नई दिल्ली. बागेश्वर धाम के प्रमुख धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने न्यूज 18 इंडिया के विशेष कार्यक्रम में धर्म और आध्यात्म से लेकर राजनीति तक खुलकर बात की. उन्होंने शो के दौरान सवालों के एक-एक कर जवाब दिए. अपने नाम को लेकर धीरेंद्र शास्त्री ने कहा कि ‘हमें जब कोई बाबा कहता है तो हमें हर्ट होता है. आप हमें आचार्य जी, पंडित जी बुला सकते हैं. उन्होंने कहा कि हमने संन्यास नहीं लिया है. हम दाड़ी भी नहीं रखते हैं. आप हमें शास्त्री जी कह सकते हैं ये हमें प्रिय है.’

न्यूज 18 इंडिया के मैनेजिंग एडिटर किशोर अजवाणी ने धीरेंद्र शास्त्री से कई सवाल किए. यहां पढ़ें बागेश्वर धाम के प्रमुख ने क्या दिए जवाब…

सवाल- यह बाबा बुलाने का चलन कहां से शुरू हुआ?

जवाब- यह सब आप लोगों की देन है. आई एम नॉट बागेश्वर. हम तो धीरेन्द्र कृष्ण हैं. यह आप लोगों की देन है उसे हम स्वीकार कर रहे हैं.

सवाल- जब आपने संन्यास नहीं लिया तो आपके पास लोग भगवान मान कर आते हैं?


जवाब-
हम कोई इश्वर नहीं हैं. न हम कोई महापुरुष हैं. हम सनातन के सिपाही हैं. सबको विनम्रता से हाथ जोड़कर निवेदन करते हैं हम भगवन नहीं हैं. हम अपने गुरु के शिष्य हैं, सेवक हैं. हमें जो हनुमान जी और गुरु प्रेरणा से जो काम सौंपा गया है, हमें सनातन संस्कृति को बचाना है. पुनः सनातन स्थापित करना है और हम उसी के सिपाही हैं.

सवाल- यह बोध आपको कब हुआ?

जवाब- हमारी परम्परा के अनुसार तीन पीढ़िया गुजर गई हैं. हम मंदिर की सेवा पीढ़ी दर पीढ़ी कर रहे हैं. आचार्य पुजारी पद पर एक न एक वहां उपस्थित रहता है. हमारे पिताजी दादा गुरु ने 40 वर्ष सेवा की है. हम तीसरी पीढ़ी हैं. हमारे दादा जी की माताजी भी बागेश्वर महादेव की उपासक थीं. बचपन काल में ही अभावों का जीवन जिया. हमारे दादा महापुरुष थे. उन्हें हनुमंत कृपा प्राप्त थी. उस जमाने में लोग उनके पास आते थे. ऑफिसर्स गाड़ी लेकर आते थे. जीवन बड़ा विचित्र था. उन स्थितियों का वर्णन करना असंभव है.

एक रात का जिक्र करते हुए धीरेंद्र शास्त्री ने कहा, बागेश्वर मंदिर के पास हमारी बाह पकड़कर एक दिन हमारे गुरु ले गए. गुरु महापुरुष थे. हमारे दादाजी सात-आठ फीट के थे. उसी रात को एक घटना घटती हैं वो टीवी का विषय नहीं है. एक लाइट जैसा प्रकाश होता है. हम अति भयभीत हो गए. उन्होंने कहा कह दो..तुम हमारे और हम तुम्हारे और हमने कह दिया. इसके बाद सब हो गया.

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सवाल–
तब तक आप खेलने कूदने वाले आम बच्चे थे?
जवाब- हम अभी आम ही हैं. बच्चे ही हैं. अब भी खेल लेते हैं, मंचों पर खेल लेते हैं. आप लोगों से खेल लेते हैं. यह भी तो एक खेल ही है.

सवाल– आप पहले स्वछन्द दिखते थे हमारे ही प्रोग्राम आधी हकीकत आधा फसाना में, वो अब कम दिखता है.

जवाब- सांसारिक प्रवृत्तियों को द्रष्टिकोण रखते हुए ताकि बच्चों पर गलत असर न जाए तो उस मर्यादा का ध्यान रखते हैं. बाकी हम तो अभी भी वही मनमौजी हैं. बेट बॉल बाल उठाकर खेलने लग जाते हैं.

