‘ऑपरेशन रोमियो’ फिल्म समीक्षा: नेटफ्लिक्स पर हाल ही में रिलीज़ की गयी फिल्म ‘ऑपरेशन रोमियो’ एक अबूझ पहेली की तरह है. अबूझ इसलिए कि फिल्म की कहानी मुंबई में घटती है और मुंबई में जगह कम होने की वजह से प्रेमी युगल अक्सर ऐसी जगहें तलाश करते रहते हैं जो उन्हें थोड़ा सुकून दे और थोड़ा एकांत दे. प्रेमी युगलों को मुंबई में कोई भी परेशान नहीं करता. पुलिस भी उनसे बड़ी विनम्रता और अदब से पेश आती है और यदि पुलिस को उन्हें भगाना भी होता है तो वो उन्हें साफ़ शब्दों में कहकर जाने के लिए कह देती है और युगल भी पुलिस की बात मान कर वहां से चले जाते हैं और कोई और जगह तलाश कर लेते हैं.

ऑपरेशन रोमियो में ऐसा कुछ नहीं होता. मुंबई का रहने वाला एक शख्स अपनी गर्लफ्रेंड के साथ एक हॉस्पिटल की पार्किंग में अपनी कार में बैठा होता है, उसे पुलिसवाले आ कर परेशान करने लगते हैं और पैसे ऐंठने लेते हैं. ये मुंबई में नहीं होता है. इसलिए ऑपरेशन रोमियो जो कि एक मलयालम फिल्म ‘इश्क़’ की रीमेक है, समझ के बाहर हो जाती है.

आदित्य शर्मा (सिद्धांत गुप्ता) अपनी गर्लफ्रेंड नेहा (वेदिका पिंटो) का बर्थडे सेलिब्रेट करने के लिए अंधेरी से मुंबई के साउथ मुंबई इलाके में ड्राइव पर जाता है. एक हॉस्पिटल की पार्किंग में गाड़ी खड़ी कर के वे दोनों किस करने ही वाले होते हैं कि वहां मंगेश जाधव (शरद केलकर) और पाटिल (किशोर कदम) नाम के दो शख्स आ जाते हैं जो उनका वीडियो बना लेते हैं और फिर उन्हें धमकाने लगते हैं. रात का समय है आदित्य और नेहा घबरा जाते हैं और इसका फायदा उठा कर मंगेश और पाटिल उनसे पैसे ऐंठ लेते हैं.

जब आदित्य एटीएम से पैसे निकाल रहा होता है मंगेश कार के अंदर घुसकर नेहा से बदतमीज़ी करने लगता है. जैसे तैसे पैसे देकर मामला रफा दफा होता है और आदित्य अपनी गाड़ी से नेहा को उसके होस्टल छोड़ने जाता है जहां नेहा उसका अपमान कर देती है. दोनों के बीच बात मुलाक़ात बंद हो जाती है और आदित्य, नेहा के फ़ोन भी नहीं उठता. आदित्य कुछ दिन बाद फिर उसी हॉस्पिटल की पार्किंग में जाता है तो उसे पता चलता है कि मंगेश पुलिसवाला नहीं है बल्कि एक एम्बुलेंस ड्राइवर है और पाटिल एक टेलर है.

आदित्य मंगेश के घर पहुंच के उसकी पत्नी और बेटी के साथ भी ऐसा ही कुछ करता है जिस से मंगेश भड़क उठता है और दोनों के बीच मारपीट होती है लेकिन आदित्य उसे पीट देता है और उसकी असलियत उसकी पत्नी के सामने रख देता है. आदित्य वहां से निकल कर नेहा को लेकर बाहर घूमने जाता है, जहां उसकी डिक्की में पाटिल बंद होता है. पाटिल नेहा से माफ़ी मांगता है. आदित्य नेहा को प्रपोज़ करने लगता है लेकिन नेहा उसे इनकार कर देती हैं.

