सावन का महीना चल रहा है. यह महीना भगवान भोले का प्रिय महीना होता है और लोग भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अलग-अलग तरीके से उनकी पूजा-आराधना करते हैं. इन दिनों हजारों-लाखों कावड़िया पवित्र नदियां हरिद्वार, गौमुख या गंगोत्री आदि से कावड़ में गंगाजल भरकर पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा करके भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं.

कावड़ यात्रा के दौरान बहुत से शिवभक्त धूम्रपान का सेवन करते हैं. कोई भांग पीता है तो कोई निषेध चरस-गांजे का भी सेवन करता है. इसके पीछे तर्क दिया जाता है कि यह तो शिव की बूटी है. ‘शिव की बूटी’ नाम पर बहुत से लोग तरह-तरह के नशे का सेवन करते हैं. सवाल यह उठता है कि क्या भगवान शिव खुद धुम्रपान करते थे. क्या वे चरस-गांजे का सेवन करते थे. क्योंकि उनकी बहुत-सी ऐसी तस्वीरें भी हैं जिनमें वे धुम्रपान करते नजर आते हैं. भांग के सेवन को लेकर तो तमाम कथाएं और भजन आदि खूब प्रचलित हैं. भांग और धतूरे को तो भगवान शिव पर अर्पण भी किया जाता है. जब भी इस बात को लेकर सवाल उठते हैं तो तमाम लोग धर्म का मामला कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं.

जब भी धर्म या आध्यात्म की बातें होती हैं तो कई सारे सवालों की बौछार पहले होने लगती है. मसलन, भगवान नीले या हरे रंग क्यों हैं, भगवान कृष्ण की 16 हजार 108 पत्नियां क्यों हैं, भगवान राम ने बाली को पेड़ के पीछे से क्यों मारा, भगवान राम ने सीता को निर्वासित क्यों किया, भगवान कृष्ण को ईश्वर क्यों मानते हैं…आदि…आदि एक नहीं सैकड़ों-हजारों सवाल उछलने लगते हैं. अगर कोई इन सवालों के जवाब देने का प्रयास करता भी है तो तमाम तरह के तर्क उठने लगते हैं. क्योंकि सवाल इतने और अलग-अलग विषयों के उठते हैं कि कोई धर्मग्रंथों और आध्यात्म का ज्ञाता ही इनके जवाब दे सकता है.

हिंद पॉकेट बुक्स से किताब आई है ‘साधु की वाणी’. अगर कहें कि यह साधु की वाणी ना होकर आकाशवाणी है तो कोई अतिशियोक्ति नहीं होगी, क्योंकि इसमें धर्म-आध्यात्म से जुड़े ऐसे 74 सवालों का जवाब देने का प्रयास किया गया है, जिनके माध्यम से लोगों की ज्यादातर जिज्ञासाओं को शांत किया जाता है.

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‘साधु की वाणी’ के माध्यम से मुंबई के प्रसिद्ध सन्यासी और विचारक नित्यानंद चरण दास धर्म और आध्यात्म से जुड़ी जिज्ञासाओं को शांत करने का प्रयास किया है. ‘साधु की वाणी’ नित्यानंद चरण दास की अंग्रेजी में बेस्टसेलर बुक ‘आस्क द मॉन्क’ (Ask the Monk) का हिंदी अनुवाद है. और इसे हिंदी में अनुवाद किया है शिल्पा शर्मा ने. शिल्पा शर्मा एक चर्चित पत्रकार और लेखक हैं. उन्हें पत्रकारिता और अनुवाद के क्षेत्र में दो दशकों से भी ज्यादा का अनुभव है. अब बात ‘साधु की वाणी’ की.

‘साधु की वाणी’ की टैग लाइन है- “जानिए हमारे जीवन की सबसे बड़ी दुविधाओं के समाधान.”

किताब के परिचय में मुलाकात होती है रुडयार्ड किप्लिंग से. मशहूर ब्रिटिश लेखक और कवि रुडयार्ड किप्लिंग लिखते हैं- “मैं छह ईमानदार लोंगों को अपने साथ रखता हूं (जो कुछ भी मैं जानता हूं वह उन लोगों ने ही मुझे सिखाया है.) उनके नाम हैंः क्या और क्यों और कब और कैसे और कहां और कौन.”

