नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने अडानी-हिंडनबर्ग मामले में दायर याचिकाओं पर सुनवाई 14 अगस्त तक स्थगित कर दी है. मामले की सुनवाई करते हुए मंगलवार को सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने जांच के स्टेटस के बारे में पूछा, जिस पर सेबी का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सेबी के पास जांच पूरा करने के लिए 14 अगस्त तक का समय है. सुप्रीम कोर्ट ने विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों पर भी सेबी के विचार मांगे थे. तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि उन्होंने न्यायालय को सौंपी गई रिपोर्ट में विशेषज्ञ समिति द्वारा दिए गए सुझावों पर अपना ‘सकारात्मक जवाब’ दाखिल किया है.

शीर्ष अदालत की पीठ में प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति प एस नरसिम्हा व न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा शामिल थे. पीठ ने सेबी से पूछा, ‘जांच की क्या स्थिति है?’ इस पर तुषार मेहता ने कहा कि शीर्ष अदालत ने मई में सेबी को अडानी समूह पर शेयर मूल्यों में छेड़छाड़ के आरोपों में जांच 14 अगस्त तक पूरी करने का समय दिया था और मामले में जांच चल रही है. विशेषज्ञ समिति ने कुछ सिफारिशें की हैं. हमने अपना जवाब दाखिल कर दिया है. इसका आरोपों से कोई लेना-देना नहीं है.’

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसे सेबी का जवाब नहीं मिला है और मामले से जुड़े अन्य कागजात के साथ इसे उपलब्ध कराया जाए, तो उचित होगा. शीर्ष अदालत ने कहा कि संविधान पीठ के समक्ष सूचीबद्ध कुछ अन्य याचिकाओं पर सुनवाई पूरी होते ही इस मामले को सुनवाई के लिए लिया जाएगा. संविधान पीठ उसके समक्ष सूचीबद्ध याचिकाओं पर बुधवार से सुनवाई शुरू कर सकती है. गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने इस साल 2 मार्च को, गौतम अडानी की अगुवाई वाले समूह द्वारा शेयर मूल्यों में हेराफेरी करने के आरोपों की जांच करने के लिए छह सदस्यीय समिति बनाने का आदेश दिया था. कारोबारी समूह पर यह आरोप अमेरिकी शॉर्ट-सेलर कंपनी हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में लगाए थे.

यह सुनवाई गत 15 मई को हुई थी, तब सेबी ने अडाणी-हिंडनबर्ग मामले में अपनी जांच पूरी करने के लिए 6 महीने का अतिरिक्त समय मांगा था. लेकिन उच्चतम न्यायालय ने भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) को गौतम अडानी की अगुवाई वाले समूह द्वारा शेयर मूल्यों में हेराफेरी करने के आरोपों की जांच पूरी करने के लिए 14 अगस्त तक का समय दिया था. सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एक्सपर्ट कमेटी ने मई 2023 में एक अंतरिम रिपोर्ट में कहा था कि उसने गौतम अडानी (Gautam Adani) की यों में हेर-फेर का कोई स्पष्ट पैटर्न नहीं देखा और कोई नियामक विफलता नहीं हुई.

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