सवाल- आपने धाम में कब बैठना चालू किया?

जवाब- 2012 के बाद हमने परमानेंट वहां झोपड़ी बनाई और सेवा करने लगे. गांव वाले आने लगे. किसी की भैंस गुम गई, किसी की बकरी गुम गई… फिर वो हम बताने लगे. यह सब गुरु कृपा से पता चलता था. दादा गुरु के जो गुरु थे, सन्यासी बाबा जिनका हम जयकारा लगाते हैं उन्होंने सवा करोड़ हनुमान चालीसा का पाठ करके हनुमान जी को प्रकट किया था. हनुमान जी ने साक्षात दर्शन दिए थे. कहा था जाओ अब इस धाम पर जो भी आएगा वो झोली भरकर ही जायेगा. तुम्हारे वंश में एक न एक यहां सेवा करेगा.

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सवाल-
तो यह कोई जादू नहीं है?

जवाब- हमारे भारत में कई जगह हैं ओडिशा में कोणार्क मंदिर के पास एक जगह है. वहां तामपत्र में लिख कर आता है. हमारे दादाजी ने भी बताया यह जो परम्परा हमारे पास है. यह नई नहीं है. वाल्मीकि जी के पास भी थी. उन्होंने पर्चे पर लिख कर रख दिया था कि आततायी रावण का वध अयोध्या नगरी में दशरथ नन्दन राम करेंगे. केवट का कल्याण करेंगे. शबरी के घर जायेंगे. लंका पार करेंगे. जो उन्होंने पर्चे पर लिखा वो यथार्थ हुआ.

सवाल- बचपन में स्कूल जाते होंगे?

जवाब- हम बहुत उपद्रवी थे. साथ में सहपाठी पूछते थे कौन सा सब्जेक्ट गडबड़ हो रहा है. हम बता देते थे कि तुम्हारे 55 परसेंट ही बन रहे हैं. थोड़ी और मेहनत करो. ऐसी नौबत आती थी कि हमारे शिक्षक बोलते थे कि आप स्कूल मत आओ, क्योंकि हम सभी क्लास एक्कठी कर लेते थे. अगर हम नौवीं क्लास में बैठे तो क्या 11 वीं क्या 12 वीं सब इक्कठे हस्त रेखा देखते थे. इस पर प्रिंसिपल बोलते थे कि आप स्कूल मत आया करो. हम कहते थे कि गुरूजी हमारा नाम कट जाएगा.. वो कहते थे कि तुम्हारा नहीं कट सकता.

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सवाल-
आपको तो पेपर पहले मिल जाता होगा?

जवाब- नहीं हमने आज तक अपने लिए कभी सिद्धि का इस्तेमाल नहीं किया. न ही दुरूपयोग किया. किसी के बिना भाव रखे जानने की कोशिश नहीं की. आप भाव रखेंगे तब हम अपना कर्त्तव्य निभाएंगे. हम पहले से किसी आदमी के बारे में जानकारी रखें तो यह हमारी सिद्धि के प्रोटोकॉल में नहीं है.

सवाल– हिन्दुस्तान में सिर्फ हिन्दू ही युवा नहीं है, मुस्लिम भी हैं?

जवाब- हम तो उन्हें भी जगा रहे हैं. कह रहे हैं आओ हनुमान चालीसा पढ़ो क्या बुराई है. हमारा सनातन बहुत सुन्दर हैं. जब कोई गले न लगे तो क्या कर सकते हैं. जब आप हिन्दू राष्ट्र की बात करते हैं तो हमें हिन्दू राष्ट्र कागजों पर नहीं चाहिए. 125 करोड़ लोगों के दिल में हिन्दू राष्ट्र चाहिए. आप कहोगे हाउ गेट पॉसिबल, हम यात्रायें करके कथायें करके, संकल्प दिलाकर अपने आपको खपा कर ही मानेंगे.

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सवाल- और बाकी के जो 25 करोड़ हैं दूसरे धर्म के?

