नई दिल्‍ली. मूसलाधार बारिश के कारण देश के कई इलाकों में हालात खराब हैं और प्रभावित लोगों को तत्‍काल मदद की जरूरत है. दिल्‍ली में यमुना का जल स्‍तर एक बार फिर बढ़ रहा है तो वहीं गुजरात के दक्षिणी और सौराष्‍ट्र क्षेत्र में भारी बारिश ने कहर बरपाया है. स्थिति और राहत और बचाव कार्यों की जानकारी लेने के लिए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) रविवार को गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल (Chief Minister Bhupendra Patel) और दिल्ली के उपराज्यपाल वी के सक्सेना से बात कर संबंधित क्षेत्रों में बाढ़ जैसी स्थिति के बारे में जानकारी ली.

गुजरात में शनिवार को दक्षिणी और सौराष्ट्र क्षेत्र के कई जिलों में भारी से बहुत भारी बारिश हुई, जिससे शहरी इलाकों में बाढ़ और जलभराव की स्थिति बन गई और कई गांव अलग-थलग पड़ गए. बांधों और नदियों में जल स्तर खतरनाक स्तर तक बढ़ गया है, जिससे प्रभावित समुदायों की सहायता के लिए तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गुजरात के कुछ इलाकों में बाढ़ जैसी स्थिति पर चर्चा करने के लिए मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल से टेलीफोन पर बातचीत की.

किस कारण से बन रही है मौसम की चरम स्थिति
मुख्यमंत्री ने उन्हें वर्तमान स्थिति और हाल की भारी वर्षा के कारण राज्य के सामने आने वाली चुनौतियों से अवगत कराया. जवाब में, अमित शाह ने जरूरतमंद लोगों की सहायता के लिए पर्याप्त संख्या में राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (एसडीआरएफ) और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) टीमों की उपलब्धता का आश्वासन दिया है. भारत के कुछ हिस्सों में मौसम की चरम स्थिति का सामना करना पड़ रहा है, एक नजर इस बात पर है कि इसके क्या कारण हो सकते हैं.

यमुना में फिर बढ़ा जलस्‍तर, दिल्‍ली में बाढ़ की संभावना
इधर, दिल्ली में यमुना नदी में जल स्तर में वृद्धि देखी गई है, जो रविवार को एक बार फिर खतरे के निशान को पार कर गया. उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में भारी बारिश के कारण हथिनीकुंड बैराज से डिस्चार्ज में वृद्धि ने राष्ट्रीय राजधानी में बाढ़ की स्थिति को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं. यमुना नदी में जल स्तर में संभावित वृद्धि से बाढ़ से प्रभावित निचले इलाकों में चल रहे राहत और पुनर्वास प्रयासों में बाधा आ सकती है.

गृहमंत्री अमित शाह ने की एलजी वीके सक्‍सेना से चर्चा
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने यमुना नदी में जल स्तर की स्थिति का आकलन करने के लिए दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना के साथ चर्चा की. इसका उद्देश्य बढ़ते जल स्तर से उत्पन्न संभावित चुनौतियों से निपटने के लिए रणनीति बनाना और पर्याप्त उपाय सुनिश्चित करना था. इसके अलावा, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि देश के कई अन्य क्षेत्रों में भी इस मौसम में मूसलाधार बारिश हो रही है. अभूतपूर्व बारिश के कारण कई क्षेत्रों में बाढ़ आ गई है, जिससे सामान्य जनजीवन बाधित हो गया है और संपत्ति और बुनियादी ढांचे को काफी नुकसान हुआ है.

भारत में अत्यधिक बारिश का कारण क्या है?
10 जुलाई को आउटलुक रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर भारत ने दो सक्रिय मौसम प्रणालियों के प्रभाव का अनुभव किया है. ,इससे क्षेत्र में मौसम की महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं हैं. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के प्रमुख मृत्युंजय महापात्रा  के अनुसार, एक मौसम प्रणाली राजस्थान से उत्तरी अरब सागर तक फैली एक ट्रफ थी, जो पश्चिमी विक्षोभ से जुड़ी थी. समवर्ती रूप से, मजबूत मानसून की स्थिति ने बंगाल की खाड़ी से उत्तर की ओर हवाएंं ला दीं. इन दोनों प्रणालियों का संगम जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के आसपास हुआ. परिणामस्वरूप, इन क्षेत्रों को अरब सागर और बंगाल की खाड़ी दोनों से प्रचुर मात्रा में नमी प्राप्त हुई, जिससे असाधारण रूप से भारी वर्षा हुई.

केदारनाथ में विनाशकारी बादल फटना जैसी घटना
मृत्युंजय महापात्रा ने कहा कि दो मौसम प्रणालियों के बीच इस तरह की घटना असामान्य नहीं है और अक्सर चरम मौसम की घटनाओं से जुड़ी होती है. उन्‍होंने कहा कि ऐसा खासकर उत्तर पश्चिम भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में होता रहता है. उन्होंने जून 2013 के मध्य में हुई एक पुरानी घटना का उदाहरण का हवाला दिया, जहां एक पश्चिमी विक्षोभ ने बंगाल की खाड़ी में कम दबाव प्रणाली से उत्तर की ओर नमी खींची थी. इसके कारण मानसून पूरे देश में रिकॉर्ड गति से (16 जून तक) पहुंच गया और इसके परिणामस्वरूप विनाशकारी बारिश हुई, जिसमें उत्तराखंड के केदारनाथ में विनाशकारी बादल फटना भी शामिल था. मृत्युंजय महापात्रा ने बताया कि पर्वतीय क्षेत्र विशेष रूप से ऐसे संगमों के दौरान भारी वर्षा के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं क्योंकि हवाएँ पहाड़ियों से टकराती हैं और ऊपर उठने के लिए मजबूर होती हैं, जिससे तीव्र वर्षा होती है.

