हाइलाइट्स

आंग सान सू की ने 1989 से 2010 के बीच 15 साल सैन्य कैद में बिताए थे
2015 में उनकी पार्टी की म्यांमार में सरकार बनी थी.
सू की को 2021 से भ्रष्टाचार के आरोप में जेल में रखा गया है.

वो एक महिला नेता हैं और बरसों से म्यांमार के लोगों के लिए संघर्ष कर रही हैं. कई सालों से जेल में हैं और म्यांमार के जुंटा सैन्य शासन ने उन्हें आजीवन जेल में रखने की कानूनी व्यवस्था कर ली है. उन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं. उनके संघर्ष के लिए उन्हें आज से 32 साल पहले नोबेल शांति पुस्कार से नवाजा गया था. लेकिन इसके बाद भी लोकतंत्र के पैरोकार पश्चिमी देश उनसे खफा हैं. हम बात कर रहे हैं आंग सान सू की के बारे में. 19 को म्यांमार के लोकतंत्र के लिए संघर्ष कर रहीं सू की 78 साल की हो रही हैं. उनकी अंतरराष्ट्रीय छवि अर्श से फर्श तक की एक बढ़िया मिसाल है.

माता पिता भी देश के लिए समर्पित
आंग सान सू  का जन्म 19 जून 1945 को रंगून में हुआ था. उनके पिता आंग सान ने आधुनिक बर्मी सेना की स्थापना की थी अंग्रेजों के खिलाफ द्वितीय विश्व युद्ध में जापानियों से हाथ मिलाया था. 1947 में वे अंग्रेजों से बर्मा की आजादी की बात कर रहे थे उसी साल उनके विरोधियों ने उनकी हत्या कर दी थी. आंग सान सू को उनकी मां ने पाला था जो बाद में बर्मा की एकमशहूर राजनैतिक शख्सित बन गई थीं.

भारत में भी की थी पढ़ाई
सू की मां जब 1960 में भारत और नेपाल में बर्मा की राजदूत थीं तब सू ने नई दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से 1964 में राजनीति विज्ञान से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और फिर ऑक्सफोर्डसे दर्शन शास्त्र, राजनीति शास्त्र और अर्थास्त्र की पढ़ाई की. बाद में उन्होंने न्यूयॉर्क में रहकर संयुक्त राष्ट्र में तीन साल तक काम भी किया. 1972 में उन्होंने तिब्बती संस्कृतिके विद्वान और भूटान में रहने वाले डॉ माइकल एरिस से विवाह किया. उनकी दो बेटे हैं और वे बर्मी, अंग्रेजी, फ्रेंच और जापानी भाषाओं की जानकार हैं.

देश के लोकतंत्र के लिए
1985 में लंदन यूनिवर्सिट केस्कूल ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज में पीएचडी करने के बाद सू की अपनी बीमार मां की सेवा के लिए बर्मा लौट आईं. जल्दी ही उन्होंने लोकतंत्र समर्थक आंदोलन का नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया इसके चलते उनके विदेश जाने पर पाबंदी लग गई और फिर वे अपने बीमार पति से उनके अंतिम समय तक भी नहीं मिल सकीं.

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आंग सान सू ने कुछ समय भारत में रह कर नई दिल्ली में पढ़ाई की थी. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)

नोबेल शांति पुरस्कार और नजरबंदी
1991 में आंग सान सू की को उनके लोकतंत्र के संघर्ष के लिए शांति का नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया. उस समय वे नजरबंद थीं और इस सदी के पहले दशक के उत्तरार्द्ध में उनकी रिहाई के लिए उन्हें दुनिया भर से समर्थन मिला. 2008 में अमेरिका का कांग्रेशनल गोल्ड मेडल पाने वाली पहली व्यक्ति बनी जो उसे पाते समय जेल में था. यहां तक कि पड़ोसी देशों का भी म्यांमार पर भारी दबाव रहा.

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2010 में रिहाई
2010 में म्यांमार में आम चुनाव के छह दिन बाद आंग सान सू की को नजरंबदी से छोड़ दिया गया. इसके बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रहीं 2012 में उन्होंने यूरोपीय दौरे के दौरान अपना 1991 का नेबोल पुरस्कार हासिल किया. इसी साल उन्होंने म्यांमार मे चुनाव जीता और विरोधी दल की नेता बनी. लेकिन 2015 के आम चुनाव में उनकी पार्टी की भारी जीत हुई. उन्हें संवैधानिक तौर पर राष्ट्रपति बनने से रोक दिया गया, लेकिन फिर उनकी पार्टी ने सरकार बनाई और वे विदेश मंत्री बनीं.

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आंग सान सू पर रोहिंग्या मुस्लिमों के नरसंहार के खिलाफ कुछ ना करने का आरोप है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)

सरकार में रहते हुए
सरकार में आने के बाद आंग सान सू की ने राखाइन राज्य के लिए एक आयोग बनाया जहां रोहिंग्या मुस्लिम अल्पसंख्यों पर अत्याचार के लिए बदनाम इलाका था. वहीं शान और काचिन राज्य में विवाद को  सुलझाने में उनकी पार्टी की सरकार नाकाम रही जिससे हजारों शरणार्थी चीन पलायन कर गए. दूसरी तरफ 2017 तक सरकारी बलों के रोहिंग्या अत्याचारों को नरसंहार का दर्जा दिया जाने लगा. सू की ने  एक इंटरव्यू में  नरसंहार की बात को खारिज कर दिया. उन्होंने रोहिंग्याओं को देश की नागरिकता देने से इनकार कर दिया पर उन्हें परिचय पत्र जारी करने पर सहमति जरूर जताई.

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इसके बाद आंग सान सू की के खिलाफ दुनिया भर में विरोध होना शुरू हो गया उनको दिए गए कुछ पुरस्कार भी वापस ले लिए गए. तो उनसे नोबेल पुरस्कार वापस लेने की भी मांग की जाने लगी.  2020 में उनकी पार्टी ने चुनाव में फिर वापसी की लेकिन फरवी 2021 में सेना ने चुनाव को फर्जी घोषित कर दिए और सू की को फिर से हिरासत में ले लिया और उन पर औपचारिक तौर पर भ्रष्टाचार के मुकदमा चलाए गए. दिसंबर में उन्हें चार साल की सजा सुनाई गई और फिर जनवरी 2022 में फिर चार साल की सजा हुई. दिसंबर 22 तक उनके खिलाफ अलग अलग मामलों में 32 साल की सजा सुनाई जा चुकी है.

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