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जिम कार्बेट: शिकारी जिसने बाघ को पाया बड़े दिल वाला जेंटलमैन

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कथाओं से भरे इस देश में
मैं भी एक कथा हूं
एक कथा है बाघ भी
इसलिए कई बार
जब उसे छिपने को नहीं मिलती
कोई ठीक-ठाक जगह
तो वह धीरे से उठता है
और जाकर बैठ जाता है
किसी कथा की ओट में.

यह केदारनाथ सिंह की प्रख्‍यात बाघ शीर्षक की कविताओं का एक अंश है. बाघ को लेकर हमारे देश में अनेक कथाएं, किवंदतियां और अनगिनत अनुभव हैं. बाघ ऐसे आता है, ऐसे शिकार करता है, वह इंसानी खून का प्‍यासा है. एक झपट्टे में वह मार गिराता है. वह ‘क्रुअल बिग कैट’ है. ऐसे जाने कितने सच्‍चे-झूठे किस्‍सों में बाघ दर्ज है. एक समय ऐसा था जब बाघ, चीतों का बेहिसाब शिकार हुआ. गर्व से इन शिकार की संख्‍या बताई जाती है मगर एक शिकारी ऐसा भी था जिसने खूब बाघ-चीते मारे. लगभग 31 बाघ-चीतों का शिकार. मगर वह केवल उन बाघ-चीतों का शिकार करता था जो आदमखोर हो गए थे. उसके शिकार के अपने सिद्धांत थे. उसने बाघ का शिकार करने के दौरान बाघ के व्‍यवहार को करीब से जाना था और अपनी किताबों के माध्‍यम से बाघ के खौफ को मिटाने में मुख्‍य भूमिका निभाई. वह शिकारी है, जेम्स एडवर्ड कॉर्बेट जिसे दुनिया जिम कार्बेट के नाम से जानती है.

जिम कार्बेट ऐसा शिकारी है जिसने बाघ की दुनिया के अनगिनत रहस्‍यों को उजागर किया और बाघ का संरक्षण बन गया. उन्होंने बाघों की कम होती आबादी के संरक्षण के लिए प्रयास कर 8 अगस्त 1936 को पहले नेशनल पार्क की स्थापना करवाई. इसी हली नेशनल पार्क का नाम 1952 में जिम कार्बेट के नाम पर रखा गया. उत्तराखंड राज्य में 1318 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ जिम कार्बेट नेशनल पार्क पक्षियों, पौधों और जानवरों की हजारों प्रजातियों का घर है.

जिम कार्बेट के पूर्वज तीन पीढ़ियों पहले आयरलैंड छोड़ कर भारत में बस गए थे. 25 जुलाई 1875 को नैनीताल में इस आयरिश परिवार में जिम कार्बेट का जन्म हुआ. जिम जब मात्र 6 वर्ष के थे तब ही उनके पिता का देहांत हो गया था. उनका बचपन कालाढूंगी के जंगल में तीर और गुलेल से शिकार करके बीता. आर्थिक संसाधनों की कमी के कारण वे 19 साल की उम्र में बंगाल एंड नार्थ वेस्टर्न रेलवे में फ्यूल इंस्पेक्टर की नौकरी न लग गए. उन्‍होंने करीब 20 सालों तक रेलवे में नौकरी की. फिर वे नौकरी छोड़ कर रेलवे में ठेकेदारी करने लगे. भारत के प्रति अकूत श्रद्धा रखने वाले जिम कार्बेट जीवन के अं‍तिम वर्षों में अपने मूल देश में चले गए थे. केन्‍या में 19 अप्रैल 1955 को जिम कार्बेट का निधन हो गया.

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बचपन से ही शिकार के शौकीन जिम कॉर्बेट अपने समय के सबसे मशहूर शिकारी थे. उनका सिद्धांत था कि वे सामान्‍य जानवरों का शिकार नहीं करते थे. वे केवल आदमखोर हुए बाघ या चीते का शिकार किया करते थे. उनके बारे में यह मशहूर था कि यदि कहीं कोई आदमखोर बाघ या चीता जनता को परेशान कर रहा होता और उन्‍हें खत लिख कर मदद मांगी जाती तो वे पहुंच जाते थे. सबको भरोसा रहता था कि पत्र लिखा है तो जिम कार्बेट जरूर आएंगे.