ऐसी चरम मौसमी घटनाओं की बढ़ने की संभावना
यूके में यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के कीरन एम आर हंट, जिन्होंने भारत में एक रिसर्च स्‍टडी का नेतृत्‍व का किया. मृत्युंजय महापात्रा ने बताया गर्म होती दुनिया में इन संगमों के कारण होने वाली वर्षा की तीव्रता बढ़ सकती है. हालांकि इन अंतःक्रियाओं की आवृत्ति स्पष्ट प्रवृत्ति नहीं दिखा सकती है, किरन एम आर हंट ने बताया कि जब वे घटित होते हैं, तो उनके अत्यधिक वर्षा और बाढ़ से जुड़े होने की संभावना बढ़ जाती है. ऐसा माना जा सकता है कि दो सक्रिय मौसम प्रणालियों के अभिसरण से प्रभावित उत्तर भारत में हालिया मौसम पैटर्न के परिणामस्वरूप क्षेत्र में भारी वर्षा और महत्वपूर्ण मौसम घटनाएं हुई हैं. भविष्य में गर्म होती जलवायु में ऐसी चरम मौसमी घटनाओं की संभावना बढ़ सकती है.

जलवायु परिवर्तन – चरम मौसम की घटनाएं होंगी बार- बार
सीएनएन की एक रिपोर्ट के अनुसार, वैज्ञानिकों ने सख्त चेतावनी जारी की है कि मानवीय गतिविधियों के कारण बढ़ते जलवायु संकट के कारण चरम मौसम की घटनाएं अधिक बार और तीव्र हो जाएंगी. विश्व मौसम विज्ञान संगठन के वार्षिक जलवायु अपडेट ने अगले 5 वर्षों के भीतर एक महत्वपूर्ण जलवायु सीमा को पार करने की संभावना पर प्रकाश डाला क्योंकि वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तरों से ऊपर बढ़ना जारी है.

एशिया जलवायु परिवर्तन के परिणामों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील
रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग 4.4 अरब लोगों की विशाल आबादी वाला एशिया जलवायु परिवर्तन के परिणामों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है. क्षेत्र में चरम मौसम की हालिया घटनाओं के परिणामस्वरूप पानी की कमी, फसल की विफलता और आर्थिक असफलताएँ हुई हैं. पाकिस्तान में पिछले साल विनाशकारी बाढ़ आई, जिसमें 1,700 से अधिक लोगों की जान चली गई और लाखों लोग विस्थापित हुए. देश इस समय दशकों के सबसे खराब आर्थिक संकट से जूझ रहा है, जो पिछले साल की फसल के नष्ट होने से उत्पन्न मुद्रास्फीति के कारण और भी बदतर हो गया है.

भारत भी जलवायु संकट से प्रभावित
इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के अनुसार, भारत जलवायु संकट से गंभीर रूप से प्रभावित होने वाले देशों में से एक है, जिससे देशभर में 1.4 अरब लोग प्रभावित हो सकते हैं. देश को हाल ही में कुछ क्षेत्रों में भीषण गर्मी और अन्य में भीषण बाढ़ का सामना करना पड़ा है, जिससे महत्वपूर्ण व्यवधान पैदा हुए और लोगों को अपने घरों से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा.

वार्षिक गंभीर बाढ़ और भूस्खलन से लाखों लोग पलायन को मजबूर
रिपोर्ट में कहा गया है कि मानसून के मौसम के दौरान ऐसी चरम स्थितियों के प्रति भारत की संवेदनशीलता स्पष्ट होती है, जो वार्षिक गंभीर बाढ़ और भूस्खलन लाती है. असम जैसे राज्य, जहां की आबादी 31 मिलियन से अधिक है, इन घटनाओं के दौरान अत्यधिक पीड़ित होते हैं. बाढ़ के पानी ने सैकड़ों-हजारों लोगों को प्रभावित किया है, जिससे पलायन हुआ है और जीवन की दुखद हानि हुई है.

जलवायु परिवर्तन के सबसे कमजोर शिकार है गरीब लोग
भारत में चरम मौसम की घटनाओं का प्रतिकूल प्रभाव विशेष रूप से देश के गरीबों द्वारा महसूस किया जाता है, जिसमें शहरी मलिन बस्तियों में रहने वाले लगभग 472 मिलियन लोग भी शामिल हैं, जैसा कि विश्व बैंक ने रेखांकित किया है. प्रसिद्ध भारतीय पर्यावरणविद् सुनीता नारायण ने इस बात पर जोर दिया कि गरीब, हालांकि जलवायु समस्या पैदा करने के लिए जिम्मेदार नहीं हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन के सबसे कमजोर शिकार हैं.

टैग: Chief Minister Bhupendra Patel, गृह मंत्री अमित शाह

Source link

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *