Web Series REVIEW ‘Jaanbaaz Hindustan Ke’: कहने को ‘रॉकस्टार’ फिल्म तो थी रणबीर कपूर की, लेकिन निर्देशक इम्तिआज अली का पूरा ध्यान इस बात पर था कि वो किस तरीके से बिना टैलेंट की हीरोइन नरगिस फाखरी को ज्यादा से ज्यादा स्क्रीन टाइम दे सकें. दर्द इस बात का नहीं है कि नरगिस पर कैमरा बनाये रखने के भरसक प्रयास किये गए, बल्कि इस बात का है कि इम्तिआज एक परफेक्शनिस्ट किस्म के निर्देशक हैं, उनसे ये चूक कैसे हो गयी.

खैर इसी तर्ज पर निर्देशक श्रीजीत मुखर्जी से भी ये उम्मीद नहीं रहती कि वे हीरोइन पर इतना फोकस करें कि पूरी वेब सीरीज को उसी के इर्द गिर्द बसा दें. जी5 पर गणतंत्र दिवस के देशभक्ति भरे दिवस पर रिलीज वेब सीरीज ‘जांबाज हिंदुस्तान के’ देखने के बाद ये लगता है कि डेढ़ घंटे की फिल्म को लगभग 30-30 मिनट के 8 एपिसोड लम्बी सीरीज में बदल कर क्या साबित करना चाहते हैं? ये सीरीज इतनी खींची गयी है कि दर्शक बीच में चाय-नाश्ता कर के और गप्पें मार के भी लौट आये तो कुछ मिस नहीं करेगा. जांबाज हिंदुस्तान के एक लचर वेब सीरीज है. जी5 के मालिकों को इस तरह की सीरीज बनाने से पहले सोचना चाहिए.

लेखक नीरज उधवानी (इनसाइड एज) और आशीष पी वर्मा (सनक, तेहरान) को शायद ये ब्रीफ दी गयी थी कि रेजिना कसेंड्रा को एक कड़क पुलिसवाली के रूप में दिखाना है, उसके इर्द गिर्द कोई कहानी लिख दो. लेखकों ने भी कल्पना की उड़ान को रोकने की कोई कोशिश नहीं की. मजे मजे में कहानी को शिलॉन्ग, मणिपुर, दिल्ली, जयपुर और केरल तक घुमाते रहे. इस पूरे प्रकरण में कहीं भी टाइम लाइन के प्रति कोई संवेदनशीलता नहीं बरती गयी है. एक दिन रेजिना को पूरे प्रदेश का मीडिया “शेरनी” कहता है और फिर कुछ समय बाद वो केरल में गोलियां चलाती रहती है.

इन दोनों घटनाओं के बीच में गुजरे समय को लेखक और निर्देशक दोनों भूल गए हैं. सुमीत व्यास को टेररिस्ट बनाया गया है आयएसआयएस का जो कि कमाल का कनेक्टेड बंदा है लेकिन फिर भी आम अपराधियों की तरह भागता है और अचानक ही किसी भी शहर में प्रकट हो जाता है. बांग्लादेश का आयएसआयएस का प्रमुख होने के बावजूद उसकी पकड़ हिंदुस्तान में लाजवाब तरीके से होती है, फिर भी उसे पुलिस से भागने के बेसिक तरीके नहीं पता हैं. तमिल और मलयालम फिल्मों की हीरोइन गायत्री शंकर बिना बात के रहस्यमयी बनने की कोशिश करती रहती है और आखिर में किसी गुंडे के दो कौड़ी के चमचे की तरह पकड़ी जाती है. मीता वशिष्ठ को मुस्कुराना नहीं आता है और वो मुस्कुराती भी नहीं हैं लेकिन अपने किरदार में एक भी ऐसी बात नहीं लाती जिस से उनके किरदार को याद रखा जाए. थोड़ा बहुत रिलीफ मिलता है वरुण सोबती और चन्दन रॉय के किरदार हैं जो थोड़ी बहुत मानवीय संवेदना दिखाते हैं और दर्शकों को थोड़ी रिलीफ मिलती है वर्ना बाकी तो सब मुस्कुराने से भी कतराते हैं.

कहानी के नाम पर एक मजाक ही है. शिलॉन्ग के पास एक आतंकी संगठन आरडीएक्स की स्मगलिंग करता है. ये आरडीएक्स देश के कोने कोने में पहुंचना होता है और फिर ड्रोन्स के जरिये इन्हें अलग अलग जगह विस्फोट में काम में लिया जाना होता है. एक सभा में एक सीएम, और एक विधानसभा में कुछ एमएलए इस तरीके से मारे भी जाते हैं. आतंवादियों की प्लांनिंग होती है गृह मंत्री को इसी तरीके से उड़ाने की. ऐसे में नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी की चीफ माहिरा रिजवी (मीता वशिष्ठ) और काव्या अय्यर (रेजिना) मिल कर इस पूरी साजिश का खुलासा करते हैं और किसी भी फिल्म की तरह, यहां सब कुछ अच्छा हो जाता है.

एक लाइन की कहानी के लिए 8 एपिसोड क्यों बनाये गए? काव्या की पर्सनल लाइफ वाला एंगल जरूरी था? शायद नहीं. काव्या की ऑर्डर न मानने की आदत क्यों होनी चाहिए? उसके करियर में एक झटका लगना क्यों जरूरी था? क्यों उसे झटके के बाद लूप लाइन में फेंक देना चाहिए था? सब कुछ सुविधा के हिसाब से बनाया जा रहा है और सिवाय रेजिना के किसी की निजी जिन्दगी का कोई मसला ही नहीं है. एक-दो सीन सुमीत व्यास और गायत्री के और एक सीन मीता वशिष्ट का रख दिया गया है ताकि थोड़ी रहत मिले रेजिना के ओवरडोज से.

जांबाज हिंदुस्तान के, जी 5 की एक और असफल कोशिश है. देशभक्ति भुनाने के लिए अब कुछ नया करना पड़ेगा, ये आतंकियों से निपटने की कहानी, टेरर अटैक रोकने के प्लान, घटिया सी टेक्नोलॉजी से कुछ बड़ा करने का कम बजट का तरीका….ये सब बंद होना चाहिए. इस सीरीज को देखना अवॉइड कर सकते हैं. ऐसी कई सीरीज आपने देख रखी हैं.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

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