नई दिल्ली. पहले फिल्मों को हिट कराने के लिए मजबूत स्क्रिप्ट, अच्छा अभिनय और निर्देशन कौशल ही फिल्म को कामयाब बनाने का एक सरल तरीका हुआ करता था. इन सब के आधार पर साल 1964 में धर्मेंद्र और बलराज साहनी स्टारर फिल्म ‘हकीकत’ बनाई गई थी. देवानंद के बड़े भाई फिल्म निर्माता चेतन आनंद की इस फिल्म को भारतीय सिनेमा में युद्ध पर बनी सबसे कालजयी फिल्म माना जाता है. इस फिल्म को बनाने से पहले चेतन आनंद महज 25 हजार रुपए ना होने को लेकर काफी परेशान थे लेकिन बाद में कुछ ऐसा हुआ कि उनके हाथ में सीधा दस लाख का चैक आ गया था.

बात उस दौर की जब चेतन आनंद इस फिल्म को बनाने की तैयारी में थे और उनके पास फिल्म के लिए 25 हजार रुपए कम पड़ रहे थे. कोई फाइनेंसर भी मदद के लिए तैयार नहीं था. चेतन आनंद की पत्नी उमा की एक सहेली ने बताया कि उनके मामा प्रताप सिंह कैरो पंजाब के मुख्यमंत्री हैं, हम उनसे मदद ले सकते हैं…अगले दिन चेतन आनंद मुख्यमंत्री कैरो के सामने थे और मदद की गुहार लगा रहे थे. उन्होंने चेतन को 1962 के चीन युद्ध में पंजाब के शहीद हुए जवान पर फिल्म बनाने का आईडिया दिया. इसके बाद चेतन ने ‘हकीकत’ की कहानी उन्हें सुनाई और मुख्यमंत्री ने पंजाब के वित्त सचिव को आदेश दिया कि इन्हें 10 लाख रुपए का चैक दे दो. कहां वह 25 हजार के लिए तरस रहे थे और मिल गए दस लाख रुपए. ये दिलचस्प किस्सा अनु कपूर के शो ‘सुहाना सफर विद अनु कपूर’ में खुद अनु ने सुनाया था.

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कालजयी साबित हुई युद्ध पर बनी फिल्म
25 हजार की जगह 10 लाख का चैक पाकर चेतन आनंद का ये फिल्म बनाने का सपना हकीकत में बदल चुका था. निर्माता ने भी फिल्म ‘हकीकत’ इतनी शिद्दत के साथ बनाई कि वह फिल्म और गाने आज भी लोगों की आंखें नम कर देते हैं. इस फिल्म से बलराज साहनी, धर्मेन्द्र, विजय आनंद, प्रिया राजवंश, अमजद खान के पिता जयंत, शेख मुख्तार और सुधीर आदि कलाकार अहम भूमिकाओं में नजर आए थे. ‘हकीकत’ एक तरह से बॉलीवुड की पहली युद्ध फिल्म थी. फिल्म में धर्मेंद एक सैनिक की भूमिका में नजर आए थे. इस फिल्म ने न सिर्फ धर्मेंद्र की एक अलग इमेज गढ़ी बल्कि उस समय की चर्चित हीरो राजकपूर, देवआनंद और राजेंद्र कुमार को तगड़ी टक्कर भी दी थी.

फिल्म के गाने आज भी कर देते हैं आंखें नम
फिल्म के गाने कैफी आजमी ने और संगीत मदन मोहन ने दिया था. साल 1964 में बनी फिल्म ‘हकीकत’ के कई गाने काफी हिट साबित हुए थे. होके मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा.., जरा सी आहट होती है तो दिल सोचता है, कहीं वो तुम तो नहीं…, मैं ये सोचकर उसके दर से उठा था, इसके अलावा खासतौर पर इस फिल्म का सबसे लोकप्रिय गाीत साबित हुआ था ‘कर चले हम फिदा जाने तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों’ हुआ था. इस गाने के लिए कैफी साहब ने कहा था कि जब फिल्म खत्म हो जाएगी, उसके बाद ये गीत सिनेमाघरों में बजेगा…

ये गीत था फिल्म की असली जान
कैफी साहब की बात से चेतन बिल्कुल वाकिफ नहीं थे उन्होंने कहा था कि फिल्म खत्म होने के बाद तो दर्शक सिनेमा हॉल से चले जाएंगे, गाना कौन सुनेगा. तब उन्होंने कहा था कि ये गीत ही फिल्म की असली जान है और जब दर्शक घर जाने के लिए खड़े हो जाएंगे, जब हॉल में आवाज गूंजेगी…’कर चले हम फिदा जाने तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों’ असल में दर्शक उन तमाम शहीदों के सम्मान में खड़े रहेंगे और उन्हें श्रद्धांजली देंगे.

बता दें कि जैसा कैफी साहब ने कहा ऐसा ही हुआ फिल्म खत्म होने पर गीत हॉल में गूंजता तो लोगों की आंखें नम हो जाती थीं. आज भी लोग इस गाने को सुनते हैं तो उनकी आंखें नम हो जाती है. कैफी आजमी का ये प्रयोग किसी चमत्कार से कम नहीं था. हिंदी सिनेमा में ऐसा पहली बार हुआ था कि कोई गाना फिल्म खत्म होने के बाद बजता है. चेतन आनंद की इस फिल्म को दूसरी सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के पुरस्कार से भी नवाजा गया था.

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