पेरिस. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पेरिस यात्रा के दौरान भारत और फ्रांस के बीच बेहद अहम रक्षा सौदे हुए हैं. दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों में उस समय एक नया मोड़ आया जब दोनों देशों के रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (डीपीएसयू) ने निर्यात के लिए मुंबई और कोलकाता में पनडुब्बी और लड़ाकू विमानों और पुर्जों के निर्माण के लिए दो सहमति पत्रों (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए.

दोनों समझौता ज्ञापन पीएम मोदी की ‘मेक इन इंडिया’ पहल को लॉन्च करेंगे, क्योंकि मझगांव डॉकयार्ड लिमिटेड संयुक्त रूप से तीसरे देश के लिए फ्रांसीसी नौसेना समूह के साथ स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों का विकास और निर्माण करेगा, जबकि नौसेना समूह के साथ कोलकाता जीआरएसई का समझौता ज्ञापन निर्यात के लिए सतह नौसेना लड़ाकू विमानों को बनाने के लिए है.

आने वाले समय पर है पीएम मोदी का फोकस
हालांकि मीडिया में कुछ लोगों ने कहा है कि आईएनएस विक्रांत के लिए 26 राफेल-मरीन लड़ाकू विमानों की खरीद या तीन अतिरिक्त स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों को फिर से ऑर्डर करने का भारत-फ्रांस संयुक्त बयान में उल्लेख नहीं किया गया है. वहीं तथ्य यह है कि साउथ ब्लॉक रक्षा मंत्रालय की खरीद प्रक्रियाओं में नहीं पड़ना चाहता था, क्योंकि रक्षा अधिग्रहण परिषद पहले ही दोनों परियोजनाओं की आवश्यकता को स्वीकार कर चुकी है. पीएम मोदी का फोकस आने वाले समय के लिए प्लेटफॉर्म तैयार करने के लिए फ्रांसीसी तकनीक के साथ भारत की प्रतिभा और श्रमिकों को जोड़ने पर था.

शाकाहारी मेनू के धागे में भी तिरंगा
फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों ने 13 जुलाई को एलिसी पैलेस में दो घंटे के निजी रात्रिभोज के दौरान वैश्विक मामलों और आगामी जी-20 पर चर्चा कर पीएम मोदी का स्वागत किया. फिर 1953 में फ्रांस द्वारा महारानी एलिजाबेथ की मेजबानी करने के बाद से 14 जुलाई को पहली बार बास्टिल दिवस पर लौवर संग्रहालय को बंद किया. यहां तक कि विशेष रूप से तैयार किए गए शाकाहारी मेनू का धागा भारतीय तिरंगे में था, न कि मेजबान देश का.

यूक्रेन युद्ध और भारत में जी-20 शिखर सम्मेलन पर भी चर्चा
दोनों नेताओं ने यूक्रेन युद्ध और भारत में होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन पर चर्चा की और राष्ट्रपति मैक्रों ने यूरोप में युद्ध को लेकर तनाव के बावजूद इस कार्यक्रम को सफल बनाने में भारत की मदद के लिए कुछ भी करने की प्रतिबद्धता जताई. जबकि मीडिया केवल 26 राफेल एम और तीन स्कॉर्पीन पनडुब्बियों पर ध्यान केंद्रित कर रहा था. दोनों नेताओं ने फैसला किया कि हमला करने वाली छोटी डीजल पनडुब्बियों को हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देशों के लिए बनाया जाएगा जो आक्रामक चीन के निशाने पर हैं.

इंडोनेशिया पहले ही कर चुका अनुबंध
इंडोनेशिया पहले ही फ्रांस के साथ दो स्कॉर्पीन श्रेणी का अनुबंध कर चुका है और चार अन्य के विकल्प के साथ अनुबंध कर चुका है. जबकि अमेरिकी पनडुब्बियां सभी परमाणु संचालित हैं, डीजल शक्ति के साथ स्कॉर्पीन हमलावर पनडुब्बियों को भूमध्यरेखीय जल में पता लगाना बहुत मुश्किल है, क्योंकि इसके इंजन को बंद कर दिया गया है. लगातार चल रहे परमाणु रिएक्टरों वाली परमाणु पनडुब्बियों को बंद नहीं किया जा सकता है और इसलिए उनका पता लगाना आसान है.

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