हाइलाइट्स

भारतीय संविधान सभा ने राष्ट्रीय ध्वज को मूल डिजाइन के कुछ बदलाव के साथ स्वीकारा था.
इससे पहले 1921 को डिजाइन किए गए झंडे के केंद्र में गांधी जी का चरखा था.
झंडा अपनाते समय डिजाइन में चरखे की जगह अशोक चक्र को रख दिया गया था.

भारत के संवैधानिक इतिहास में कई तारीखें महत्वपूर्ण हैं लेकिन इनमें से कुछ तारीखें ऐसी हैं जिनके पर लोगों का ध्यान कम जाता है. भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में राष्ट्रीय ध्वज की भी अपनी कहानी है और अपने दिन हैं. 22 जुलाई का दिन ऐसा ही एक ऐतिहासिक दिन जब देश का संविधान तैयार रही संविधान सभा ने देश के लिए राष्ट्रीय ध्वज को अपनाया था. देश को आजादी मिलने से पहले 22 जुलाई 1947 को ही संविधान सभा ने इसी दिन देश के आधिकारिक ध्वज को अपनाने का फैसला किया था. लेकिन यह फैसला लेना आसान काम नहीं था इसें कई बदलाव करने पड़े थे.

नहीं था कोई आधिकारिक झंडा
उस समय भारत का अपना कोई आधिकारिक झंडा नहीं था. आजादी को मिलने में एक महीने से भी कम का समय था और आधिकारिक कार्यों में तब भी अंग्रेजों का ही झंडा इस्तेमाल हो रहा था. ऐसे में यह जरूरी हो गया था कि देश अपने आधिकारिक ध्वज का निर्धारण जल्दी करे और आजादी के लिए निर्धारित हो चुकी 15 अगस्त 1947 की तारीख से 23 दिन पहले ही ध्वज का चयन कर लिया गया.

एक दिन मे नहीं तय हो गया था ध्वज
बहुत सारे लोग यह मानते हैं कि चूंकि आजादी की लड़ाई मे कांग्रेस और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों ने एक झंडे का उपयोग किया था इसलिए देश के राष्ट्रीय ध्वज के चयन और उसे अंगीकार करने में कोई समस्या नहीं आई होगी. बल्कि हकीकत तो यह है कि यह एक बड़ा मुद्दा बन गया था. और इसके निर्धारण में समय भी लगा था. यानि यह एक दिन में नहीं हुआ था. बल्कि देश का झंडा बनने में कई साल तक लगे थे.

हाजारों सालों से नहीं था देश का झंडा
सच तो यह है कि भारत का हजारों साल के इतिहास में कोई झंडा ही नहीं था. हां कुछ बड़े साम्राज्य बने जरूर थे, जैसे कि 2300 साल पहले मौर्य साम्राज्य, जिसका करीब पूरे भारत पर ही कब्जा हो गया था. लेकिन तब भी देश के लिए कोई झंडा नहीं बना था. इसके बाद 17वीं सदी में मुगलों के भारत के बहुत बड़े हिस्से पर कब्जे के बाद भी झंडे की किसी ने सुध नहीं ली. आजादी से पहले  भारत में 562 से ज्यादा रिसायतें थीं लेकिन इनके भी अलग अलग झंडे थे.

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भारत की संविधान सभा ने राष्ट्रीय ध्वज को कुछ बदलावों के साथ स्वीकार किया था. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Pixabay)

1921 में पहला डिजाइन
भारत के राष्ट्रीय ध्वज को स्वतंत्रता सेनानी पिंगली वेंकैया ने डिजाइन किया था. उन्होंने 1916 से लेकर 1921 तक 30 देशों के राष्ट्रीय ध्वजों का शोध किया और 1921 में कांग्रेस के सम्मेलन में उनका डिजाइन किया हुआ राष्ट्रीय ध्वज पेश किया गया. इसमें लाल रंग हिंदू और हरा रंग मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व करता था. वहीं इसमें सफेद रंग और चरखा गांधी जी के सुझाव पर ही शामिल किया गया था. कांग्रेस ने अगस्त 1931 को अपने वार्षिक सम्मेलन में तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने का प्रस्ताव पारित किया.

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उसी झंडे को कुछ बदलावों के साथ अपनाया
22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने जो तिरंगा देश के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया गया वह 1931 का तिरंगा नहीं था.  देश के नए झंडे में लाल रंग की जगह केसरिया रंग हो गया. ऊपर केसरिया रंग तो सबसे नीचे हरा रंग तो वहीं बीच में सफेद रंग रखा गया. केसरिया रंग देश की धार्मिक और आध्यात्मिक संस्कृति का, सफेद रंग शांति का तो हरा रंग प्रकृति का प्रतीक माना गया.  है.

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1921 में डिजाइन किया गया राष्ट्रीय ध्वज के केंद्र में गांधी जी की चरखा हुआ करता था. (फाइल फोटो)

चक्र का महत्व
इसके अलावा तिरंगे में चरखे की जगह अशोक चक्र ने ले ली. संविधान सभा में झंडे का प्रस्ताव रखते हुए पंडित जवाहरलाल नेहरू ने प्रस्ताव को आगे बढ़ाते हुए बताया था कि झंडे की सफेद पट्टी में एक चक्र होगा जिसमें नीले रंग की तीलियां होंगी. चक्र सम्राट अशोक की विजय का प्रतीक माना जाता है. यह नीले रंग का चक्र धर्म चक्र भी कहा जाता है. इसे भारत की विशाल सीमाओं का प्रतीक माना गया. अशोक सामाज्य अफगानिस्तान से लेकर बांग्लादेश तक फैला हुआ था.

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गांधी जी इन बदलावों से खुश नहीं थे. जहां उन्हें चरखे हटाए जाने का दुख था तो बहुत से लोग चरखे को झंडे में रखने के पक्ष मे कतई नहीं थे. जबकि चरखा आजादी की लड़ाई का एक प्रतीक बन चुका था. लेकिन संविधान सभा के ही कई लोगों का विचार था कि झंडे के केंद्रीय स्थान पर कोई शौर्य का प्रतीक होना चाहिए. दिलचस्प बात यह है कि अशोक चक्र की तीलियों के नीले रंग को डॉ अम्बेडर ने पिछड़ों और दलितों की अस्मिता का प्रतीक बताया था.

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