Gopaldas Neeraj Death Anniversary: ‘रंगीला रे’ गीत गोपालदास नीरज जैसा ही सन्त कवि ही रच सकता है

(डॉ. राजीव श्रीवास्तव)

अपने विद्यालयी जीवन में ही मुझे कवि नीरज को प्रत्यक्ष देखने-सुनने का अवसर तब मिला था जब अल्प आयु में मेरे भीतर साहित्य के संस्कार फलने-फूलने को आतुर थे. सात-आठ वर्ष की उम्र में तब गोपालदास नीरज और उन जैसे कवियों को कवि सम्मेलनों में सुनना ही वह प्रमुख कारक था जिसने मेरे अन्तस में साहित्यिक आचरण को विस्तार दे कर उसे सम्पन्नता प्रदान की. आगे के प्रत्येक वर्षों में इस महान व्यक्तित्व का सानिध्य मेरे लिये नित नवीन सौगात ले कर आता रहा जो अब मेरे स्मृतियों का अनमोल हिस्सा बन चुका है.

मैं तब कवि सम्मेलनों और मुशायरों में अपनी नियमित उपस्थिति बनाए हुए रखता तो था परन्तु मंच पर स्वयं कविता पाठ कभी-कभी ही विशेष अवसरों पर करता था. सार्वजनिक मंच पर किसी कवि सम्मेलन में अपने जीवन का प्रथम कविता पाठ करने का अवसर मुझे गीतों के राजकुमार कवि-गीतकार गोपालदास नीरज के साथ ही मिला था.

सदाबहार अभिनेता देव आनन्द के अत्यधिक प्रिय कवि थे नीरज. जब भी मैं देव आनन्द जी से मुम्बई में मिलता था हमारी बातचीत में गोपालदास नीरज जी का प्रसंग अनिवार्य रूप से आता था. हिंदी साहित्य में कवि नीरज की उपलब्धियां सर्वविदित हैं पर सिनेमा में साहित्य पिरोने और परोसने का जो अद्भुत कार्य नीरज ने किया है वह अद्वितीय है. संगीतकारों में शंकर-जयकिशन और सचिन देव बर्मन के संग उनका तालमेल इतना सहज था कि उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ इन्हीं के साथ मिल कर रचा था. गायक मुकेश का वो विशेष सम्मान करते थे और उन्हीं के स्वर में उनका जीवन दर्शन ‘बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं, आदमी हूं आदमी से प्यार करता हूं’ एक ऐसा सूत्र था जिसे वे उम्र भर थामे रहे.

राज कपूर के लिए जब नीरज जी ने लिखा ‘कहता है जोकर सारा ज़माना, आधी हकीकत आधा फ़साना’ तब राज इसे सुन कर इतने गदगद हो गये कि उन्होंने नीरज जी को अपने आलिंगन में भर लिया. राज कपूर ने तब उन्हें कहा था कि आपने मेरी पूरी कहानी का सार इन दो पंक्तियों में समेट कर रख दिया.

सिने गीतों में नीरज जी के सभी गीत विशेष हैं. प्रतीक, बिम्ब और उपमा का प्रयोग जिस सहजता के साथ नीरज ने अपने सिनेमाई गीतों में किया है वह उनकी कल्पनाशीलता और अद्भुत प्रतिभा का अनोखा उदाहरण है. कल्पना की अद्भुत जीवन्त प्रस्तुति का चित्रण जिस एक अन्य गीत में नीरज ने स्वप्न लोक में विचरते हुये गढ़ा है वह कवि-गीतकार नीरज की इस विशेष मनोभाव पर रची गई अब तक की सर्वश्रेष्ठ कालजयी रचना कही जाएगी. शिशु आगमन के पूर्व कल्पना का ऐसा जीवन्त चित्र कवि नीरज सा कोई कल्पनाशील भावप्रवण साहित्यिक व्यक्तित्व ही रच सकता था – ‘जीवन की बगिया महकेगी लहकेगी चहकेगी, ख़ुशियों की कलियां झूमेंगी झूलेंगी फूलेंगी’ (फ़िल्म : तेरे मेरे सपने-1971)

इसी प्रकार ‘रंगीला रे, तेरे रंग में यूं रंगा है मेरा मन’ गीत में जीवन के रूप को नीरज ने जिस सांचे में ढाल कर बिम्ब एवं प्रतीक के जिन अव्यवों के साथ परोसा है उसे उन जैसा कोई सन्त कवि ही रच सकता था. यह गीत हिंदी सिनेमा का ही नहीं अपितु हिंदी साहित्य में भी अपना एक विशिष्ट स्थान रखता है.

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