नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी 13 और 14 जुलाई को फ्रांस की दो दिवसीय यात्रा पर रहेंगे. इस दौरान वह बैस्टिल डे परेड (14 जुलाई ) में सम्मानित अतिथि होंगे. उनका यह दौरा भारतीय समुद्री तटों की सुरक्षा को मजबूती प्रदान करने की दिशा में अहम कदम माना जा रहा है. केंद्र सरकार फ्रांस से राफेल लड़ाकू विमानों (Rafale-Mrine Jet)के नौसैनिक संस्करण की खरीद के समझौते पर करार कर सकती है. इस डील पर अंतिम फैसला पीएम मोदी के दौरे से पहले, रक्षा अधिग्रहण परिषद की बैठक में लिए जाने की संभावना है.

प्रधानमंत्री मोदी की दो दिवसीय यात्रा के दौरान इस अरबों डॉलर के सौदे की घोषणा होने की संभावना है, जिसके तहत 24-30 राफेल-मरीन जेट विमानों की खरीद की जा सकती है. सूत्रों ने बताया है कि भारतीय नौसेना ने अमेरिका के एफ-18 सुपर हॉर्नेट के मुकाबले फ्रांसीसी राफेल मरीन को लेकर अपनी पंसद जाहिर की है. हालांकि कीमत के बारे में अभी कुछ साफ नहीं हो सका है, लेकिन उम्मीद जताई जा रही है कि IAF द्वारा पहले खरीदे गए राफेल जेट के संस्करण से कंपनी के नेवी टाइप जेट सस्ते होंगे.

ओपन टेंडर नहीं, गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट डील
मोदी सरकार राफेल फाइटर जेट के नौसेना संस्करण की खरीद के लिए किसी तरह के ओपन टेंडर का रास्ता अपनाने के बजाए, सीधे गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट डील का रास्ता अपना सकती है. इस प्रक्रिया के जरिए न सिर्फ अधिग्रहण आसान होगा, बल्कि वक्त की भी बचत होगी. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारत और फ्रांस सरकार के बीच इंडियन एयरफोर्स के लिए हुआ राफेल डील भी गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट ही था. इसके तहत भारतीय वायुसेना को डसॉल्ट एविएशन ने 36 राफेल लड़ाकू विमान सौंपे हैं. सभी जेट आईएएफ की स्क्वाड्रन में शामिल हो चुके हैं. साल 2016 में हुए इस डील की डिलीवरी पूरी होने में 7 साल लगे थे.

रिपोर्ट्स के मुताबिक इंडियन नेवी ने अपने एयरक्राफ्ट कैरियर पर तैनाती के लिए डसॉल्ट एविएशन के राफेल मरीन पर भरोसा जताया है. इस नेवी वर्जन एयरक्राफ्ट में भारतीय वायुसेना के राफेल जेट की 80 फीसदी विशेषताएं मौजूद हैं. समानता होने की वजह से प्रशिक्षण, रखरखाव, मरम्मत जैसे कामों में भी बचत होगी. नौसेना और रक्षा मंत्रालय इस वजह से भी अमेरिकी हॉर्नेट एयरक्राफ्ट की बजाय राफेल मरीन को अहमियत दे रहे हैं. भारत सरकार पिछले 4 सालों से INS विक्रांत के लिए नए फाइटर जेट खरीदना चाह रही है. इसके लिए पिछले साल फ्रांस के राफेल मरीन और अमेरिका के एफ/ए 18 सुपर हॉर्नेट दोनों में से किसी एक को चुनने की प्रक्रिया पर काम शुरू हुआ था.

राफेल मरीन समुद्र से हवाई हमले के लिए सटीक
दोनों ही देशों ने अपने फाइटर जेट का प्रदर्शन भी किया था. इसके बाद भारतीय नौसेना ने अपने नए लॉन्च किए गए विमान वाहक के लिए सर्वश्रेष्ठ लड़ाकू विमान प्राप्त करने पर अंतिम निर्णय रिपोर्ट सरकार को सौंपी. इस रिपोर्ट में राफेल एम को INS विक्रांत की जरूरतों के हिसाब से सही पाया गया था. जबकि बोइंग F-A-18 को लेकर विशेषज्ञ एकमत नहीं थे. स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर INS विक्रांत के लिए उचित माने जा रहे राफेल एम को सबसे पहले इसी एयरक्राफ्ट पर तैनात किया जाएगा. फिलहाल INS विक्रांत पर रूसी मिग-29 तैनात हैं, जिन्हें अब धीरे-धीरे सेवा से बाहर किया जा रहा है. सूत्रों का कहना है कि डील फाइनल होने के बाद इंडियन नेवी को राफेल एम की पहली खेप मिलने में 3 साल का वक्त लग सकता है.

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