17 जुलाई को जम्मू-कश्मीर सरकार ने पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों के साथ काम करने, उनके लिए धन जुटाने तथा उनकी विचारधारा का प्रचार-प्रसार करने के आरोप में तीन कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया है. इन कर्मचारियों में जम्मू-कश्मीर विश्वविद्यालय के जनसंपर्क अधिकारी फहीम असलम, एक पुलिस कांस्टेबल अर्शिद अहमद ठोकेर तथा राजस्व सेवा के एक अधिकारी मुरावत हुसैन मीर शामिल हैं और इन्हें ‘राष्ट्र-विरोधी’ गतिविधियों के लिए बर्खास्त कर दिया गया. इन सरकारी कर्मचारियों पर आरोप साबित हो गया था कि ये पाकिस्तानी आतंकी गुटों के साथ सक्रिय थे.

इन लोगों को नौकरी से इसलिए बर्खास्त किया गया है, क्योंकि इनके खिलाफ कई आरोप हैं जिनमें पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों के साथ काम करना, आतंकवादियों के आने जाने में उनकी मदद करना, उनके लिए धन जुटाना, उनकी विचारधारा का प्रचार-प्रसार करना तथा ‘अलगाववादी एजेंडे को आगे बढ़ाना’ शामिल है. राज्य सरकार की एक विशेष समिति ने अपनी जांच में पाया कि ये सरकारी कर्मचारी पाकिस्तान का साथ दे रहे थे.

सरकारी कर्मचारियों के आतंकी कनेक्शन के लिए बना सख्त कानून
2019 में जम्मू-कश्मीर को मिली विशेष राज्य के दर्जे वाली स्थिति को रद्द करने और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने संविधान के अनुच्छेद 311(2)(सी) के तहत मामलों की जांच करने के लिए एक समिति बनाई गई है. 21 अप्रैल,2021 को सरकार द्वारा ‘देश की सुरक्षा के लिए खतरा या राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों’ से संबंधित किसी भी मामले में शामिल कर्मचारियों की फाइलों की पहचान और जांच करने के लिए एक विशेष टास्क फोर्स (एसटीएफ) की स्थापना की गई थी. जिनकी जांच के बाद राज्य के लेफ्टिनेंट गवर्नर को उनकी बर्खास्तगी का अधिकार दिया गया है. इस समिति की सिफारिशों के बाद अब तक चार दर्जन सरकारी कर्मचारियों को बर्खास्त किया जा चुका है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक लगभग 52 सरकारी कर्मचारियों को अब तक नौकरी से निकाला जा चुका है.

सरकारी कर्मचारियों के आतंकी कनेक्शन की जांच करती है विशेष समिति
कई विस्फोटों को अंजाम देने के आरोप में गिरफ्तार किए गए एक स्कूल शिक्षक आरिफ शेख, बांदीपोरा के कनिष्ठ अभियंता मंज़ूर अहमद इटू और कुपवाड़ा के सैयद सलीम अंद्राबी, समाज कल्याण विभाग के एक अर्दली को राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है. इटू ने कथित तौर पर आतंकवादियों के समर्थन में लोगों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और युवाओं को अपने रैंक में शामिल होने के लिए प्रेरित किया था. अंद्राबी को मादक पदार्थों की तस्करी में शामिल पाया गया था, जबकि शेख को पाकिस्तान से सक्रिय आतंकवादियों के निर्देश पर आईईडी लगाने में शामिल पाया गया था.

आरिफ़ शेख को इस महीने की शुरुआत में कई विस्फोटों को अंजाम देने में संलिप्तता के लिए गिरफ्तार किया गया था, जिसमें पिछले मई में वैष्णो देवी तीर्थयात्रियों को ले जा रही बस में एक विस्फोट भी शामिल था. आरिफ़ (शेख) एक सरकारी कर्मचारी है जो 2010 में ‘रहबर-ए-तालीम’ शिक्षक के रूप में शामिल हुआ था और 2016 में नियमित हो गया था. वह लश्कर-ए-तैयबा के ऑपरेटिव कासिम के संपर्क में आया था, जो रियासी का निवासी था और अब 2019 में अपने मामा कमरदीन के माध्यम से पाकिस्तान से काम कर रहा था. जम्मू-कश्मीर सरकार ने संविधान की धारा 311 (2) (सी) के तहत इन तीन सरकारी कर्मचारियों को बर्खास्त किया है.