उनका सबसे चर्चित शिकार कुमाऊं के जंगल में किया गया आदमखोर बाघिन का शिकार है. बताया जाता है कि नेपाल में 234 से ज्‍यादा बाघ का शिकार करने वाली बाघिन कुमाऊं में आ गई थी. कुमाऊं आने के बाद इसके शिकार लोगों की संख्या 436 तक हो गई थी. इस आदमखोर बाघिन को मारने के लिए जिम कार्बेट ने कुछ शर्तें रखी थीं. उन्‍होंने कहा था कि उनके अलावा सारे शिकारी जंगल से वापिस बुला लिए जाएंगे. हालांकि, इस बाघिन के शिकार के लिए जिम कार्बेट को कुछ महीनों तक इंतजार करना पड़ा. इस शिकार पर उन्‍होंने ‘मैन-ईटर्स ऑफ कुमाऊं’ किताब लिखी है. अपनी किताब में जिम ने शिकार के अनुभव और बाघों की प्रकृति पर चर्चा की है.शिकार के बाद जब उन्‍होंने आदमखोर बाघिन के शरीर का निरीक्षण किया तो पाया कि उसके चेहरे और शरीर पर गोली तथा अन्य हथियारों से पहुंचाई गई चोट के निशान थे.

इस तरह के अनुभवों के बाद जिम कॉर्बेट इस निष्‍कर्ष पर पहुंचे थे कि बाघ हो या चीता, खुंखार समझे जाने वाले ये जानवर आदमखोर नहीं होते बल्कि जब इंसान इन पर हमला करता है तो ये उखड़ जाते हैं और इंसानों का शिकार करने लगते हैं. अपनी इस पुस्‍तक में उन्होंने लिखा है कि आदमखोर होने पर बाघ के मन से इंसानों का भय खत्‍म हो जाता है. इस डर के जाने से वे दिन में भी हमला करते हैं अन्‍यथा बाघ दिन में हमला नहीं करते हैं. वहीं तेंदुए कितने भी आदमखोर क्यों ना हो जाएं मगर इंसान का डर उनके अंदर बराबर बना रहता है. इसीलिए वे रात के अंधेरे में शिकार करते हैं.

जिम कॉर्बेट का मानना था कि इंसानों को बाघ-चीतों से बचाने से जरूरत नहीं है बल्कि बाघ और चीतों को इंसानों से बचाना होगा. उन्‍होंने इन जानवरों के संरक्षण का अभियान में शुरू किया, हालांकि, बाद में उनकी आशंका सच साबित हुई और दुनिया भर में बाघ लुप्‍त होने की कगार पर पहुंच गण्‍ थे. यदि अभियान नहीं चलाया जाता तो चीते की तरह बाघ भी नहीं बचता.

बाघ के व्‍यवहार का अध्‍ययन करने वाले जिम कार्बेट बाघ को खुंखार और खून का प्‍यासा कहे जाने से सहमत नहीं थे. वे बताते हैं कि बाघ सामान्‍य रूप से रात में ही शिकार करता है, दिन में वह बेमतलब किसी को छेड़ता नहीं है. तभी तो जंगल में जाने वाले लोगों को वह कुछ नहीं करता है. लोगों को भी पता नहीं चलता कि घास के बीच बाघ बैठा था. उन्हें तो कोई ऐसा मामला नहीं दिखाई दिया जहां बाघ ने बिना वजह किसी इंसान को हानि पहुंचाई हो. वे अपनी किताब में लिखते हैंकि सभी शिकारी उनकी इस बात से सहमत होंगे कि बाघ बड़े दिल वाला ‘जेंटलमेन’ होता है. यह इंसान ही है जो उसके प्राकृतिक आवास और शिकार को खत्‍म कर उसे खूंखार बनने को मजबूर कर देता है.

यह आकलन भी सही ही है कि भारत में बाघ-चीते जैसे वन्‍य प्राणियों के प्रति क्रूरता और वनों के प्रति इंसानों की अनदेखी से परेशान हो कर ही जिम कार्बेट जैसे पर्यावरण प्रेमी को अपने देश लौटना पड़ा जबकि वे तो भारत के प्रति श्रद्धा भाव रखते थे. अपने मूल की तरफ लौटने की चाहत और भारत में वन और वन्‍य प्राणियों की दुर्दशा से परेशान हो कर वे केन्‍या जाने को मजबूर हुए. आज देश में बाघ की संख्‍या में संतोषजनक इजाफा हुआ है मगर टाइगर स्‍टेट मध्‍य प्रदेश में बाघ का अवैध शिकार बदस्‍तूर जारी है. चीता की मध्‍य पद्रेश में वापसी हुई है मगर उनका जीवन असंभव जैसा मुश्किल बना हुआ है. ऐसे में जिम कार्बेट जैसे पर्यावरणविदों की बातों से सीख लेनी होगी और वनों व वन्‍य प्राणियों के प्रति अधिक संवेदनशील होना होगा.

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