प्रकृति से मिली प्रतिभा और इस हुनर को मिले रियाज के साथ ने ऐसा करिश्मा रचा है जिसे हम बेगम परवीन सुल्ताना कहते हैं. उन्हें सुनना हमेशा इबादत में शामिल होने जैसा होता है. आवाज ऐसी कि नीम अंधेरे में रोशन चिराग हो जैसे. उनकी गायकी एक ऐसी शक्ति है जो उंगली पकड़ कर हमें तमाम झंझावातों से अलग सुकून की डगर पर ले जाती है. भीतर गहरे उतरते स्वर का गुरुत्व हमें ऐसी लघुता देता है कि हम स्वत: ही सत्व की ओर अग्रसर होते जाते हैं. फिर चाहे उन्हें सामने बैठ कर सुना जाए या रिकार्ड पर. फिर चाहें वे कोई भी राग, किसी भी घराने की विशिष्टता के साथ प्रस्तुत करें, श्रोता उनकी गायकी को सुकूनबख्श ही पाते हैं. उन्हीं के शब्दों में कहें तो गायन के वक्त उनके ख्याल में एक श्वेत केनवास होता है और वे अपने गायन के जरिए उस पर रागों का रंग भरती हैं. रागों को बांधती नहीं है, खुला छोड़ देती हैं क्योंकि रागों को बांधना उन्हें चिडि़या को कैद करने की तरह लगता है.
चाहे किसी को शास्त्रीय संगीत की जानकारी भले न हो लेकिन ज्यों ही फिल्म ‘कुदरत’ के गाने ‘हमें तुमसे प्यार कितना’ का जिक्र किया जाए तो वह बेगम परवीन सुल्ताना को याद कर लेता है. वे ऐसी विलक्षण गायिका हैं जिन्हें 1976 में महज 26 वर्ष की उम्र में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. इतनी कम उम्र में पद्म पुरस्कार पाना अपने आप में एक कीर्तिमान है. 1999 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और 2014 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. अन्य सम्मानों की सूची लंबी है. 10 जुलाई उन्हीं बेगम परवीन सुल्ताना का जन्मदिन है. 10 जुलाई 1950 में असम के नागांव शहर के ढाकापट्टी में जन्मी परवीन सुल्ताना की प्रतिभा को माता-पिता ने बचपन में ही पहचान लिया था. मां ने जोर दिया तो संगीत के जानकार पिता इकरामुल माजिद बेटी के पहले गुरु बने और नन्ही परवीन को उन्होंने रियाज से जोड़ दिया. परवीन सुल्ताना की ललक को देखते हुए पिता उन्हें पंडित चिन्मय लाहिड़ी से संगीत की शिक्षा दिलवाने के लिए कोलकाता ले आए. गुरु पं. चिन्मय लाहिड़ी को विभिन्न घरानों में गायिकी की महारत हासिल थी. जब गुरु अस्वस्थ रहने लगे तो उन्होंने किराना घराने के उस्ताद दिलशाद खान से परिचय करवाया और परवीन उनकी शिष्या बन गईं. बाद में परवीन सुल्ताना की शादी इन्हीं उस्ताद दिलशाद खान से हुई.
यह तथ्य दिलचस्प है कि बेगम परवीन सुल्ताना पटियाला घराने की गायिका है मगर उनके उस्ताद और पति दिलशाद खान किराना घराने के गायक हैं. भोपाल में हुई मुलाकात में बेगम परवीन सुल्ताना कहती हैं कि यही तो संगीत की खूबसूरती है जहां गुरु ने अपनी शिष्या पर किसी खास घराने को अपनाने का दबाव नहीं बनाया और शिष्या ने भी गुरु की सीखों को अपनी गायिकी में नीर-क्षीर की तरह शामिल कर लिया.
