गौरव गुप्ता युवा कवि हैं. सोशल मीडिया पर उनकी खूबसूरत कविताओं को लोगों के बीच ख़ासा पसंद किया जाता है. 2019 में मुंबई लिटरेचर फेस्टिवल में उनकी पांडुलिपी को चयनित और पुरस्कृत भी किया जा चुका है. फिर उन्हें लिट्-ओ-फेस्ट Ink (मुंबई) ने प्रकाशित भी किया. जिस पर वरिष्ठ कवि-आलोचक डॉ ओम निश्चल ने कहा, “यह कवि कविता के लिए शुभ फलागम की तरह है. प्रेम के असमंजस में घिरे संसार में इसे युवा कवि गौरव गुप्ता किस बारीकी से नया अर्थ देते हुए लगते हैं. यह संग्रह बाहर से प्रेम कविताओं का आभास अवश्य देता है किंतु भीतर से जीवन के बृहत्तर आयामों वाला संग्रह है. गौरव की कविताएं अपनी मितभाषिता में मूल्यवान जीवन-सारांश सहेजे हुए हैं.”

आपको बता दें, कि गौरव समय-समय पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं; दोआबा, वागर्थ और कविता विहान में प्रकाशित हुए हैं, साथ ही दैनिक भास्कर, अहा जिंदगी जैसी जगहों पर भी इनकी कविताओं को प्रकाशित किया गया है. इनकी कविताओं को अगर पढ़ना है, तो हिंदवी, मेराकी जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर भी इनकी कविताएं, अनुवाद और ब्लॉग उपलब्ध है.

दिल से गौरव गुप्ता कवि हैं और पेशे से वे एक फ्रीलांस राइटर हैं. कुछ समय तक गौरव वाणी प्रकाशन समूह में सोशल मीडिया एडिटर के तौर पर भी जुड़े रहे और कई एजुकेशनल इंस्टिट्यूट के लिए अनुवाद का काम किया है. प्रस्तुत हैं गौरव गुप्ता की वे अप्रकाशित कविताएं जिन्हें उन्होंने अपने शब्दों में बांधने की बेहद ही खूबसूरत कोशिश की है-

1)
इंतजार
मेरे पास इंतजार कई भाषा में मौजूद था
इसलिए गर्मी के बेचैन दिनों में कहा-
देखो बारिश का मौसम आने वाला है,
कितना सुंदर होगा जब हरी हो जाएगी धरती
एक तेज़ बारिश के बाद
हरा हो जाएगा यह मन भी

देखो इन सर्दियों में ऊनी स्वेटर पहन सड़कों पर भटकेंगे,
इन सर्दियों में आ जाना दिल्ली,
तुम्हें फकीरचंद बुक्सटॉल ले जाऊंगा;
जनपथ पर घूमेंगे,
यहां झुमके सुंदर मिलते हैं

मेरे पास तुम्हारी हंसी की कल्पनाएं थीं
जो था मेरे इंतजार का सबसे सुंदर तर्जुमा

मेरे पास विदा के शब्द कभी नहीं थे
इसलिए मैं चुप रहा, तुम्हारे चले जाने के बाद
न गले लगा सका, न फूटकर रोया.

मैं उन सभी जगहों पर बार बार लौटा
साथ के दिनों को याद करते हुए
मिलाता रहा देर तक कॉफी में शक्कर
बैठा रहा कॉफी हाउस की दीवारों से सटकर
रिंगरोड के लगाए बेवजह चक्कर
बस की आखिरी सीट पर बैठकर देखता रहा बाहर देर तक खिड़कियों से
चुने तुम्हारे पसंदीदा बोगनबेलिया के बिखरे फूल
लगाए सिगरेट के कश
और भटका पुरानी दिल्ली की संकरी गलियों में

मैंने उन सभी जिये को दुबारा जिया
और उन सभी वादे को पहली बार,
फिर बार बार…
जो छूट गए थे, तुम्हारे अचानक चले जाने पर.

मेट्रो की चेकिंग लाइन से गुजरते हुए
मेरे कंधे पर झूलते झोले को देख
एक रोज़ पुलिस ने पूछा- इस झोले में क्या है?
मैंने मुस्करा कर कहा था- इंतजार!

वह नहीं समझ सका.
इंतज़ार की भाषा कोई नहीं समझता,
सिवाए उसके जो कर रहा होता है इंतज़ार;
तेजी से खो रहे उम्मीद के बीच
जैसे कोई करता है, हवा के बीच
बुझते हुए दीये को हाथों की ओट से
बचाने की कोशिश.

और इस तरह, मैंने किया तुम्हारा इंतज़ार
दुनिया की तमाम भाषाओं में.

