Home Film Review ‘कुट्टवुम शिक्षायुम’ फिल्म रिव्यू: जानें पुलिस कार्रवाई का असली तरीका ‘कुट्टवुम शिक्षायुम’

‘कुट्टवुम शिक्षायुम’ फिल्म रिव्यू: जानें पुलिस कार्रवाई का असली तरीका ‘कुट्टवुम शिक्षायुम’

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‘कुट्टवुम शिक्षायुम’ फिल्म समीक्षा: पुलिस की छवि हर नए केस के साथ बदलती रहती है. कभी वो आंदोलनों को कुचलने का श्रेय पाती है और कभी अपराधियों को संरक्षण देने का. आम आदमी जो दूर से पुलिस की कार्यवाही को देखता है या समझता है, उस पर फिल्मों के पुलिस वालों की छवि का बहुत बड़ा प्रभाव रहता है. आजकल थोड़ा और मसाला आ गया है क्योंकि आजकल पुलिस वाले भी खुद को सिंघम कहलवाना ज़्यादा पसंद करते हैं. वस्तुस्थिति ये है कि कानून, राजनीति, सबूतों की तलाश, लापता अपराधी और बहुत ही सीमित संसाधनों के साथ काम करने की जितनी बड़ी ज़िम्मेदारी पुलिस की होती है उसको समझना ज़रा टेढ़ी खीर है.

किसी षडयंत्र के चलते किये गए अपराधों की तह तक जा पाना पुलिस के लिए मुश्किल हो सकता है ये बात समझना भी कठिन है. नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ फिल्म कुट्टावम शिक्ष्यम एक असली कहानी पर आधारित है. इसमें पुलिस हीरो है, लेकिन हीरो पुलिस नहीं है. ऐसा नहीं है कि जांच करने के लिए निकले तो रास्ते में अपराधी कहां मिलेंगे इसका उन्हें कोई पूर्वानुमान होता है. उनकी थर्ड डिग्री वाली कहानियां हर बार सच हों ये भी सही नहीं है. उनके द्वारा अपराधी को गिरफ्तार कर के सही हवालात में पहुंचाने तक भी कई कठिनाइयां आती हैं. कुट्टावम शिक्ष्यम फिल्म पुलिस की असल कार्यवाही का एक अनछुआ पहलू है. फिल्म रोचक है. लंबी ज़रूर है और अंत समझने में थोड़ा समय लगता है लेकिन फिल्म मनोरंजक है.

केरल के बहुचर्चित जिले कासरगोड में 2015 में एक ज्वेलरी की दुकान पर डकैती पड़ी थी. इसकी जांच बड़ी कठिन थी क्योंकि डकैत राजस्थान के किसी सुदूर गांव के रहने वाले थे और कासरगोड में काम करने आये थे. केरल पुलिस ने 5 सदस्यों की एक टीम का गठन किया था जो जाकर गांव में छानबीन करके इन अपराधियों को गिरफ्तार कर के लाने के लिए निकले थे. अत्यंत सीमित संसाधन, स्थानीय पुलिस द्वारा की गयी मदद, और ढेर सारी मेहनत के बाद भाषा की समस्या से जूझती केरल पुलिस, राजस्थान के उस गांव पहुंचती है और बड़ी मुश्किल से इन अपराधियों को ढूंढ निकालती है. अब समस्या का दूसरा भाग शुरू होता है, इन अपराधियों को बचने के लिए स्थानीय लोग और उनके गांववाले पुलिस पर हमला कर देते हैं. क्या ये टीम इन अपराधियों को निकाल पाती है?

पुलिस की सीधी सच्ची और मुश्किलों से भरी कार्यवाही का सजीव चित्रण इस फिल्म में देखने को मिलता है. कहानी लिखी है सीबी थॉमस ने जो खुद एक पुलिसिये हैं और इस केस में शामिल थे. इसे पटकथा के रूप में ढालने में श्रीजीत दिवाकरण और निर्देशक राजीव रवि ने कमाल कर दिया है. फिल्म का उद्देश्य है कि पुलिस की कार्यप्रणाली को सच के आईने में दिखाया जाए न कि फ़िल्मी तरीके से. इसमें हीरो गोलियां नहीं चलाता, गाड़ियां नहीं उड़ती, एक ही स्कार्पियो में पूरी 5 सदस्यों की टीम एक साथ निकलती है, केरल के पुलिस वाले राजस्थान की कचौरी खाकर पेट ख़राब कर बैठते हैं, राजस्थान के एसपी उनको जिस होटल में ठहराते हैं वो किसी लॉज से बेहतर नहीं होता, पकड़े गए अपराधी पर नज़र रखते रखते पुलिस वाला भी ऊंघ लेता है.

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जब गांववाले पूरे पुलिस के दल पर हमला बोल देते हैं तो पुलिस वाले गोलियां चला कर खून ख़राबा नहीं करते बल्कि पतली गली से निकल लेते हैं और गाड़ियों को दौड़ाकर थाने पहुंचकर ही सांस लेते हैं. फिल्म के मुख्य किरदार इंस्पेक्टर साजन फिलिप (आसिफ अली) ने अपने करियर के एक दौर में आंदोलनकारियों पर गोली चला दी थी जिस से एक छोटे लड़के की मौत हो गई थी. हालांकि डिपार्टमेंट के सीनियर और साजन के साथी उसे इस केस से बचा तो लेते हैं मगर साजन ताज़िन्दगी अपनी गलती के भार से जूझता है.

अदाकारी में इंस्पेक्टर साजन ( आसिफ अली) के अलावा बशीर (अलेनसियर) का काम बड़ा ही तगड़ा है. बशीर बहुत जल्द रिटायर होने वाला है लेकिन उसे अपने मुसलमान होने का अहसास है और वो ये भी जानता है कि उसका जूनियर अगर गलती करेगा तो बशीर के रिटायरमेंट में मुश्किलें आ सकती है. इसके अलावा जो किरदार से वो छोटे छोटे थे और उन्होंने भी अच्छा काम किया है हालांकि वे सब फिलर की तरह थे. अपराधी भी एकदम सामान्य व्यक्ति थे इसलिए उन पर फोकस नहीं रखा गया है.

इस तरह की पुलिसिया कार्यवाही पर फिल्में बहुत कम बनी हैं और इस फिल्म में बोर होने की वजह भी यही है. सच्चाई दिखाने की निर्देशक राजीव रवि की योजना में ड्रामा के लिए बिलकुल जगह नहीं थी. वैसे राजीव खुद बहुत सफल सिनेमेटोग्राफर हैं और बतौर निर्देशक उनकी फिल्में बहुत ही बेहतरीन रही हैं लेकिन इस बार वो थोड़ा लक्ष्य से चूक गए हैं. फिल्म ख़त्म होने के बाद बहुत कुछ याद नहीं रहता. फिल्म फिर भी एक अच्छे दस्तावेज़ की तरह है. इसे देखा जाना चाहिए ताकि एक अलग किस्म का कथा कथन भी लोगों को देखने को मिले.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

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