देश और दुनिया में अनगिनत शास्त्रीय संगीत की महफिलों को रोशन कर चुकीं बेगम परवीन सुल्ताना ने फिल्मों में कम ही गाया है लेकिन जितना गाया है वह बेमिसाल है. जैसे ‘पाकीजा’ का गीत ‘कौन गली गयो श्याम’ हो या ‘कुदरत’ फिल्म का गाना ‘हमें तुमसे प्यार कितना’.
‘पाकीजा’ फिल्म अपने बनने के दौरान ही कई तरह से चर्चा में आ गई थी. इस फिल्म में बेगम परवीन सुल्ताना के गाने का भी अपना एक इतिहास है. एक साक्षात्कार में बेगम परवीन सुल्तान ने बताया था कि उस वक्त में सिर्फ 15 वर्ष की थीं. प्रख्यात संगीतकार नौशाद एक संगीत कार्यक्रम में शामिल हुए थे जहां बेगम परवीन सुल्तान ने अपने गायक की प्रस्तुति दी थी. उसके बाद नौशाद ने उनसे पूछा था कि क्या वे उनके लिए गाएंगी. बेगम परवीन सुल्ताना ने हां कह दी और इस तरह उनका हिंदी फिल्म जगत में आगमन हो गया. वे बताती हैं कि उस वक्त वे बहुत छोटी थीं और उन्हें पता ही नहीं था कि वे किन बड़े लोगों के लिए गा रही हैं. अब जब याद करती हैं तो अहसास होता है कि उन्होंने कि महान हस्तियों के साथ काम किया है.
फिल्म ‘कुदरत’ के ख्यात गीत ‘हमें तुमसे प्यार कितना’ को मेल वाइस में किशोर कुमार तथा फीमेल वाइस में बेगम परवीन सुल्ताना ने गाया है. संदर्भ बताते हैं कि पंचम दा यानी आरडी बर्मन ने बेगम परवीन सुल्ताना को केवल शुरुआती संगीत रचना बताई थी. उन्हें गाने में प्रयोग की छूट दे दी थी. इस गाने का बेगम परवीन सुल्ताना ने अपनी तरह गाया था. किशोर कुमार ने परवीन सुल्ताना का गाना रिकार्ड होने के बाद अपना गाना रिकार्ड करवाया था. दोनों स्वरों में इस गीत के प्रशंसकों का बड़ा वर्ग है मगर पुरस्कार की बात करें तो इस गाने के लिए बेगम परवीन सुल्ताना को 1981 में बेस्ट महिला पार्श्वगायिका का फिल्मफेयर अवार्ड मिला था. फिर सुपर हिट फिल्म ‘गदर’ में गाई ठुमरी ‘आन मिलो सजना’ भी बेहद पसंद की गई है.
फिल्मी गीतों की जगह बेगम परवीन सुल्ताना ने हमेशा शास्त्रीय संगीत को तवज्जो दी है. वे मानती हैं कि शास्त्रीय संगीत और इसकी साधना वास्तव में ईश्वर की आराधना है. इंस्टेंट सफलता के इस दौर में बेगम परवीन सुल्ताना संगीत साधकों की उस पीढ़ी की प्रतिनिधि हैं जो रियाज को अनिवार्य मानते हैं. वे कहती हैं कि संगीत साधकों के लिए अभ्यास अनिवार्य दिनचर्या की तरह है. जैसे अपने दांत ब्रश करना. एक दिन भी रियाज न करने का अर्थ है गायिकी में कई दिन पीछे हो जाना. उन्होंने एक दिन में सात-आठ घंटों तक अभ्यास किया है. अब उम्र की बाध्यता के चलते वे इतना अभ्यास नहीं कर पाती लेकिन शायद ही कोई दिन गुजरता होगा जब वे सुरों की साधना नहीं करती हैं.
बेगम परवीन सुल्ताना का गायन उनकी जन्मजात प्रतिभा और सतत रियाज का परिणाम है. इसीलिए उन्हें सुनना हमें अलौकिक लगता है.
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पहले प्रकाशित : 11 जुलाई, 2023, 11:47 पूर्वाह्न IST
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