‘जेम्स’ फ़िल्म समीक्षा: भारत की समूची फिल्म इंडस्ट्री और खास कर कन्नड़ भाषा की फिल्मों की दुनिया में स्वर्गीय अभिनेता डॉक्टर राजकुमार को सर्वश्रेष्ठ कलाकारों की श्रेणी में रखा जाता है. वे सिर्फ एक बेहतरीन अभिनेता ही नहीं थे, बल्कि उनके बहुआयामी व्यक्तित्व ने कन्नड़ भाषा की फिल्म इंडस्ट्री को अद्वितीय सम्मान दिलाया. डॉक्टर राजकुमार के तीसरे सुपुत्र पुनीत, अपने पिता और बड़े भाइयों की तरह ही कन्नड़ फिल्मों में काम करते थे. पुनीत ने बतौर बाल कलाकार भी कई फिल्में कीं और बतौर हीरो उन्होंने कुल जमा 29 फिल्मों में अभिनय किया, जिसमें से करीब 24 फिल्में ऐसी थीं जो बॉक्स ऑफिस पर 100 से भी ज़्यादा दिन तक जमी रहीं.

कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री और उनके फैंस उन्हें पावर स्टार कहते थे. दुर्भाग्यवश पिछले साल अक्टूबर में उनका दिल का दौरा पड़ने से मात्र 46 वर्ष की अल्प आयु में ही निधन हो गया जिस से पूरी कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री और उनके लाखों फैन शोकमग्न हो गए. उनकी कुछ फिल्में इस वजह से अधूरी भी रह गयीं लेकिन टेक्नोलॉजी के ज़माने में क्या संभव नहीं है. उनकी एक फिल्म “जेम्स” जिसकी शूटिंग में सिर्फ डबिंग और एक गाने का काम बचा था, 17 मार्च 2022 को उनके जन्मदिन पर रिलीज़ की गयी और अब 14 अप्रैल को सोनी लिव पर उसका ओटीटी प्रीमियर भी हो गया.

पुनीत जिस तरह की एंटरटेनिंग और मसाला फिल्मों के लिए जाने जाते थे और उनके फैन उनसे जो अपेक्षा करते थे, वो इस फिल्म में भरपूर देखने को मिलेगा. उनकी आवाज़ की डबिंग उनके बड़े भाई शिवा राजकुमार ने की लेकिन कोशिश की जा रही है कि टेक्नोलॉजी की मदद से पुनीत की असली आवाज़ में ही फिल्म की डबिंग कर के फिल्म को फिर से रिलीज़ किया जाए.

सिनेमाघरों में रिलीज़ के समय जेम्स ने अलग ही तूफ़ान खड़ा कर दिया और एक हफ्ते में ही करीब 100 करोड़ से अधिक का व्यवसाय कर लिया. पुनीत के प्रति उनके फैंस की दीवानगी का ये एक छोटा सा नमूना माना जा सकता है. फिल्म की कहानी में एक आर्मी अफसर कुछ अनाथ बच्चों को अनाथ आश्रम में लालन पालन के लिए छोड़ के जाता है और ये बच्चे पढ़ लिख कर बड़े हो कर अच्छे पदों पर काम करने लगते हैं. इनमें से पुनीत आर्मी में जाते हैं और फिर स्पेशल फोर्सेज में काम करते हैं. इन मित्रों में से एक अफसर है जिसकी शादी पर सब मित्र मिलते हैं.

कुछ समय पहले ही पुलिस अफसर मित्र ने एक अंतर्राष्ट्र्रीय गैंग के ड्रग के बिज़नेस का भंडा फोड़ कर गैंग लीडर के खास लोगों को गिरफ्तार कर लिया होता है. गैंग के दूसरे लोग, पुनीत के मित्र के शादी में घुस कर सब मित्रों और उनके परिवार का खात्मा कर देते हैं, पुनीत घायल हो कर बच जाता है. पुनीत एक एक कर के दोस्तों के कातिलों को मार देता है लेकिन आर्मी से उसे निकाल दिया जाता है. पुनीत अपने सीनियर अफसर की मदद से ड्रग्स का पूरा बिज़नेस और सभी गैंग्स को ख़त्म करने का सीक्रेट मिशन स्वीकार कर लेता है. एक सिक्योरिटी कंसलटेंट बन कर वो एक और गैंग के लीडर का अंगरक्षक बन जाता है और फिर उसका विश्वास जीत कर उसके राज़ जान लेता है. फिर एक एक करके वो गैंग लीडर के दुश्मनों का सफाया करता है और आखिर में उस गैंग और गैंगलीडर का भी.

