नई दिल्‍ली. राष्‍ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) को लेकर शरद पवार (Sharad Pawar) और अजित पवार ( Ajit Pawar) के अपने-अपने दावे हैं, लेकिन चुनाव आयोग (Election commission) किसे असली पार्टी मानेगा; इस पर सबकी निगाहें जमी हुई हैं. ऐसा माना जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के थ्री टेस्‍ट फॉर्मूले पर चुनाव आयोग फैसला देगा और असली एनसीपी को पार्टी के लिए आरक्षित ‘अलार्म घड़ी’ प्रतीक चिह्न मिल जाएगा. पार्टी दो धड़ों में बंट चुकी है और दोनों गुटों ने खुद को असली पार्टी बताया है; और दूसरे के दावे को खारिज किया है. यह मामला चुनाव आयोग पहुंच चुका है और अब चुनाव आयोग ही इस पर फैसला करेगा. कुछ ऐसी ही स्थिति एक साल पहले महाराष्‍ट्र में बनी थी, जब एकनाथ शिंदे ने उद्धव ठाकरे को चुनौती देते हुए अपना दावा सामने रखा था.

एनसीपी को लेकर चुनाव आयोग क्‍या फैसला कर सकता है और वह कौन सा फॉर्मूले पर भरोसा कर सकता है; इस संभावना को लेकर टाइम्‍स ऑफ इंडिया ने दो पूर्व चुनाव आयुक्‍तों से बातचीत के आधार पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की है. इसके आधार पर कहा गया है चुनाव आयोग साल 1971 में सादिक अली केस को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को आधार मानते हुए अपना फैसला दे सकता है. इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने भी कायम रखा था और तब से इस फैसले को काफी महत्‍वपूर्ण माना जाता है.

सादिक अली केस का फैसला चुनाव आयोग के लिए एक लाइटहाउस की तरह
पूर्व चुनाव आयुक्‍त सुनील अरोड़ा ने कहा कि सादिक अली केस का फैसला चुनाव आयोग के लिए एक लाइटहाउस की तरह है. इसमें कांग्रेस की टूट वाले मामले में पार्टी का चुनाव चिह्न जगजीवन राम वाले गुट को दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने पार्टी का चुनाव चिह्न को लेकर कुछ जरूरी कदम उठाए जाने चाहिए ताकि इसकी जांच किसी संदेह में न फंसे. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव चिह्न को लेकर विवाद की स्थिति बनने पर तीन मौलिक मानदंड तय किए थे. इसमें पार्टी के लक्ष्‍यों और उद्देश्‍यों की जांच, पार्टी के संविधान की जांच और बहुमत की जांच.

पार्टी के गुट, लक्ष्‍यों और उद्देश्‍यों से भटक तो नहीं रहे
रिपोर्ट में कहा गया है कि चुनाव आयोग सबसे पहले यह समझता है कि पार्टी के गुट, लक्ष्‍यों और उद्देश्‍यों से भटक तो नहीं रहे, क्‍या मतभेद और अलग होने की वजह यही तो नहीं है. दूसरा चुनाव आयोग यह देखता है कि पार्टी क्‍या अपने संविधान के मुताबिक ही चलाई जा रही थी या नहीं, और तीसरा मानदंड गुटों के बीच विधायिका और पार्टी संगठनात्मक ढांचे में किसकी पकड़ ज्यादा मजबूत से जुड़ा हुआ है. हालांकि पूर्व सीईसी ओपी रावत कहते हैं कि एआईएडीएमके के ‘दो पत्‍ते’ निशान को लेकर जब विवाद था तब चुनाव आयोग के पास 2 ट्रक भरकर हलफनामे पहुंचे थे. ऐसे में जांच करना संभव नहीं होता है.

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