2)
वे उदास लड़के
जिन्होंने छोड़ा अपना शहर
जिन्हें विदा करने आये कुछ दोस्त
जिनकी जेब में थे गिने-चुने पैसे
जिनके बक्शे में थे कुछ कपड़े, सफ़र के लिए रोटी
जिनके कंधे पर था पूरा घर
जिनके पास थी ढेरों यादें
और अनजान शहर में गुम हो जाने का भय.

जो नहीं जानते महानगरों की भाषा
जिन्होंने खाये बसों में धक्के
जिनके जूते पर जमती रही धुलें
जिनकी कमीज़ पर थी सिलवटें

एक अनजान शहर में
जिन्होंने चाहा कोई कंधा
टिकाने को सिर,
जिन्होंने चाहा कोई कान
सुनाने को हताशा,
जिन्होंने चाहा कोई हाथ
थाम ले वक़्त बे वक़्त

जिन्होंने कभी किसी स्त्री के लिए फूल नहीं खरीदे
जो नहीं गए कभी महंगे रेस्तरां
जिनका नहीं किया किसी ने इस शहर में इंतज़ार
जिन्होंने नहीं लिखा कभी कोई प्रेमपत्र
जिनके फोन की नहीं बजी कभी घंटी
जिन्होंने नहीं बताया कभी किसी को अपनी तबियत का हाल

जिनकी आंखों के कोर पर टिके रहे आंसू
जिनके होंठ पर पड़ी रहीं दरारें
हताशा की बारिश में भीगकर
जिन्होंने फूंकी सबसे सस्ती सिगरेटें और पी सबसे सस्ती चाय
हर खर्च के बाद, जिन्होने टटोली अपनी जेबें बार-बार

जो हुए निराश, पर नहीं की आत्महत्या,
उंहें याद आया घर
पिता का चेहरा, मां की उम्र, कुछ पुराने दोस्त

वे चलते रहे इन सड़कों पर
और खो गए सदा के लिए अपने औसत चेहरे लिए महानगरों की भीड़ में
वे उदास लड़के.

3)
अक्षमता
तुम्हारे शहर का तापमान बता दिया करता है गूगल,
कब होगी बारिश, और कब खिलेगी धूप
पर नहीं बता पाता, तुम आज दफ्तर से लौटते वक्त भीग गई
बुखार है, दवाइयां सिरहाने है, भूख नहीं है और
मैं चिंता ना करूं.

यूट्यूब कर देता है अपडेट ‘अली सेठी’ के नये गाने
पर नहीं बता पाता
तुम्हारा मन उदास है और इस वक़्त तुम ‘कोहेन’ को सुन रही हो
सामने की छत पर बच्चे पतंग उड़ा रहे
सारस का झुंड अभी अभी तुम्हारे ऊपर से गुजरा

इंस्टाग्राम बता देता है ‘मानव कौल’ की अगली किताब का नाम
पर नहीं बता पाता तुम किन पंक्तियों पर देर तक ठहरी रही, और तुम्हें मेरी याद आई
देर रात देखती रही अकेली तुम, आसमान में चांद

फोन का रिमाइंडर दिला देता है याद मुझे, मेरे जरूरत के सारे काम
पर नहीं कह पाता मैं अपना ख्याल रखूं

तमाम सूचनाओं से लैस ये दुनिया कितनी असमर्थ और छोटी जान पड़ती है
जब मैं इनसे पूछता हूं- तुम कैसी हो?
और ये चुप्प रह जाते हैं.

4)
दूसरी मुलाकात
तुमने क्या कुछ पा लिया,
मत बताओ
बताओ! मुझे, तुमने क्या कुछ खोया है
इस संसार में,
कितनी बार दिल टूटा
कितनी बार तुमने विश्वास किया और धोखा मिला

मुझे बताओ तुम्हारे आत्मा पर जख्म किस रंग का है
मुझे बताओ तुमने आत्महत्या की कोशिश की और रुक गए थे
तुम बताओ मुझे कि पिछली रात सांस रुक गई थी
एक ख़राब स्वप्न के कारण

तुम बताओ उन सभी अदृश्य हिंसा के बारे में जो तुम्हारे मन ने सही है
बताओ कि तुम लड़खड़ा कर कितनी बार गिरी
बताओ कि तुमने हाथ बढ़ाया और कोई ना मिला
बताओ वो सबकुछ जिसे तुमने अंधेरे तहखाने में बंद कर रखा है
और घुटती रहती हो हमेशा.