विचित्र बातों में मुंबई में इस तरह का किस्सा होना ज़रा असंभव है ये पहली बात है. पुलिस वाले वहां बिना बात के किसी को परेशान करते हैं, ऐसे किस्से अब नहीं होते. जो अबूझ पहेली और थी वो ये थी कि आमतौर पर कोई भी लड़का अपनी गर्लफ्रेंड को प्रपोज़ करने के लिए लॉन्ग ड्राइव तो कर सकता है, लेकिन उसके लिए वो हॉस्पिटल की खाली पार्किंग नहीं चुन सकता. सामान्य तौर पर किसी रेस्टोरेंट या किसी रोमांटिक जगह पर इस काम को अंजाम दिया जाता है. नेहा राजस्थान से है और उसके परिवार वाले काफी परम्परावादी हैं और वो अपनी लड़की के बारे में चिंतित रहते हैं.

नेहा को मुंबई की आज़ादी तो पसंद है लेकिन वो कार में किस करने के लिए क्यों तैयार हो जाती है ये समझ नहीं आता. आदित्य की बहन की शादी है और इन सबके बीच उसे गर्लफ्रेंड को प्रपोज़ करना कैसे याद रहता है? शरद केलकर पुलिस वाला होने का नाटक करता है और आदित्य को धमकाता है और आदित्य डर भी जाता है. संस्कृति के ठेकेदार या मॉरल पुलिस, मुंबई में इस तरह से व्यव्हार करती हुई कभी नज़र नहीं आती. मुंबई में पुलिस से उल्टा सवाल पूछने की आदत होती है सभी की. प्रत्येक मुंबई वासी इतनी मराठी तो जानता ही है कि वो मामले को सेटल कर सके.

ये कहानी किसी और शहर में होती तो बढ़िया लगती. किशोर कदम को आदित्य टेलर की दुकान से उठाकर अपनी गाडी की डिक्की में कैसे डाल लेता है. आदित्य जब शरद केलकर के घर जाता है तो उसकी बीवी उसे घर के अंदर आने कैसे देती है. मुंबई में ये भी नहीं होता है.

कई अबूझ प्रश्नों के साथ ऑपरेशन रोमियो अधकचरा सी लगती है. शरद केलकर और किशोर कदम तो खेल के माहिर खिलाडी हैं और उनका अभिनय बढ़िया है. सिद्धांत गुप्ता के चेहरे पर दो-तीन से ज़्यादा एक्सप्रेशन आ नहीं पाते. मंगेश के घर जब वो वहशी विलन की तरह व्यव्हार कर रहा होता है तब भी अजीब लगता है. भूमिका चावला का किरदार व्यर्थ किया गया है. वेदिका सुन्दर हैं, बहुत ज़ायदा लम्बा करियर होने की उम्मीद नहीं है. फिल्म में मनोज मुन्तशिर के लिखे और एमएम क्रीम के संगीतबद्ध किये तीन गाने भी हैं जो फिल्म में आते भी हैं तो कोई फर्क नहीं पड़ता जबकि गाने अच्छे हैं.

दस्विदानिया और चलो दिल्ली जैसी बेहतरीन फिल्मों के निर्देशक शशांत शाह ने इस फिल्म को डायरेक्ट किया है. मुंबई में फिल्म को बसाना उनकी सबसे बड़ी गलती थी. एक अच्छे मुद्दे को फिल्म उठाती है. दर्शक काफी देर तक टेंशन में भी रहते हैं कि शरद और किशोर मिल कर सिद्धांत और वेदिका के साथ क्या करेंगे और क्या शरद ने वेदिका के साथ कोई बदतमीज़ी की, लेकिन सिद्धांत जब बदला ले कर वेदिका के पास वापस आता है तो वेदिका द्वारा उसका प्रपोजल रिजेक्ट करना थोड़ा हज़म नहीं हुआ. फिल्म टाइम पास श्रेणी में ही रखी जा सकती है.

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