हाइलाइट्स
हैती दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है, यहां की 60 फीसदी आबादी रोजाना महज 2 डॉलर कमाती है.
माता-पिता इस उम्मीद में कि बच्चों को अनाथालय में पेट भर खाना मिल सकेगा, अस्थायी रूप से छोड़ देते हैं.
यहां पर बच्चों की आबादी करीब 40 लाख है, जिसमें से करीब 30,000 बच्चे यहां 750 अनाथालयों में रहते हैं.
पोर्ट ओ प्रिंस: कैरेबियन देशों में तीसरा सबसे बड़ा देश है हैती. प्राचीन इतिहास लिए हुए इस देश की संस्कृति और परंपराए भी उतनी ही पुरानी हैं. पुराने रीति-रिवाज और परंपराओं पर भरोसा रखने वाले इस देश की अर्थव्यवस्था काफी कमजोर है. यही वजह है कि यहां बहुत से माता-पिता अपने बच्चों को अनाथालय में छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं. उनको लगता है कि शायद अनाथालयों में बच्चों को ठीक से खाना और परवरिश मिल सकेगी. लेकिन ऐसा होता नहीं है. देश में सैकड़ों अनाथालय मौजूद है, जिनमें से ज्यादातर निजी स्वामित्व वाले हैं. हैती सरकार ने अब देश में मौजूद इन अनाथालयों को बंद करने का एक बड़ा फैसला लिया है.
दरअसल बताया जाता है कि इन अनाथालयों में रहने वाले अनुमानित 30,000 बच्चों को जबरन श्रम, तस्करी, शारीरिक शोषण में डाल दिया जाता है. लगातार बढ़ती इन खबरों को देखते हुए हैती सरकार ने इन बच्चों को इनके माता-पिता या रिश्तेदारों से मिलाने की कवायद शुरू की है. माना जा रहा है कि यह इन अनाथालयों को बंद करने की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकता है.
क्यों बढ़े अनाथालय, क्यों बच्चों को यहां छोड़ा जाता है
हैती दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है. यहां की 60 फीसद आबादी रोजाना महज 2 डॉलर कमाती है. इतने पैसों में बच्चों का लालन पालन बेहद मुश्किल होता है. चूंकि माता-पिता यह खर्च वहन नहीं कर पाते हैं तो इस उम्मीद में कि बच्चों को अनाथालय में पेट भर खाना मिल सकेगा, अस्थायी रूप से छोड़ देते हैं. यहां अस्थायी शब्द पर ध्यान देना बेहद जरूरी है. सामाजिक कार्यकर्ता बताते हैं कि वास्तव में माता-पिता बच्चों को हमेशा के लिए नहीं छोड़ना चाहते हैं बल्कि वह कुछ समय के लिए ऐसा करते हैं ताकि उनकी स्थिति जब ठीक हो जाए तो वह अपने बच्चों को वापस ले जा सकें.
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अनाथालयों में कितने बच्चे और क्यों
हैती का सरकारी आंकड़ा बताता है यहां पर बच्चों की आबादी करीब 40 लाख है. जिसमें से करीब 30,000 बच्चे यहां के 750 अनाथालयों में रहते हैं. 2010 में जब एक विनाशकारी भूकंप ने इस देश में बुरी तरह से तबाही मचाई थी, जिसमें कम से कम 2 लाख लोग मारे गए थे. इसके बाद तो हैती में अनाथालयों की संख्या में 150 फीसद की बढ़ोतरी दर्ज की गई. जिसकी वजह हालात का फायदा उठा कर बच्चों को तस्करी, जबरन श्रम और यौन उत्पीड़न के गर्त में फेंकना था.
हैती के एक इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल वेलफेयर एंड रिसर्च की 2018 की एक रिपोर्ट बताती है, 754 अनाथालयों में से महज 35 यानी 5 फीसद से भी कम सरकारी न्यूनतम मानकों को भी पूरा कर पाए थे. यही नहीं 580 अनाथालय तो ऐसे थे जिन्हें सबसे कम अंक हासिल हुए थे. जिसके बाद सरकार के पास इन्हें बंद करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.
लेकिन फैसला लेना इतना आसान नहीं
सरकार भले ही यह फैसला ले रही हो, लेकिन इसे करना इतना आसान नहीं है. क्योंकि निजी अनाथालय इन्हें चलाने के लिए विदेशों से खूब धन उगाह रहे हैं. और वह चाहेंगे की विदेशों से आने वाले धन का प्रवाह बना रहे. इसलिए बताया जा रहा है कि सरकारी अधिकारियों को धमकी दी जा रही है या उन्हें छिपने पर मजबूर किया जा रहा है.
वहीं पोर्ट ओ प्रिंस जहां संयुक्त राष्ट्र संघ के मुताबिक 80 फीसद तक गिरोहों का कब्जा है, जिन्हें हैती में बढ़ रही हत्या और अन्य अपराधों के लिए दोषी ठहराया जाता है, खासकर वह इलाके जहां पर किजितो परिवारों के बच्चे रहते हैं, वहां एक धार्मिक संगठन किजितो फैमिली की स्थापना की गई है. इसका संचालन करने वाली सिस्टर पैसी सरकार के इस फैसले के विरोध में हैं. उनका मानना है कि यह घर उन बच्चों की जरूरत है जिनके माता-पिता उन्हें खाना नहीं खिला सकते हैं या उन्हें हिंसा से बचा नहीं सकते हैं. यह संगठन गरीब मलिन बस्तियों में करीब 2000 बच्चों को मुफ्त शिक्षा भी प्रदान करता है.
सरकार का बच्चों को माता पिता से मिलाना बेहद चुनौतीपूर्ण
सरकार के साथ सामाजिक कार्यकर्ता बच्चों को उनके माता-पिता से मिलाने के प्रयास को पूरा करने में जुटे हुए हैं. लेकिन 1 करोड़ 10 लाख लोगों की आबादी वाले इस देश में जहां ना कोई डायरेक्टरी है, किसी परिवार के पास कोई भौतिक पता या डिजिटल जानकारी नहीं है, वहां इस काम को अंजाम देना भूसे में सुई ढूंढने जैसा है. कभी कभी इससे जुड़े कार्यकर्ताओं के पास केवल एक तस्वीर और आस पड़ोस से जुड़ी थोड़ी सी जानकारी मात्र है.
यह काम पूरी तरह से एक जासूसी की तरह है, जहां सामाजिक कार्यकर्ता शहरों, कस्बों और गांवों में घूमेंगे, घर घर दस्तक देकर बच्चे के बारे में जानकारी जुटाने का प्रयास करेंगे. कई मामलों में जानकारी जुटाने के लिए सामाजिक कार्यकर्ता बच्चों को स्थलों की तस्वीर दिखाएंगे ताकि उन्हें उससे जुड़ा कुछ याद आ जाए. या कोई ऐसी जानकारी मिल जाए जो उन्हें उनके माता-पिता के और करीब ले जा सके. लेकिन यह काम जितना आसान लग रहा है उतना है नहीं, उसके साथ ही निजी अनाथालयों के विरोध ने इस काम को और विकट बना दिया है.
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पहले प्रकाशित : 13 जून, 2023, 2:35 अपराह्न IST