नई दिल्‍ली. मेडिकल कॉलेजों में नॉन मेडिकल पोस्‍ट ग्रेजुएट टीचर्स की नियुक्ति किए जाने को लेकर अब बवाल पैदा हो गया है. देशभर के मेडिकल कॉलेजों में कई विभागों जैसे एनाटॉमी, फिजियोलॉजी, बायोकैमिस्‍ट्री, फार्माकोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी आदि विभागों में फैकल्‍टी की कमी के चलते सिर्फ एमबीबीएस कर चुके लोगों को भर्ती किया जा रहा है. जिसको लेकर ऑल इंडिया प्री एंड पैरा क्‍लिनिकल मेडिकोज एसोसिएशन ने जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया है. अब एआईपीपीसीएमए के पक्ष में दिल्‍ली एम्‍स की रेजिडेंट डॉक्‍टर्स एसोसिएशन भी आ गई है.

रेजिडेंट डॉक्‍टर्स एसोसिएशन एम्‍स दिल्‍ली के अध्‍यक्ष डॉ. विनय कुमार बताते हैं कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के पुराने नियमों के तहत बड़ी संख्या में मेडिकल कॉलेजों में नॉन मेडिकल पोस्‍ट ग्रेजुएट्स को बतौर टीचर भर्ती किया गया था. जिसके चलते मेडिकल कॉलेजों में ऐसी फैकल्‍टी की संख्‍या काफी बढ़ गई है. ऐसा मेडिकल पोस्‍ट ग्रेजुएट की कमी के चलते किया गया है. कुछ तो ऐसे हैं जो एमबीबीएस हैं और एमडी के क्‍वालिफाई ही कर पाए हैं.

डॉ. विनय कहते हैं कि न केवल हेल्‍थकेयर के लिए बल्कि मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस या पोस्‍ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहे छात्रों को नॉन पोस्‍ट ग्रेजुएट टीचरों द्वारा पढ़ाया जाना नुकसानदेह हो सकता है. सिर्फ पोस्‍ट ग्रेजुएट टीचर्स ही अनुभव के साथ पैरा क्लिनिकल स्‍टाफ को बेहर तरीके पढ़ाकर अच्‍छे हेल्‍थकेयर प्रोफेशनल तैयार कर सकते हैं.

यही वजह है कि एम्‍स आरडीए भी नेशनल मेडिकल कमीशन और केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय से अनुरोध करती है कि देशभर के मेडिकल कॉलेजों में पैरा क्लिनिकल विभागों में मेडिकल पोस्‍ट ग्रेजुएट्स की ही भर्ती कराई जाए. इसके साथ ही नॉन पोस्‍टग्रेजुएट फैकल्‍टी को एनएमसी के नियमों के अनुसार 15 फीसदी तक सीमित कर दिया जाए. आरडीए ने इस मांग को लेकर सभी मेडिकल छात्रों, डॉक्‍टरों, मेडिकल प्रोफेशनलों से भी सपोर्ट की मांग की है.

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(टैग्सटूट्रांसलेट)मेडिकल कॉलेज(टी)मेडिकल कॉलेज में स्नातकोत्तर शिक्षक

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