नई दिल्ली. भारतीय सेना (Indian Army) में दशकों से सेवा देते आ रहे नेपाली गोरखाओं की भर्ती (Recruitment of Nepalese Gorkhas) अब रुक गई है. नेपाल सरकार इसकी वजह भारतीय सेना की ‘अग्निपथ योजना’ को ठहरा रही है. बता दें कि भारतीय सेना में नेपाली गोरखा पिछले कई दशकों से सेवा देते आए हैं, लेकिन अब यह भर्ती रुक गई है. भर्ती क्यों रुकी और भारत का क्या रुख है, इस पर भारत सरकार की प्रतिक्रिया नहीं आई है. हालांकि, भारत में नेपाल के राजदूत शंकर प्रसाद शर्मा ने सोमवार को बताया कि नेपाल से गोरखाओं की अग्निपथ योजना के तहत भारतीय सेना में भर्तियों को ‘रोक’ दिया गया है, लेकिन अभी मामला समाप्त नहीं हुआ है.

भारत की तीनों सेनाओं में अब अग्निपथ योजना के नियमों के तहत भर्तियां की जा रही हैं. इसमें युवाओं को सिर्फ चार साल के लिए सेना में शामिल करने का प्रावधान है. लेकिन, नेपाल चाहता है कि गोरखा भर्ती पहले की तरह पुरानी योजना के अनुरूप हो. इसी मुद्दे पर दोनों देशों के बीच पेच फंस गया है. नेपाली राजदूत शर्मा ने नई दिल्ली में मीडिया से बात करते हुए कहा कि फिलहाल दोनों देशों की सरकारों के बीच इस मुद्दे पर कोई ‘गंभीर बातचीत’ भी नहीं हो रही है.

भारत की तीनों सेनाओं में अब अग्निपथ योजना के नियमों के तहत भर्तियां की जा रही हैं. इस

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भारतीय सेना में गोरखाओं का इतिहास
भारतीय सेना में नेपाली गोरखा बेहद अहम भूमिका निभाते आ रहे हैं. भारतीय सेनाओं में नेपाली गोरखाओं की भर्ती साल 1947 में दोनों देशों के साथ-साथ ब्रिटेन के बीच हुऊ त्रिपक्षीय संधि के तहत होती है. तब से गोरखा हर साल भारतीय सेना में चुने जाते रहे हैं और उनका यह सफर अभी तक जारी था. लेकिन, 14 जून 2022 को भारत सरकार ने अग्निपथ योजना का ऐलान कर दिया. इसके तहत 17 से 21 साल के युवाओं को अग्निवीर के रूप में केवल 4 साल के लिए चुना जाएगा. इन युवाओं में से 25 प्रतिशत को प्रदर्शन के आधार पर नियमित किया जाएगा.

नेपाल क्यों नाराज है?
नेपाल के राजी न होने के बाद पिछले साल वहां होने वाली सेना भर्ती रैली भी रद्द कर दी गई थी. तब से भारतीय सेना ने नेपाल में कोई सेना भर्ती रैली आय़ोजित नहीं की है. जानकार बता रहे हैं कि नेपाल सरकार की भी अपनी चिंताएं हैं. नेपाल सरकार की चिंता है कि भारतीय सेना में चार साल रहने के बाद नौजवान वापस आएंगे तो क्या करेंगे? इसके साथ अत्याधिक आधुनिक हथियार प्रशिक्षित नेपाली गलत रास्ते पर भी जा सकते हैं. इस संबंध में अभी तक भारत और नेपाल के बीच समाधान नहीं निकाला जा सका है.

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गोरखा सैनिकों को दुनिया के सबसे खतरनाक लड़ाकों में गिना जाता है.

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गोरखा समुदाय के लोग हिमालय की पहाड़ियों, खासकर नेपाल और उसके आसपास के इलाकों में रहते हैं. भारतीय सेना के भूतपूर्व चीफ ऑफ स्टाफ जनरल सैम मानेकशॉ ने कहा था कि यदि कोई कहता है कि मुझे मौत से डर नहीं लगता, वह या तो झूठ बोल रहा है या गोरखा है. गोरखा रेजिमेंट ने शुरू से ही अपनी बहादुरी का परचम लहराया और अंग्रेजों के अहम युद्ध में उन्हें जीत भी दिलाई. इस रेजिमेंट का कुछ हिस्सा बाद में ब्रिटेन की सेना में भी शामिल हुआ. अब भी ब्रिटिश सेना में गोरखा रेजिमेंट एक अहम अंग है. 1947 में जब भारत आजाद हो रहा था तब भारत, नेपाल और ब्रिटेन के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ, जिसके तहत छह गोरखा रेजिमेंट भारतीय सेना में स्थानांतरित कर दी गईं. बाद में एक सातवीं रेजीमेंट और बनाई गईं. तब ये सातों गोरखा रेजिमेंट भारतीय सेना में अपना झंडा गाड़े हुए हैं.

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