो सबकी धुलाई करता फिरेगा ऐसा नहीं होता. कहानी की रूप रेखा के हिसाब से एक्शन, कहानी का हिस्सा बनती है.

इस एक्शन में नवीनता होती है. न सिर्फ नए किस्म के स्टंट होते हैं बल्कि उन्हें फिल्माने के लिए नए किस्म के कैमरा के साथ-साथ नई-नई तकनीकों का भी इस्तेमाल होता है. हाल ही में नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई दक्षिण कोरिया की फिल्म “कार्टर” में एक्शन के लिए ड्रोन और क्रोमा स्क्रीन के साथ साथ लाजवाब विजुअल इफेक्ट्स का इस्तेमाल किया गया है. करीब सवा दो घंटे की ये फिल्म, एक्शन फिल्म पसंद करने वालों के लिए एक स्वर्ग है. मार्शल आर्ट्स को ड्रोन कैमरा की मदद से पूरे 360 डिग्री पर शूट किया गया है, जिससे एक्शन देखने वालों का कलेजा हलक में पहुंच जाता है. अगर आप नॉनस्टॉप एक्शन फिल्मों के दीवाने हैं तो कार्टर देखना न भूलें.

कार्टर की कहानी थोड़ी कन्फ्यूजिंग है. कार्टर दरअसल एक सीआईए का लापता एजेंट माइकल बेन है जो सीरिया के एक मिशन के दौरान मरा हुआ मान लिया गया था. दक्षिण कोरिया की राजधानी सीओल के एक होटल में कार्टर की आंखें खुलती है तो उसे कुछ याद नहीं होता लेकिन उसके कान में एक लड़की की आवाज़ आती रहती है जो उसे डॉक्टर जुंग को ढूंढने के लिए कहती है. कार्टर को कुछ भी याद नहीं है. धीरे-धीरे उसे समझ आता है कि अमेरिका और दक्षिण कोरिया में एक भयानक वायरस ने करोड़ों लोगों की जान ले ली है और डॉक्टर जुंग के पास उस वायरस का इलाज है क्योंकि डॉक्टर जुंग ने अपनी बेटी के ऊपर उस एंटीवायरस का इस्तेमाल किया था और वो ठीक हो गयी थी.

कार्टर के हर रास्ते में कई बाधाएं होती है, जिसमें दक्षिण कोरिया, सीआईए, और नॉर्थ कोरिया की सरकार शामिल है. कार्टर किसी तरह से डॉक्टर जुंग की बेटी को बचा लाता है और जब वो उसे उसके गंतव्य तक पहुंचा देता है तो उसके दिमाग में फिट ट्रांसमीटर निकल दिया जाता है जिस से उसकी याददााश्त वापस आ जाती है. तब उसे पता चलता है कि उसकी बेटी को भी इसी खतरनाक वायरस का इन्फेक्शन हो चुका है और उसकी जान बचाने के लिए उसे डॉक्टर जुंग को ढूंढकर एंटी वायरस लेना ही है. फिर नार्थ कोरिया के एक जनरल से उसकी लड़ाई होती है जो दरअसल कार्टर का गलत इस्तेमाल कर रहा होता है. कार्टर भरी लड़ाई के बाद अपनी पत्नी, अपनी बेटी, डॉक्टर जुंग और उनकी बेटी के साथ चीन की एक ट्रेन में जा पहुंचता है. आखिरी लड़ाई में अपने सभी दुश्मनों का खत्म कर के कार्टर जैसे ही चैन की सांस लेता है, आगे का पुल ध्वस्त हो जाता है और ट्रेन उसमें गिर जाती है.

कार्टर का किरदार निभाया है जू वोन ने. इस रोल की तैयारी में उन्होंने घंटो पसीना बहाया है. उन्होंने इसके पहले इस तरह की एक्शन फिल्मों में कोई किरदार नहीं निभाया था. उन्हें गुड डॉक्टर नाम की एक टेलीविज़न सीरीज में उनके किरदार के लिए बेहद प्रसिद्धि और कई अवॉर्ड्स मिले थे. कार्टर उनके लिए एकदम ही अलग किस्म का रोल है. इसमें उन्हें लगातार एक्शन में लगे रहना था और उसके लिए शारीरिक और मानसिक रूप से खुद को तैयार करना था. जू ने ये किरदार क्या लाजवाब निभाया है. इस तरह की सम्पूर्ण एक्शन, फिल्मों में कार्टर को किल बिल जैसी फिल्मों की श्रेणी में ला खड़ा करता है.

खून पानी की तरह बहाया गया है, यहां तक कि एक बाथ-हाउस में कार्टर कम से कम 5 दर्जन मार्शल आर्टिस्ट की धुलाई कर के किसी का सर फोड़ देता है तो किसी का हाथ तोड़ देता है और हंसिये जैसे चाकू से गर्दन काट देता है. एक्शन इस फिल्म की विशेषता है और ये एक्शन एक उद्देश्य से दिखाई गयी है. चूंकि कार्टर एक लड़ाका है और सीआईए द्वारा विशेष रूप से प्रशिक्षित भी, उसकी एक्शन का तरीका बड़ा ही अलग सा है. कुछ एक्शन सीक्वेंस तो एकदम वीडियो गेम की तरह नज़र आते हैं. कई जगह एक्शन, कहानी पर भारी भी पड़ गयी है और इसलिए दर्शक थोड़ी देर सांस लेना चाहते हैं लेकिन तब भी एक्शन ख़त्म नहीं होती.

क्लाइमेक्स में ट्रेन और हेलीकाप्टर के चेज़ सीक्वेंस बहुत ही कमाल तरीके से फिल्माए गए हैं. इसमें कंप्यूटर ग्राफ़िक्स का इस्तेमाल नहीं किया गया है इसलिए ये स्टंट्स और खतरनाक हो जाते हैं. बिना हथियारों की लड़ाई से लेकर स्नाइपर राइफल से दसियों मीटर दूर बैठे टारगेट पर निशाना लगाने तक के सभी स्टंट्स को ड्रोन कैमरा की मदद से फिल्माया गया है इसलिए यदि आप ये फिल्म बड़े टेलीविज़न पर देखेंगे तो हो सकता है कि आपका सर घूमने लग जाये.

इस तरह की एक्शन बहुत कम देखने को मिलती है इसलिए बॉर्नस्टंट और आंद्रेआस फ़्रोंक की ख़ास तारीफ करनी चाहिए की उन्होंने इस फिल्म की कहानी और आत्मा को पूरा पूरा एक्शन में सलीके से ढाला है. छोटे छोटे गलियारों में कॉम्बैट में खासकर जू ने अपनी शारीरिक क्षमता से परे हो कर स्टंट किये हैं. उनका गेटअप भी कुछ इस तरह का है कि वे इन दृश्यों में सहज नज़र आते हैं. लगातार मारधाड़ होने से दर्शकों को थकान हो सकती है क्योंकि जब कार्टर की याददाश्त वापस आ जाती है तो कहानी की रफ़्तार अचानक की धीमी हो जाती है लेकिन तब तक लगातार एक्शन देखते रहना एक कठिन काम है.

कार्टर में हिंसा ही कहानी है और कहानी में सिर्फ हिंसा है लेकिन हिंसा को न्यायोचित ठहराने का पूरा इंतज़ाम किया गया है. फिल्म जू के एक्शन की वजह से देखने लायक बनी है और इसे ज़रूर देखना चाहिए यदि आपको एक्शन फिल्मों में मज़ा आता है तो.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

टैग: छवि समीक्षा

Source link

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *