फ़िल्म समीक्षा ‘क्लैप’: मैरी कॉम, एमएस धोनी, सचिन तेंदुलकर, मिल्खा सिंह, संदीप सिंह जैसे कई खिलाडियों पर फिल्में बन चुकी हैं और अब मिताली राज, प्रवीण ताम्बे, झूलन गोस्वामी जैसे खिलाडियों पर फिल्में बन रही हैं. पिछले 5-6 सालों स्पोर्ट्स पर बनने वाली फिल्मों की बाढ़ सी आ गई है. अक्षय कुमार, शाहिद कपूर, अनुष्का शर्मा ने हिंदी में और नानी, किच्चा सुदीप, कीर्ति सुरेश जैसे कलाकारों ने तमिल-तेलुगु भाषा में कमाल की और हिट स्पोर्ट्स फिल्मों में काम किया है. स्पोर्ट्स फिल्मों की कहानी की एक विडम्बना है कि उसमें नवीनता का अभाव देखा जा सकता है.

एक प्रतिभाशाली खिलाड़ी जो किसी वजह से अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दे पाता है और निराशा के गर्त में चला जाता है, किसी कोच या प्रेमी की मदद से उसे फिर अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिलता है और वो पूरी तैयारी के साथ एक बार फिर मैदान में उतरता है और विरोधियों की स्कीम्स को नीचे दिखाते हुए, एक बार फिर शिखर को छू लेता है. कभी कभी रोमांस, कभी कठिन परिस्थितियां और कभी विलन नुमा प्रतिद्वंद्वी उसके जीवन में रोड़ा भी डालते हैं लेकिन अंत में जीत मुख्य कलाकार की ही होती है.

दर्शकों के लिए कुछ नया मिलने की उम्मीद नहीं होती और ऐसी फिल्में सिर्फ अच्छे प्रमोशन की वजह से चलती हैं. इस कड़ी में सोनी लिव पर कुछ दिन पहले तमिल और तेलुगू दोनों भाषाओं में बनी फिल्म “क्लैप” रिलीज हुई है, जिसकी कहानी अन्य स्पोर्ट्स फिल्मों से काफी मिलती जुलती है लेकिन एक छोटा सा ट्विस्ट भी है. फिल्म बच्चों के अंदर जीत की भावना और निराशा से उठकर आशा की और भागने की आदत को जन्म देती है इसलिए देखने लायक है.

रवि राजा पिनिशेट्टी तमिल और तेलुगू सिनेमा के सफल निर्देशकों में गिने जाते हैं, उन्ही के सुपुत्र आदि जो कि तमिल और तेलुगु फिल्मों में हीरो के तौर पर नज़र आते रहे हैं, इस फिल्म क्लैप के हीरो हैं. फिल्म का आरम्भ उनके बचपन से होता है जहां उनके पिता प्रकाश राज उन्हें एक बेहतरीन एथलीट बनाना चाहते हैं. पिता के निर्देशन में वो एक सफल धावक बनते हैं और कई टूर्नामेंट जीतते रहते हैं. एक दुर्घटना में प्रकाश राज की मृत्यु हो जाती है और आदि के एक पैर को काटना पड़ता है जिसके फलस्वरूप उसका स्पोर्ट्स करियर ख़त्म हो जाता है.

उसकी प्रेमिका आकांक्षा सिंह तमाम विरोध के बावजूद उनसे विवाह करती है लेकिन अपाहिज होने की ग्रंथि आदि के मन में कुछ ऐसी परिस्थितियां पैदा कर देती हैं जिसका प्रभाव उसके वैवाहिक जीवन पर पड़ता है. स्पोर्ट्समैन होने की वजह से आदि को स्पोर्ट्स अथॉरिटी में नौकरी मिल जाती है जहां उसे एक लड़की के बारे में पता चलता है जो बहुत अच्छी धावक है लेकिन उसके पिता की असमय मृत्यु होने की वजह से वो किसी भी टूर्नामेंट में भाग नहीं ले पाती. आदि उसे ढूंढते हुए उसके गांव जाता है और उसे अपने साथ घर ले आता है. ये देख कर आदि की पत्नी घर छोड़ कर चली जाती है और आदि इस लड़की को फिर से दौड़ने के लिए ट्रेनिंग करवाना चाहता है. कई तरह की मुसीबतों का सामने करते हुए आदि उसे अंततः राष्ट्रीय स्तर की दौड़ के फाइनल में पहुंचता है जहां वो नया नेशनल रिकॉर्ड बनाते हुए जीत जाती है और आदि अपना अधूरा सपना इस लड़की माध्यम से पूरा कर लेता है.