यहां लेखक लिखते हैं कि सवाल पूछना बुद्धिमानी की निशानी है. बात चाहे हमारे निजी जीवन की हो या कामकाजी जीवन की. सवाल पूछने की शक्ति को कम करके नहीं आंका जा सकता और यह हमारे जीवन के हर पहलू को प्रभावित करती है. जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं हमारी जिज्ञासा कम होती जाती है. समाज हमें इस बात का अभ्यास करवा देता है कि जवाब देना ज्यादा जरूरी है, फिर चाहे वह परीक्षा हो, इंटरव्यू में हो या फिर किसी अन्य चर्चा में.

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हितोपदेश के एक उद्देश्य का उल्लेख यहां किया गया है- “पशु और मनुष्य दोनों ही खाने, सोने, संभोग और स्वयं का बचाव जैसी साझा गतिविधियां करते हैं. लेकिन मनुष्य के भीतर एक विशेष गुण होता है कि वह आध्यात्मिक जीवन में सलग्न हो सकता है. अतः आध्यात्मिक जीवन के बिना मनुष्य और पशु एक ही स्तर पर हैं.”

‘साधु की वाणी’ में पाठक जैसे-जैसे आगे बढ़ता है आध्यात्मिक जीवन से जुड़े सवालों के जवाब मिलने शुरू हो जाते हैं. मसलन, भगवान कृष्ण नीले या हरे रंग के क्यों हैं? हालांकि प्रश्न का जवाब बड़े ही सपाट शब्दों में दिया गया है. जवाब पढ़ने के बाद पाठक संतुष्ठ हो, कहा नहीं जा सकता.

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इस जवाब में कहा गया है- “भगवान कृष्ण नीले हैं, क्योंकि वे एक व्यक्ति हैं और हर व्यक्ति को चुनाव का अधिकार है; वे नीले रंग का होना चाहते हैं और इसलिए उनका रंग नीला है.”

इसमें आगे कहा गया है कि अलग-अलग अवतार में वे अलग-अलग रंग धरते हैं. श्रीमद् भागवतम् में बताया गया है कि श्री कृष्ण दो अलग-अलग सहस्राब्दियों में गेहूंएं और लाल रंग वाले वराह के रूप में दिखाई दिए. भगवान राम के अवतार में उनकी रंगत रही थी.

इस सवाल के जवाब को पढ़ने से पहले लग रहा था कि कोई रोचक और ठोस बात पता चलेगी, लेकिन लेखक ने यह कहकर कि ईश्वर को केवल शास्त्रों के द्वारा समझा जा सकता है, अनुमान या तर्क द्वारा नहीं.

क्या भगवान शिव धूम्रपान या चरस-गांजा का सेवन करते हैं?
इसके जवाब में श्रीमद् भागवतम् के एक श्लोक का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि भगवान शिव सबसे बड़े वैष्णव हैं और सच्चे वैष्णव किसी भी तरह के नशे का सख्ती से परहेज करते हैं. तो भगवान शिव के धूम्रपान करने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता. इस सवाल को लेकर कई ऐसे तर्क दिए गए हैं जो पाठकों को संतुष्ठ करते हैं.

भगवान कृष्ण की 16,108 पत्नियां क्यों हैं?
जब भी भगवान कृष्ण की लीलाओं की चर्चा होती है तो लोग उनकी 16 हजार 108 पत्नियां हैं. इस बात को उठाकर लोग उनके चरित्र पर उंगली उठाने का प्रयास करते हैं. पुस्तक में इस प्रश्न के उत्तर में कहा गया है- राक्षस नरकासुर ने 16,100 राजकुमारियों का अपहरण कर लिया था. कैंद में रहते हुए राजकुमारियों ने स्वयं की रक्षा के लिए लगातार कृष्ण की प्रार्थना की. कृष्ण ने उनकी प्रार्थना सुनी और नरकासुर का वध करके राजकुमारियों को मुक्त किया.

