तरला मूवी समीक्षा: ‘मुझे ज‍िंदगी में कुछ करना है… पर क्‍या करना है वो पता नहीं.’ ये वो कशमकश है ज‍िससे ज‍िंदगी के एक मोड़ पर लगभग हर इंसान जूझता है. मह‍िलाओं में तो ये प्रतिशत कुछ ज्‍यादा ही होता है, क्‍योंकि ‘कुछ करना है’ की खोज में वो कब अपने बाकी रोल्‍स न‍िभाने में लग जाती हैं, उन्‍हें पता ही नहीं चलता. इस ‘कुछ करना है’ की कशमकश से शुरू होती है फिल्‍म ‘तरला’ जो एक हाउसफाइफ तरला के ‘पद्मश्री तरला दलाल’ बनने की कहानी है. हुमा कुरैशी और शार‍िब हाशमी के लीड रोल वाली ये फिल्‍म ZEE5 पर आज यानी 7 जुलाई को र‍िलीज हो चुकी है. आइए बताते हैं कि आपको ये फिल्‍म देखनी चाहिए या नहीं.

कहानी : इस फिल्‍म की कहानी तरला दलाल की ज‍िंदगी पर आधार‍ित है और कहानी की शुरुआत तरला (हुमा कुरैशी) के कॉलेज से होती है. क्‍लास में बैठी तरला जीवन में कुछ अलग करना चाहती है. लेकिन घर पहुंचते ही उसे पता चलता है कि उसे देखने इंजीन‍ियर लड़का नल‍िन दलाल (शार‍िब हाशमी) आ रहा है. तरला शादी नहीं करना चाहती, कुछ करना चाहती है लेकिन उसके इस ‘कुछ’ के ल‍िए इंतजार करने का समय क‍िसी के पास नहीं. और इस तरह तरला की शादी नल‍िन से हो जाती है. लेकिन शादी के 12 सालों बाद और तीन बच्‍चों की मां बनने के बाद भी तरला ये समझ नहीं पाती कि वो क्‍या करना चाहती है और यही बात उसे बेचैन रखती है.

वहीं आगे चलकर फिल्‍म में सामने आता है कि कई लड़कियों की शादी में अड़चन स‍िर्फ इसल‍िए आ रही है क्‍योंकि उन्‍हें खाना बनाना नहीं आता. तरला उसे खाना बनाना स‍िखाती है और उसकी शादी तय हो जाती है. इसी प्रक्रिया में तरला को पता चलता जाता है कि उसे क्‍या करना है और वो आगे बढ़ती जाती है.

हुमा ने कुरैशी की परफॉर्मेंस जैसे रगड़ा पैटीज
फिल्‍म की कहानी में काफी सारे इमोशन और पड़ाव हैं. शुरुआत के कुछ मिनटों में पेस पकड़ने के बाद कहानी आपको अपने आप से जोड़ने लगती है. न‍िर्देशक पीयूष गुप्‍ता की ये फिल्‍म एक सामान्‍य परिवार की कहानी है और वैसी ही सरलता आपको पूरी कहानी में द‍िखती है. फिल्‍म में जबरदस्‍ती ड्रेमेट‍िक कुछ नहीं क‍िया गया है. हालांकि कुछ जगह पर न‍िर्देशन कुछ ढीला पड़ा है. हुमा कुरैशी अपने क‍िरदार में जची हैं. हुमा प‍िछले कुछ समय से ‘महारानी’, ‘मोन‍िका, ओह माय डार्लिंग’ और ‘डबल XL’ जैसी बढ़‍िया परफॉर्मेंस दे चुकी हैं और ये फिल्‍म भी उसी श्रेणी की फिल्‍म है. इस फिल्‍म में हुमा ने तरला दलाल की स्‍प्र‍िट को पकड़ने में कहीं कसर नहीं छोड़ी है.

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हुमा ने इस फ‍िल्‍म में तरला दलाल का क‍िरदार न‍िभाया है.

असल में फैमली मैन बने हैं शार‍िब
शार‍िब हाशमी इस फिल्‍म में हुमा के पति बने हैं. शार‍िब एक कमाल के परफॉमर हैं. इस फिल्‍म में कुछ सीन्‍स में शार‍िब की चुप्‍पी और उनकी आंखे ही कुछ सीन्‍स में वो कमाल कर जाएंगी जो शायद लोग बोल कर भी नहीं कर पाते. नल‍िन के द‍िल में हजारों बातें चल रही हैं, लेकिन वो कुछ भी नहीं बोल रहा. अपनी आंखों से उन हजारों बातों को कहने का काम शार‍िब ने क‍िया है. शार‍िब ने नल‍िन के क‍िरदार को बेहद लवेबल बना द‍िया है. हो सकता है, लोग ऐसे पति के लिए दुआएं मांगनी शुरू कर दें.

इंद्रा नुई से लेकर अपने पास वाली आंटी या अपनी मां तक, आप क‍िसी भी मह‍िला से पूछ लें, उनकी सफलता या ज‍िंदगी की कहानी में एक बात हमेशा कॉमन होगी. उन्‍हें अपने सपनों और परिवार की ज‍िम्‍मेदार‍ियों में हमेशा जूझना पड़ता है. ये कहानी भी उससे अलग नहीं है. एक सीन में तरला की मां पूछती है, ‘घर में आटा नहीं था, तुझे पता है.’ तरला कहती है, ‘नल‍िन ले तो आए’. तब तरला की मां कहती है, ‘ये नल‍िन कुमार का काम नहीं है…’ सफलता की ये कहानी जब आप देखेंगे तो लगेगा जैसे हर औरत की कहानी ऐसी ही तो है. मेरी तरफ से इस फिल्‍म को 3 स्‍टार.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

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