कहानी के नज़रिये से देखें तो कहानी एकदम मसाला है. पुनीत की सभी फिल्में इसी तरह की मसाला ही होती है, लेकिन कुछ सन्देश भी छिपे होते हैं. पुनीत अपने रोल में एकदम जंचते हैं और काफी फिट भी नज़र आते हैं. एक्शन (रवि वर्मा, चेतन डिसूज़ा) भी भरपूर डाली गयी है. पुनीत एक्शन में भी सहज नज़र आते हैं. एक बात जो उन्हें शायद लाखों लोगों का चहीता बनती है वो है उनका ईमानदार चेहरा. वो कभी भी छिछोरा मज़ाक या कोई चीप जोक सुननेवाला नहीं लगते. उनके चेहरे पर सौम्यता है और साथ है एक गंभीर किस्म की ईमानदारी जो अधिकांश एक्टर्स में नज़र नहीं आती.

अपने पिता की परछाईं के बावजूद पुनीत का पावर स्टार का दर्जा पाना वो भी सिर्फ 29 फिल्मों में काम करके, ये सबूत है कि पुनीत कोई सामान्य किस्म के अभिनेता नहीं थे. फिल्म में उनके साथ प्रिया आनंद हैं जो फिल्म की हीरोइन तो नहीं है लेकिन उनका रोल पुनीत की गर्लफ्रेंड की तरह ही रखा गया है. हिंदी फिल्म के दर्शकों ने प्रिया को कई विज्ञापनों में देखा होगा. उनका अभिनय साधारण सा है लेकिन पुनीत की फिल्म में फोकस सिर्फ पुनीत पर ही होने से प्रिया का कमज़ोर अभिनय कोई फर्क नहीं डालता. विजय गायकवाड़ की भूमिका में श्रीकांत का अभिनय अच्छा है. काफी कलाकार सिर्फ मार खाने और पुनीत के हाथों मारे जाने के लिए फिल्म में आते हैं जिसमें मुकेश ऋषि भी शामिल हैं. पुनीत के मित्रों के और साथ काम करने वालों के रोल भी छोटे हैं और कोई विशेष अभिनय दक्षता की ज़रुरत नहीं थी.

कहानी और निर्देशन चेतन कुमार का है जिनकी ये चौथी और संभवतः सबसे बड़ी फिल्म है. हॉलीवुड की कुछ फिल्मों से प्रभावित, और दक्षिण भारत की इसी तर्ज़ की कई और फिल्मों से प्रेरणा लेकर यह फिल्म लिखी गयी है ऐसा ज़ाहिर होता है. कहानी के दो भाग हैं. एक, जिसमें पुनीत एक सिक्योरिटी एजेंसी के मालिक हैं और उनका नाम संतोष है और दूसरा भाग जहां वो एक आर्मी अफसर हैं और उनका नाम जेम्स है. कहानी लिखते वक़्त लेखक चेतन ने दोनों रोल्स में कोई मूलभूत अंतर पैदा नहीं किये जिसकी वजह से पुनीत के अभिनय का एक और आयाम देखने का मौका नहीं मिलेगा.

पुनीत के हिस्से कॉमेडी करने की गुंजाईश भी नहीं रखी गयी जबकि उनकी कॉमेडी भी उनके फैंस बहुत पसंद करते हैं. स्वामी गौड़ा ने सिनेमेटोग्राफी अच्छी की है. लॉन्ग शॉट्स और वाइड एंगल शॉट्स में फिल्म की भव्यता का अंदाज़ लगाया जा सकता है. पुनीत को ज़्यादा से ज़्यादा समय परदे पर दिखाने की उनकी कवायद में वो सफल रहे हैं. पुनीत की कई फिल्मों में एडिटर रह चुके दीपू कुमार ने फिल्म एडिट की है. संभवतः उनके लिए ये काम इमोशनल ही रहा होगा पुनीत के असमय देहावसान की वजह से, इसलिए उन्होंने फिल्म में पुनीत के सभी सीन रखने की कोशिश की है. संगीत चरण राज का जो कि पुनीत की वजह से वैसे ही सुपरहिट हो चुका है. कुल 4 ही गाने हैं, थोड़ा कहानी से कटे हुए हैं लेकिन पुनीत पर फिल्माए गाने हैं तो देखने वाले कंप्लेंट करें भी तो कैसे.

फिल्म है पूरी मसालेदार, बस एक असली हीरोइन जिस से पुनीत सच्चा रोमांस निभा सकते, उसकी कमी रह गयी. बड़े दिनों के बाद पुष्पा, आर आर आर और केजीएफ 2 जैसी मसाले से भरपूर फिल्में देखने के साथ अब आप जेम्स को भी इस फेहरिस्त में शामिल कर के देख सकते हैं. ये पुनीत राजकुमार को एक बेहतरीन ट्रिब्यूट के तौर पर देखी जाए तो और अच्छा होगा.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

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