हाइलाइट्स

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि अनुशासन लागू करने के लिए कभी-कभी कठोर फैसले लेने पड़ते हैं.
जगदीप धनखड़ ने कहा कि कोई भी देश बिना अनुशासन और मर्यादा के विकास नहीं कर सकता है.

नई दिल्ली. उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि शिष्टाचार और अनुशासन लागू करने के लिए कभी-कभी कठोर निर्णय लेना आवश्यक होता है. भारतीय वन सेना के प्रशिक्षु अधिकारियों को संबोधित करते हुए धनखड़ ने कहा कि राज्यसभा के सभापति के रूप में मैं एक तरीके से काम करता हूं. लोकतंत्र के मंदिर में मैं अपने अधीन हर चीज का उपयोग करता हूं. हमारे पास मर्यादा है. हमारे पास अनुशासन है. मर्यादा और अनुशासन लागू करने के लिए कभी-कभी हमें कठोर फैसला लेना पड़ता है. लेकिन हमें इससे परहेज नहीं करना चाहिए. क्योंकि मर्यादा और अनुशासन हमारे विकास, प्रतिष्ठा और समृद्धि से जुड़ा हुआ है.

लोकतंत्र के मंदिर में मर्यादा लागू करने के लिए हर चीज का उपयोग करता हूंः धनखड़
संसद भवन में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा, “राज्यसभा के सभापति के रूप में, मैं सबसे बड़े लोकतंत्र में लोकतंत्र के मंदिर में मर्यादा और अनुशासन सुनिश्चित करने के लिए अपने आदेश के तहत हर चीज का उपयोग कर रहा हूं. मर्यादा और अनुशासन की कमी के प्रति शून्य सहिष्णुता का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि यदि आप ऐसा करते हैं, तो यह नाटकीय रूप से बदलाव लाएगा.

कभी-कभी हमें कठरो परिस्थितियों से गुजरना पड़ता हैः जगदीप धनखड़
जगदीप धनखड़ ने कहा कि मर्यादा और अनुशासन को लागू करने के लिए, कभी-कभी हमें अप्रिय परिस्थितियों का सहारा लेना पड़ता है, लेकिन हमें कभी भी इसमें संकोच नहीं करना चाहिए क्योंकि मर्यादा और अनुशासन हमारे विकास, प्रतिष्ठा और समृद्धि से जुड़े हुए हैं. जिस क्षण हम उदार दृष्टिकोण अपनाते हैं, हम समाज के लिए अच्छी सेवा नहीं करते हैं.”

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प्रकृति संरक्षण के बार में जागरूकता के लिए की जन आंदोलन बनाने की अपील
मनुष्य और उसके पर्यावरण के बीच सद्भाव को जीवन का अमृत बताते हुए, उपराष्ट्रपति ने युवा अधिकारियों से विकास की आवश्यकता और प्रकृति के संरक्षण के बीच विवेकपूर्ण संतुलन बनाए रखने में मदद करने के लिए खुद को समर्पित करने के लिए कहा. वन-निवास समुदायों के साथ व्यवहार करते समय संवेदनशीलता का आह्वान करते हुए, उन्होंने प्रशिक्षुओं से प्रकृति संरक्षण के बारे में जागरूकता के लिए एक जन आंदोलन बनाने की अपील की.

संबोधन में मौलिक कर्तव्यों का पालन करने पर दिया जोर
​​अपने संबोधन में, उपराष्ट्रपति ने सीखने और मौलिक कर्तव्यों का पालन करने के महत्व पर भी जोर दिया. उन्होंने कहा कि इसमें निवेश या शारीरिक प्रयास की आवश्यकता नहीं है. इसके लिए केवल इरादे की आवश्यकता है. उन्होंने कहा, इस इरादे का क्रांतिकारी प्रभाव हो सकता है. इस कार्यक्रम में भारत के उपराष्ट्रपति के सचिव सुनील कुमार गुप्ता, राज्यसभा के सचिव रंजीत पुन्हानी, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की सचिव लीना नंदन, राज्यसभा की अतिरिक्त सचिव वंदना कुमार, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी के निदेशक भारत ज्योति और अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे.

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