राक्षस से बचाए जाने के बाद राजकुमारियों ने कृष्ण से विनती की कि वे उन्हें स्वीकार कर लें, क्योंकि समाज उन्हें स्वीकार नहीं करेगा. असीम कृपालु भगवान कृष्ण ने उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और उनसे विवाह कर लिया. रुक्मणी, सत्यभामा, जांबवती, कालिंदी, नागनजीति, भद्रा, मित्रविन्दा और लक्ष्मणा भगवान कृष्ण की आठ पटरानियां हैं.

भगवान कृष्ण गोपियों के साथ आधी रात को रास लीला क्यों करते हैं?
यह प्रश्न जिज्ञासा तो पैदा करता है लेकिन इसका जवाब निराशा. उत्तर में रासलीला के बारे बड़े अच्छे ढंग से समझाया गया है, लेकिन पाठक इस बात का जबाव कहीं नहीं कि भगवान आधी रात में रास लीला क्यों करते हैं. इसमें एक जगह उल्लेख किया गया है- जब हम प्रभु को किसी ऐसे कार्य में संलिप्त देखें, जिसका अर्थ समझना कठीन है तो बजाए उन पर आरोप लगाने के खुद को कर्म चक्र में उलझाने के, हमें विनम्र होकर यह सोचना चाहिए कि अरे, मैं तो इतना अबोध हूं कि यह समझ नहीं पा रहा हूं कि ईश्वर न ऐसा क्यों किया? दूसरे कदम के रूप में, हमें अपने सवाल का जवाब पाने के लिए ईश्वर के प्रति समर्पित भक्त के पास जाना चाहिए.

भगवान शिव की अनूठी भक्त, पति मानकर करती थीं आराधना, कहलाईं कन्नड़ की मीरा

पुस्तक के शुरू में लेखक प्रश्न किए जाने की वकालत करते हैं लेकिन यहां कह रहे हैं कि “हमें विनम्र होकर यह सोचना चाहिए कि अरे, मैं तो इतना अबोध हूं कि यह समझ नहीं पा रहा हूं कि ईश्वर न ऐसा क्यों किया?”

दोनों ही बातों में विरोधाभास है. इस पर लेखक को ध्यान देना चाहिए.

भगवान राम बाली को पड़े के पीछे से क्यों मारते हैं?
इस सवाल को लोग अक्सर उठाकर भगवान राम के मर्यादा पुरुषोत्तम होने पर उंगली उठाते हैं. लेखक ने इस सवाल का कई तर्कों के माध्यम से अच्छा उत्तर दिया है. इसमें बाली के वरदान का उल्लेख किया गया है जिसमें उसके विरोधी का आधा बल बाली को मिलने की बात कही गई है.

क्या भगवान राम मांसाहारी थे?
वनवास के दौरान भगवान राम द्वारा स्वर्ण मृग के वध को बहुत से लोग राम द्वारा मृग का मांस खाने से जोड़ते हैं. इस सवाल का जवाब लेखक ने बड़े ही सुंदर और तार्किक ढंग से दिया है. इसमें बताया गया है कि स्वर्ण मृग को चरता हुआ देखकर सीता उस पर मोहित हो गई थीं. वे उसे पालना चाहती थीं. यहां लेखक तर्क देता है कि राम एक कुशल धनुर्धर थे और अगर वे हिरण को मारना चाहते तो आराम से मार सकते थे. हिरण को इधर-उधर हवा में ऊंची-ऊंची छलांग मारता देख राम समझ गए कि यह कोई दानवी माया है. इसलिए उन्होंने हिरण का वध किया. इसके अलावा यहां वनवास के नियमों का भी उल्लेख किया गया है जिसमें राम वनवास में ऋषि का रूप धारण करके जाते हैं और सात्विक जीवन जीते हैं. ऐसे में उनके द्वारा हिरण के मांस के मांस के सेवन का प्रश्न ही नहीं उठता.