जुलाई 2021 में सरकार ने अपने 11 कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया था, जिनमें हिजबुल मुजाहिदीन प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन के दो बेटे शाहीद युसुफ और सैयद अहमद शकील के अलावा पुलिस विभाग के दो कर्मचारी शामिल थे. उस वर्ष नवंबर में, सरकार ने आतंकवादी संगठनों के साथ कथित संबंधों के लिए दो वरिष्ठ अधिकारियों – जम्मू-कश्मीर जेल विभाग में एक उपाधीक्षक और सरकारी गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल के एक प्रिंसिपल की सेवाएं समाप्त कर दीं. सितंबर, 2021 में जम्मू-कश्मीर सरकार के छह कर्मचारियों को कथित आतंकी संबंध रखने और ओवरग्राउंड वर्कर के रूप में काम करने के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया. मई 2022 में लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा ने रसायन विज्ञान के प्रोफेसर अल्ताफ हुसैन पंडित को दो अन्य सरकारी कर्मचारियों (एक पुलिसकर्मी और एक स्कूल शिक्षक) के साथ, एसटीएफ की सिफारिशों के अनुरूप सेवाओं से हटा दिया गया था. जांच में पाया गया कि अल्ताफ तीन साल तक सक्रिय आतंकवादी था. 1990 में आतंकियों के साथ उसने सीमा पार कर पाकिस्तान में हथियार चलाने का प्रशिक्षण लिया और उसी साल कश्मीर लौट आया था. 2004 में सरकारी नियुक्ति के बाद भी अलगाववाद फैलाने में लगा था.

लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा की आतंक के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति
आतंकियों के परिवार वालों को भी सरकारी नौकरी से बाहर किया गया है. यहां तक की आतंकियों को घर पर पनाह देने वालों की संपत्ति भी जब्त की जा रही है. अक्टूबर 2021 में मनोज सिन्हा ने अलगाववादी सैयद अली शाह जिलानी के पोते अनीस-उल-इस्लाम को बर्खास्त किया था. अल्ताफ अहमद शाह उर्फ फंटूश ने इस्लामी जमात ए तुल्बा का गठन किया. ये जमात ए इस्लामी का छात्र विंग था. फंटूश श्रीनगर में इसका जिला अध्यक्ष रहा और अपने ससुर सैयद अली शाह जिलानी के तहरीक ए हुर्रियत का मुख्य सदस्य बना को भी सरकारी नौकरी से निकाला गया. अगस्त, 2022 में जम्मू-कश्मीर सरकार ने टेरर फंडिंग के आरोपी बिट्टा कराटे की पत्नी समेत अपने 4 कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया था. जेकेएलएफ के शीर्ष आतंकवादी फारूक अहमद डार उर्फ बिट्टा कराटे की पत्नी असबाह अर्जूमंद खान 2011 बैच की जेकेएएस अधिकारी हैं. अक्टूबर, 2022 में जम्मू-कश्मीर सरकार ने सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्ट के आधार पर, राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में उनकी कथित संलिप्तता के लिए अनुच्छेद 311 के तहत पांच कर्मचारियों को बर्खास्त करने का आदेश दिया था.

जम्मू कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर बनने के बाद मनोज सिन्हा ने एक ऐसा प्रशासनिक ढांचा खड़ा किया है, जिससे जम्मू-कश्मीर में आतंक को रोकने में खासी सफलता मिली है. आतंकियों के खिलाफ जंग, आतंकियों को पनाह देने वालों के खिलाफ सख्त कारवाई, आतंक और अलगाववाद के समर्थकों के पूरे इको सिस्टम को ध्वस्त करने की मुहिम में लगे हैं एलजी मनोज सिन्हा. पीएम मोदी के आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति को कश्मीर में ऐसा लागू किया है कि मानो आतंक का पूरा तंत्र चरमराने लगा है. सेना और पुलिस का मनोबल बढ़ा है इसलिए बैकफुट पर पहुंचे गिने चुने बचे हुए आतंकी निर्दोष गरीबों को निशाना बना रहे हैं. एलजी मनोज सिन्हा की पहल से कश्मीर घाटी में सिनेमा हॉल खुलने लगे हैं. पर्यटक इतनी बड़ी संख्या में पहुंचने लगे हैं कि होटलों में कमरे भी कम पड़ने लगे हैं. आतंकियों और आतंक का समर्थन करने वाले पड़ोसियों को एक और बड़ा झटका लगा जब श्रीनगर में जी-20 बैठक सफलतापूर्वक आयोजित कर ली गई. संदेश साफ है कि आतंक के खिलाफ आर पार की जंग में मिली सफलता से कश्मीर घाटी फिर से खिलने लगी है.

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