जवाब- उनका भी स्वागत है. हम उनके विरोध में थोड़ी हैं. हिन्दू राष्ट्र का मतलब बार बार हिन्दू मुसलमान लड़ना बंद हो जायेगा. हिन्दू राष्ट्र का मतलब सामाजिक समरसता. हिन्दू राष्ट्र का मतलब सनातन एकता. हिन्दू राष्ट्र का मतलब रामराज्य की स्थापना, दिलों में अपने राम का स्थान, राम की यात्रा पर पत्थर फेंकने वालों की ठठरी और गठरी दोनों बंधे. सख्त कानून होवे. रामचरित मानस राष्ट्रीय ग्रन्थ होवे. हमें नहीं लगता कि इससे किसी दूसरे मजहब वालों को दिक्कत होगी.

सवाल- आपके तो मुस्लिम दोस्त भी हैं?

जवाब- हमें तो सपोर्ट कर रहे हैं मुस्लिम भाई. एक टीकमगढ़ के भाई का इतना वीडियो चला है. कटनी के यूथ मुस्लिम संघ ने एसपी को सपोर्ट में ज्ञापान दिया. आखिर हम कब तक लड़ेंगे. राष्ट्र के उत्थान की बात कब करेंगे? इस देश में केवल हिन्दू मुसलमान मुद्दा है. टीवी पर कब बेरोजगारी के मुद्दे उठेंगे. बुंदेलखंड में पानी की समस्या है. हमारे युवा भटक रहे हैं. हिन्दू राष्ट्र बनाओ और बात करो.

सवाल- आपकी इतनी कथायें होती हैं आप क्यों नहीं करते यह बात?

जवाब- मैं नेता नहीं हूं, मैं मीडिया नहीं हूं. आप न्यूज चलाओगे कि बाबा राजनीतिक बात कर रहे हैं. हमारे बुंदेलखंड में उपचार नहीं है. हॉस्पिटल्स नहीं हैं. पानी की समस्या है. इस पर दृष्टि कब जाएगी. आपके पास इतने नेता आते हैं आप बोलते नहीं. हम किसी से अपेक्षा नहीं रखते. हम हनुमान जी से अपेक्षा रख लेंगे उनसे नहीं.

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सवाल- आपके मन में ख्याल नहीं आता चुनाव लड़ने का लड़वाने का?

जवाब- करोड़ों का आध्यात्म महज दस रुपये में बेच दें, वो भी पुराने नोट में… धर्म से राजनीती चलती है. राजनीती से धर्म नहीं चलता.

धीरेंद्र शास्त्री– कहो तो चाय पी लें..?

किशोर- समोसा?

पंडित जी– नहीं नहीं..!

किशोर- एक बार हमने सुना कि समोसे की वजह से आपकी कथा लेट हो गई थी?

धीरेंद्र शास्त्री- समोसे की वजह से नहीं लेट हुई थी. समोसा कह रहे थे बिना लहसुन प्याज का. आप लोगों ने ब्रेकिंग न्यूज बनवा दी थी. इसको लेकर हमें हर्ट भी हुआ. न तो जिस व्यक्ति ने समोसा खाया, न ही उसने हमसे पूछा कि लहसुन प्याज का है कि नहीं और कह दिया कि पूरी दुनिया को लहसुन प्याज को छोड़ने का संकल्प दिलवाने वाले खुद समोसा खा रहे हैं.

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सवाल-
अच्छा चाय का शौक कब हुआ?

जवाब- इससे हमारे दादागुरु की याद जुड़ी है. हमारे दादाजी खूब चाय पीते थे. हमारी जिन्दगी में प्रारब्ध भी गुरु हैं और हम तो गुरु के चरणों में अपनी मृत्यु भी चाहते हैं. वो जूठी चाय इसी नारेली में हमको देते थे. उसी चाय का कमाल हैं कि हम नालायक से थोड़े लायक हुए.

सवाल– बचपन में शैतानियां तो करते होंगे आप?

जवाब- खूब करते थे. धीरेंद्र शास्त्री ने स्कूल की घटना बताते हुए कहा कि बचपन में स्कूल में इंटरवल का टाइम 1 बजे होता था. एक बार 11.30 को ही हमने एक बजा दिया. मोनिटर ने घंटा बजा दिया. हम पकड़े गए. ऐसा करना नहीं चाहिए.

सवाल- आप पछताते हैं, आप पढ़ते नौकरी करते?

जवाब- नहीं हम नहीं पछताते हैं. हम यही करते.

टैग: Bageshwar Dham, नई दिल्ली खबर, पं. धीरेन्द्र शास्त्री

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