यदि भगवान कृष्ण ईश्वर हैं तो एक शिकारी के तीर से उनकी मृत्यु कैसे हुई?
बड़ा ही जायज प्रश्न है और ईश्वर को मानने वाले हर व्यक्ति के मन में कभी ना कभी जरूर पैदा होता है. इस प्रश्न के जवाब में लेखक ने भगवान कृष्ण के पुत्र सांबा द्वारा ऋषियों के समक्ष गर्भवती स्त्री का नाटक करके लड़का या लड़की पैदा होने का सवाल किया था. इस पर ऋषियों ने उन्हें श्राप दिया कि ना तो लड़का होगा, ना लड़की. बल्कि एक लोहे की गदा होगी जो पूरे यदु वंश के विनाश का कारण बनेगी.

यहां बताया गया है कि शास्त्रों में भगवान कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया गया है. ईश्वर अपने सहयोगियों के साथ धर्म की स्थापना के विशेष लक्ष्य के साथ आता है और जब वह पूरा हो जाता है तो वह अपने लोक लौट जाता है. आज से पांच हजार वर्ष पहले जब ईश्वर को अपनी लीला को समेटना चाहा तो उन्होंने यदुओं के लिए एक लीला रची और इस लीला में एक अभिशाप के कारण उनका अंत हो गया ताकि वे आध्यात्मिक दुनिया में लौट सकें.

इस सवाल के जवाब में विस्तार से बताया गया है जो जिज्ञासुओं की शंकाओं का समाधान करते हैं.

यदि ईश्वर ने सब कुछ बनाया है तो ईश्वर को किसने बनाया है?
यह एक ऐसा प्रश्न है जो सबसे ज्यादा पूछा जाता है और बच्चे तो अक्सर यह सवाल उठाते हैं. इस सवाल के जवाब में सभी लोग निरुत्तर नजर आते हैं. पुस्तक में इस सवाल का बड़ा ही सुंदर उत्तर दिया हुआ है- ‘ईश्वर’ शब्द ही ‘हर वस्तु और हर व्यक्ति के स्रोत’ को संदर्भित करता है. तो जो सभी का स्रोत है, उसका कोई स्रोत कैसे हो सकता है? वैदिक साहित्य के अनुसार, ईश्वर की परिभाषा है- सर्व कारण करणम् अर्थात वे सभी कारणों के कारण हैं.

इस परिभाषा का मतलब यह है कि हमारे चारों ओर मौजूद सही चीजों की उत्पत्ति का पता लगाने के दौरान वह बिंदु जहां हम रुकते हैं, वह ईश्वर है.

पुस्तक से गुजरते हुए हमें ऐसे तमाम सवालों के जवाब पढ़ने को मिलेंगे जिनके साथ हमारा मुकाबला कभी ना कभी तो जरूर होता है. जैसे-
– क्या सब कुछ पहले से ही निर्धारित है?
– क्या सब्जियों को खाकर भी हम हिंसा नहीं कर रहे हैं?
– आत्मा का आकार क्या है?
– जब ईश्वर सब जगह है तो मंदिर जाने की क्या जरूरत है?
– मृत्यु के बाद क्या होता है?
– हम मूर्ति पूजा क्यों करते हैं?
– जीवन का उद्देश्य क्या है?
– जब इस दुनिया को ईश्वर ने रचा है तो यहां इतने दुख क्यों हैं?
– हम ईश्वर को देख क्यों नहीं सकते?
– प्राकृतिक आपदाओं में मासूम लोगों की जान क्यों जाती है?

निश्चित ही पुस्तक कई सवालों के जवाब बड़ी कुशलता से देती है तो कहीं-कहीं पाठक को सवालों के चक्र में छोड़कर आगे बढ़ जाती है. लेकिन जिन सवालों से हम बार-बार टकराते हैं उन्हें एकत्र करके एक पुस्तक के रूप में प्रस्तुत करना निश्चित ही एक अच्छा प्रयास है. कुल मिलाकर पुस्तक पढ़ने योग्य और संग्रहणीय है.

पुस्तक: संत की आवाज
लेखक: नित्यानंद चरण दास
अनुवाद: शिल्पा शर्मा
प्रकाशक: हिंद पॉकेट बुक्स
कीमत: रु

टैग: पुस्तकें, हिंदी साहित्य, हिंदी लेखक, साहित्य

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