जिस तरह की स्पोर्ट्स फिल्म आजकल बन रही हैं और क्लैप में एक मूलभूत अंतर है कि इसमें कोच अपना अधूरा सपना एक गुमनामी में जाती हुई खिलाडी को फिर से अर्श पर ला कर पूरा करता है. कुछ हद तक श्रेयस तलपड़े की फिल्म इक़बाल में और माधवन की फिल्म साला खड़ूस में इस तरह की कहानी दिखाई गयी थी. आदि का करियर बहुत लम्बा नहीं हुआ है लेकिन सफलता और असफलता दोनों को चखने के बाद आदि ने कहानी को महत्वपूर्ण मानने वाली फिल्मों में काम किया और एक भरोसेमंद अभिनेता माने जाते हैं. हाल ही में रिलीज़ एक और स्पोर्ट्स फिल्म गुड लक साक्षी में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी. आदि कभी कभी नेगेटिव कैरेक्टर भी करते हैं और उन्हें काफी पसंद भी किया जाता है.

क्लैप में उन्होंने एक कठोर कदम उठाया और लगभग पूरी फिल्म में वो एक विकलांग व्यक्ति बन कर रहे जिसकी एक टांग (घुटने से नीचे) काट दी गयी है. उनकी आंखों में फ़्रस्ट्रेशन और खीज बड़े अच्छे से नज़र आती है. एक बार भी उन्होंने कोई फालतू एक्सप्रेशन नहीं दिखाया है और जब जब उनकी शिष्य कोई दौड़ जीतती है तब भी वे अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखते हैं और फोकस नहीं खोते. ये रोल आदि के करियर के लिए अच्छा साबित होगा. आदि की पत्नी के रोल में आकांक्षा सिंह का किरदार कम समय के लिए परदे पर दिखता है लेकिन उनकी उपस्थिति डिप्रेशन से जूझते आदि के साथ दर्शकों को राहत देती है. आकांक्षा ने हिंदी, तमिल, तेलुगु और कन्नड़ भाषाओं की फिल्मों में काम किया है. उन्होंने इसके पहले किच्चा सुदीप के साथ पैलवान नाम की स्पोर्ट्स फ़िल्म में काम किया है. प्रकाश राज और नसर पुराने चावल हैं और उनके अभिनय के बारे में क्या ही कहा जाए. भाग्यलक्ष्मी या दुर्गा के किरदार में क्रिशा कुरूप ने भी ठीक अभिनय किया है, हालांकि वो एक अच्छी धाविका तो नज़र नहीं आती हैं.

फिल्म में संगीत इलैयाराजा का है हालांकि फिल्म में एक ही गाना है जो फिल्म के शुरुआत में (टाइटल के समय) आता है. इलैयाराजा का रचा टाइटल ट्रैक इस बात का सबूत है कि उनकी सिम्फनीज़ कितनी कर्णप्रिय हैं. एडिटिंग का ज़िम्मा रागुल के कन्धों पर है और ये उनकी पहली फिल्म है इसलिए छोटीमोटी गलतियां माफ़ कर देनी चाहिए. सिनेमेटोग्राफर प्रवीण कुमार भी नए हैं और ये उनकी भी पहली फिल्म है इसलिए उनका काम कच्चा है. कोई लाजवाब शॉट या कैमरा एंगल नज़र नहीं आये हैं. दौड़ के दृश्यों में स्लो मोशन के इस्तेमाल से ड्रामेटिक इफ़ेक्ट डाले जा सकते थे. लेखक – निर्देशक पृथ्वी आदित्य भी नए ही हैं लेकिन कहानी में नयापन बहुत कम है और निर्देशन में कलाकारों से और बेहतर काम नहीं करवा पाए हैं. उम्मीद है आने वाले समय में उनकी फिल्में और कहानियां बेहतर होती जाएंगी. फिल्म अच्छी है. साफ़ सुथरी है. मोटिवेशन के लिए देखी जा सकती है.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

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