मिलो तो मुझे मत बताना कि तुमने मुझे खो कर कितना कुछ पा लिया.
मिलो तो बताना जिसे पाने को मुझसे दूर गई वहां तुमने कितना कुछ खोया है.
वे सारे संगीत, और वे सारे नृत्य

और, मैं उसी क्षण रखूंगा अपने झोले से निकाल तुम्हारी हथेली पर सबकुछ
जो तुमने पहली मुलाकात पर मुझे सौंपा था
तुम्हारे सारे सुंदर स्वप्न.

5)
प्रेमिका
जिनसे मैंने प्रेम किया
उन्होने पा लिया है मुझसे बेहतर प्रेमी
कहतीं हैं- वो उनसे प्रेम करती हैं!
मैं मुस्करा भर देता हूं.

मैं उनसे पूछता हूं- क्या कविताएं अब भी पढ़ती हो?
वें नजरें बचाती हुई कहती हैं- नहीं!
और गीत?
अब नहीं गुनगुनाती, फुर्सत नहीं!
और सपने?
नींद कम आती हैं!
फूल?
अब पसंद नहीं!
बारिश?
भीगती नहीं, जुकाम हो जाती है.
चांद?
अक्सर देखना भूल जाती हूं.
और मैं?
वे मुझसे कुछ नहीं कहतीं
मैं उनसे कुछ नहीं कहता

वे जानती हैं, मेरी चुप्पी लंबी है
वे उठ कर जाने लगती हैं
पिछली बार की तरह
और मैं मुस्करा देता हूं
हर बार की तरह.

6)
अचानक
अचानक आ जाती है मृत्यु की ख़बर
अचानक डूब जाता है शहर
अचानक ढह जाती हैं इमारतें
अचानक चुभ जाता है कांटा
अचानक फैल जाती है आग जंगल में

सारी त्रासदियां अचानक आती हैं
नहीं आता कभी कोई सुख अचानक
जैसे तुम कभी नहीं आई.
7)
इस जीवन में
इस जीवन में
बहुत सारी यात्राएं स्थगित रहीं
बहुत सारा प्रेम अधूरा रहा
बहुत सारे आंसुओं को आंखों के कोर ने सोख लिया
बहुत सारे नाम कंठ तक रुके रहे, जिन्हे पुकारा न जा सका

और इस तरह इस बीतते जीवन में
बहुत सारी हिचकियां
कभी मुलाक़ात न बन सकीं.

8)
मैं चाहता हूं
मैं चाहता हूं
तुम जाओ तो उतना भर दूर जाओ कि
एक अंतिम पुकार सुन सको मेरी
मेरे आखिरी समय की

अगर यह भी ना हुआ तो इतना भर जरूर हो कि
किसी आसान सा पता चुन
वहां रहने लगो तुम
कोई डाक पहुंच जाए तुम तक भटकते हुए
मेरी ख़बर लिए

अपने फोन का नम्बर कुछ ऐसा चुनो
कि लग जाये रॉन्ग नम्बर हर बार
तुम्हारे ही पते पर
ख़बर हो जाए तुम्हें मेरी मृत्यु की
जिसे कोई न कोई तुम तक पहुंचा रहा होगा

नहीं, मैं यह नहीं चाहता कि
तुम आंसू बहाओ
या कहो ‘उफ्फ’ भर
या छिपा लो आंचल के कोर में अपनी आंखें
या भाग कर सबसे, छिप जाओ गुसलखाने में

नहीं, मैं यह नहीं चाहता कि तुम्हारे आसपास मौजूद एक शख़्स भी देखें तुम्हें
शक भरी निगाह से
पूछे तुमसे तुम्हारा अतीत
जिसे तुम ज़माने पहले छोड़ चुकी हो

मैं बस चाहता हूं
तुम एक गहरी सांस लो और
आश्वस्त हो कर जियो कि
अब कहीं कोई,
तुम्हारा इंतजार नहीं करता.

9)
उम्मीद
बहुत कुछ खत्म होने पर भी
सब कुछ खत्म नहीं होता

जैसे किसी खंडहर हुए मकां के
गिर जाने पर
बची रहती है गीली मिट्टी
जहां उग आते हैं हरे पौधे, शैवाल, कुकुरमुत्ते
रहने आ जाते है नये छोटे-छोटे जीव
शुरू हो जाता है नया जीवन

जब लगे रिश्ते खत्म हो गए सारे
उसी खंडहर की तरह
तो तलाशना कहीं गीली मिट्टी
मन की ओट में
वहां उग सकते है संभावना के पौधे
बिल्कुल हरे-हरे
रहने आ सकता है प्रेम
और फिर
शुरू हो सकता है एक जीवन
नया-नया सा.

टैग: हिंदी साहित्य, कविता नहीं, हिंदी लेखक, कविता

Source link

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *