दिल्ली. राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग वाली याचिका को सुप्रीम कोरट ने खारिज कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि किसी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने पर फैसला लेना कोर्ट का काम नहीं है. यह एक नीतिगत मामला है, जिस पर सरकार ही फैसला ले सकती है. आप सरकार के पास जाएं. हर सवाल का जवाब कोर्ट के पास नहीं है. बता दें कि राजस्थानी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने की लंबे समय से मांग चल रही है. इसे लेकर राजस्थानी भाषा मान्यता समिति ने कई बार प्रदर्शन भी किया. इसी साल राजस्थान में विधानसभा चुनाव भी होने हैं. अब एक बार फिर भाषा को सूची में शामिल करने की मांग जोर पकड़ने लगी है.

पिछले साल राजस्थानी भाषा की जागरूकता को लेकर राजस्थानी युवा समिति ने जोधपुर, जयपुर, उदयपुर, वाराणसी में भोलावणी उत्सव के जरिए हजारों राजस्थानियों में ‘हेलों मायड़ भासा रौ’ का अलख जगाने की कोशिश की थी. इस आयोजन में समिति के राष्ट्रीय सलाहकार राजवीर सिंह चलकोई ने बीकानेर के पृथ्वीराज राठौड़ के बृज बोली में लिखे दोहे सुनाकर यह प्रमाणित किया था कि बृज, मेवाती और अन्य बोलियां राजस्थानी भाषा का शताब्दियों से अभिन्न अंग हैं और ये बोलियां मिलकर ही राजस्थानी भाषा का निर्माण करती हैं.

राजस्थानी भाषा का काफी महत्व
राजस्थानी युवा समिति के राष्ट्रीय सलाहकार राजवीर सिंह चलकोई ने बताया था कि मुड़िया, महाजनी ये सब हमारी लिपियां रही हैं. लेकिन जिस तरह 8वीं अनुसूची में 10 भाषाएं देवनागरी में लिखी जाती हैं, उनमें एक और राजस्थानी भी जुड़ जाए. अगर अब 8 करोड़ राजस्थानियों की भाषा को सम्मान नहीं मिलता तो परिणाम सरकार की जिम्मेदारी होगी. राजवीर ने बताया था कि मेवाती, बृज का भी राजस्थानी में बेहद ही महत्त्व है.

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उन्होंने युवाओं को समझाते हुए बताया था कि जब मेवाड़ के राजा का लिखा खत हसन खां मेवाती समझ सकता है तो इसका मतलब है राजस्थानी एक ही भाषा है, अलग-अलग इलाके की कई बोलियां इसमें शामिल हैं.

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