दीपक पाण्डेय/खरगोन. खरगोन जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर मंडलेश्वर में दारुकावन में दुनिया का पहला शिवलिंग है. अब यह क्षेत्र श्री गुप्तेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि हजारों साल पहले भगवान शिव और माता पार्वती ने ऋषियों के श्राप से मुक्ति पाने के लिए इस शिवलिंग की स्थापना की थी. मंदिर के मुख्य द्वारा पर शिवलिंग के सामने नंदी भी नहीं हैं. श्रावण में हजारों भक्त यहां दर्शन करने पहुंचते हैं. मध्य प्रदेश शासन द्वारा मंदिर को पवित्र स्थल घोषित किया गया है.

मंदिर के पुजारी परमानंद केवट बताते हैं कि गुप्तेश्वर महादेव मंदिर अति प्राचीन मंदिर है. यहां जो शिवलिंग है वह स्वयं भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती द्वारा स्थापित है. नर्मदा पुराण, रेवाखंड, भागवत गीता में भी उल्लेख है कि नर्मदा परिक्रमा के दौरान इस शिवलिंग का दर्शन करना आवश्यक है. मंदिर में ही नर्मदा कुंड है जो सदैव नर्मदा जल से भरा रहता है. शिवलिंग के पास ही माता पार्वती की भी प्रतिमा है. बताया जाता है कि शिवलिंग गुफा में होने से यह मंदिर गुप्तेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है.

ये है पौराणिक कथा
पुजारी परमानंद बताते हैं कि पहले यह क्षेत्र दारुकावन के नाम से जाना जाता था. तब भगवान शिव और माता पार्वती भ्रमण करते हुए यहां पहुंचे थे. वन में ऋषि तपस्या कर रहे थे, ऋषियों की पत्नियां भी यहां मौजूद थीं. तब माता पार्वती ने भगवान शंकर से ऋषियों की तपस्या भंग करने की जिद्द की. जिस पर भगवान शंकर बाल रूप धारण कर नग्न अवस्था में नृत्य करने लगे. भगवान के नृत्य से ऋषियों की पत्नियां प्रभावित हुई. यह देख ऋषियों को गुस्सा आया और भगवान शंकर को श्राप दे दिया. जिसके बाद भगवान का लिंग गिर गया. यह देख ब्रह्म और विष्णु प्रकट हुए और कहा कि जिन्हें श्राप दिया है वह स्वयं भगवान शिव हैं, लेकिन श्राप वापस नहीं हो सकता था, तब ऋषियों ने भगवान को उपाय बताया कि भगवान को पुनः लिंग कैसे प्राप्त होगा.

ऋषियों ने कहा कि शंकर भगवान को शिवलिंग के रूप में यहीं रहना होगा. शिवलिंग पर जब महिलाएं जल चढ़ाएंगी, पूजा करेंगी, तब धीरे-धीरे श्राप का असर कम होगा. तब भगवान शंकर और माता पार्वती ने पास ही नर्मदा नदी से एक पत्थर लिया और अनादि लिंग के रूप में उसकी यहां स्थापना की. जो अब गुप्तेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है.

रात में सुनाई देती हैं घंटियों की आवाज
पुजारी परमानंद केवट का कहना है कि भगवान शिव ऋषि अगस्त्य मुनि के इष्ट देव है. कई बार यहां चमत्कारिक घटनाएं भी हुईं. रात रुकने वाले संतों के मुताबिक उन्हें रात में घंटियों और आरती की आवाज सुनाई देती हैं. उनका मानना है कि अगस्त्य मुनि गुप्त रूप में यहां आते हैं और शिव की आराधना करते हैं. परमानंद कहते हैं कि सन् 1984 में चंदनपुरी बाबा यहां आए थे उन्होंने ही मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था. बाबा चंदनपुरी का यह मानना था कि यही दुनिया का पहला शिवलिंग है और यहीं से शिव पूजा शुरू हुई है.

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