नई दिल्‍ली. भारत के चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) को चंद्रमा तक पहुंचने में 40 दिन लगेंगे, लेकिन अमेरिका का अपोलो मिशन (Apollo mission) केवल 3 दिन में चंद्रमा पर पहुंच जाएगा. आखिर ऐसा क्‍यों किया गया; भारत ने इतने अधिक समय वाला चुनाव क्‍यों किया? क्‍या इसका मंगलयान से कनेक्‍शन है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग के प्रयास के मिशन पर 14 जुलाई को चंद्रयान-3 को चंद्रमा पर लॉन्च किया था. अंतरिक्ष यान वर्तमान में अंतरिक्ष में घूम रहा है और 5 अगस्त तक चंद्रमा की कक्षा में पहुंचने की उम्मीद है और सॉफ्ट-लैंडिंग का प्रयास 23 अगस्त को होने की संभावना है.

भारत के चंद्रयान-3 ने पहला मिशन पूरा करने के बाद दूसरी परीक्षा भी पास कर ली है. वह अपने रास्‍ते पर सही क्रम में आगे बढ़ रहा है और यान की स्थिति सामान्‍य है. भारत को चंद्रयान-3 की सफलता से बड़ी उम्‍मीदें हैं. लेकिन भारत ने चंद्रमा तक पहुंच के लिए जो तरीका चुना है; उसमें बहुत अधिक समय लगेगा. अपोलो मिशन संयुक्त राज्य अमेरिका के केप कैनावेरल से प्रक्षेपण के बाद केवल तीन दिनों में चंद्रमा पर पहुंच जाएगा.

पृथ्‍वी से निकलकर सीधे चंद्रमा पर नहीं जाएगा चंद्रयान-3
भारतीय वैज्ञानिकों ने बताया कि फिलहाल हमारे पास शक्तिशाली रॉकेट की कमी है; जबकि चंद्रयान-3 मिशन को भारत के सबसे भारी रॉकेट, लॉन्च व्हीकल मार्क-III पर लॉन्च किया गया था, लेकिन यह अभी भी इतना मजबूत नहीं है कि मिशन को चंद्रमा के सीधे रास्ते पर ले जा सके. इसलिए यात्रा के लिए दूसरा रास्‍ता चुना गया है; जिससे इसके पूरा होने में बहुत अधिक समय लगेगा. पृथ्वी के चारों ओर चंद्रमा की अण्डाकार कक्षा का मतलब है कि हमारे ग्रह से इसकी दूरी अलग-अलग है, जिससे मिशन में जटिलता की एक और परत जुड़ गई है.

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मंगलयान की ‘गुलेल’ तकनीक का होगा इस्‍तेमाल
इसरो, चंद्रमा के चारों ओर अपना रास्ता बनाने के लिए पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का उपयोग करता है. उसी तरह जैसे उसने मंगल ऑर्बिटर मिशन (एमओएम) उर्फ ​​​​मंगलयान को मंगल की ओर धकेलने के लिए ग्रह के चारों ओर गुलेल का उपयोग किया था. चंद्रयान- 3 अपनी कक्षाओं को धीरे-धीरे बढ़ाने और चंद्रमा की कक्षा के साथ सिंक्रनाइज़ करेगा. पृथ्वी से जुड़े अभ्‍यास और चंद्र कक्षा सम्मिलन की एक सीरीज को नियोजित करता है.

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अपेक्षाकृत कम ईंधन और कम लागत में पूरा होगा मिशन
इन मिशनों में ‘द्वि-अण्डाकार स्थानांतरण’ (bi-elliptic transfers) की एक सीरीज नामक एक विधि का उपयोग किया गया था, जिसमें अंतरिक्ष यान की ऊर्जा को धीरे-धीरे बढ़ाने और इसके प्रक्षेपवक्र को समायोजित करने के लिए कई इंजनों को जलाना शामिल था. यह विधि अपेक्षाकृत कम ईंधन और कम लागत में मिशन को पूरा कर देती है, लेकिन इसमें बहुत अधिक समय लगता है.

पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का इस्‍तेमाल कर अंतरिक्ष यान बढ़ाएगा अपना वेग
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि गुलेल का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अंतरिक्ष यान चंद्रमा की ओर यात्रा करने के लिए अपने वेग को बढ़ाने के लिए पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का उपयोग करता है. यह खगोल विज्ञान और भौतिकी की एक जटिल गतिशीलता है. हालांकि यह अपोलो मिशन की तुलना में बेहद कम लागत और कम ईंधन में पूरा होगा. चंद्रयान-2 को 2019 में चंद्रमा तक पहुंचने में लगभग 48 दिन लगे थे. इस समयावधि के दौरान, मिशन टीम ने तय किया कि विस्तारित अवधि का उपयोग सटीक कक्षीय युद्धाभ्यास और अंतरिक्ष यान के प्रक्षेपवक्र की फाइन-ट्यूनिंग के लिए किया जाए, जिससे यह वांछित चंद्र कक्षा में प्रवेश करने में सक्षम हो सके.

चंद्र पर्यावरण का अध्‍ययन करने के लिए वैज्ञानिक प्रयोग भी होंगे
चंद्रयान-3 का मिशन केवल चंद्रमा तक पहुंचना नहीं है, इसका उद्देश्य चंद्रमा के इतिहास, भूविज्ञान और संसाधनों की क्षमता सहित चंद्र पर्यावरण का अध्ययन करने के लिए वैज्ञानिक प्रयोग करना भी है. इस मिशन का नेतृत्व रितु करिधल ने किया है, जिन्हें ‘रॉकेट वुमन ऑफ इंडिया’ के नाम से जाना जाता है, जो अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं को बढ़ावा देने में देश की प्रगति को दर्शाता है.

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