सलाम वेंकी मूवी समीक्षा: कुछ फिल्में ऐसी होती हैं जो जिंदगी की सच्चाई से रुबरू करवाती हैं. राजेश खन्ना की फिल्म ‘आनंद’ का आइकॉनिक डायलॉग ‘जिंदगी बड़ी होनी चाहिए लंबी नहीं’ अक्सर सुनी जाती है. ये लाइन सीख देती है कि जीवन की तमाम मुश्किलों के बावजूद जिंदगी का आनंद कैसे उठाया जाए. काजोल स्टार ‘सलाम वेंकी’ भी कुछ ऐसी ही सीख देती है. एक मां को अगर अपने जिगर के टुकड़े के लिए इच्छा मृत्यु मांगनी पड़े तो सोच कर ही कलेजा दहज जाता है. साल 2005 में आई श्रीकांत मूर्ति के उपन्यास ‘द लास्ट हुर्रे’ पर आधारित फिल्म ‘सलाम वेंकी’ 24 साल के लड़के वेंकटेश की कहानी है. जो पल-पल अपने मौत की आहट महसूस करता है.
‘सलाम वेंकी’ की कहानी
कोलावेणु वेंकटेश उर्फ वेंकी को डीएमडी यानी Duchenne muscular dystrophy नामक रेयर बीमारी है. इस बीमारी से पीड़ित इंसान लंबी जिंदगी नहीं जी सकता है. लेकिन वेंकी की इच्छाशक्ति उसे 24 साल की उम्र तक पहुंचा देती है. अपने ऑर्गन दान करना चाहता है. हालांकि अपनी मौत के आखिरी पड़ाव के दौरान वेंकी इच्छा मृत्यु के लिए कोर्ट से गुहार लगाता है. पहले तो वेंकी की ये चाहत मां नहीं मानती है, जो शायद कोई भी मां नहीं मानेगी, लेकिन फिर बेटे की जिद के आगे हार जाती है. इच्छा मृत्यु गैर कानूनी है, कानून बदलने के लिए एक मां की लड़ाई ही इस फिल्म की कहानी है.
काजोल-विशाल की शानदार अदाकारी
जहां तक एक्टिंग की बात है तो हमेशा अपने रुमानी और चुलबले अभिनय से दर्शकों का दिल जीतने वाली काजोल ने एक मां के रुप में अपना बेस्ट परफॉर्मेंस देने में कामयाब हुई हैं. इस फिल्म के लिए उनके हस्बैंड अजय देवगन ने भी तारीफ की है. काजोल अपने बेटे के लिए मां के दर्द को पर्दे पर उकर कर एक बार दिल छू लिया है. जहां तक बात विशाल जेठवा की है तो वेंकी के किरदार में उन्होंने जान उड़ेल दी है. ऐसा लग रहा है कि विशाल असल में वेंकी हैं. किसी एक्टर के लिए इससे बड़ी तारीफ क्या हो सकती है कि जो किरदार वह निभा रहा हो, उसमें पूरी तरह डूब जाए और कभी आपको रुलाए तो कभी जिदंगी का फलसफा समझाए. फिल्म में राजीव खंडेलवाल डॉक्टर की भूमिका में हैं तो अहाना कुमरा बतौर जर्नलिस्ट अपनी छाप छोड़ने में कामयाब हुई हैं, राहुल बोस ने वकील तो प्रकाश राज ने जज के किरदार बेहतरीन परफॉर्मेंस दिया है.
रेवती का जबरदस्त डायरेक्शन
अब बात फिल्म के निर्देशन की. करीब 14 साल बाद डायरेक्शन में कमबैक करने वाली रेवती दर्शकों को रुलाने और फिल्म की थीम समझाने में कामयाब हुई हैं. रेवती के निर्देशन का ही कमाल है कि फिल्म के एक्टर्स ने दमदार प्रदर्शन कर दर्शकों को बांधे रखा है. ऐसे ही मिजाज की फिल्मों के लिए रेवती जानी जाती हैं. पूरी फिल्म के दौरान आपकी आंखें नम रहती हैं. मिथुन के कंपोजिशन में फिल्म का संगीत भी बेहतर बन पड़ा है. फिल्म में कुछ खामी भी है, जैसे कुछ सीन को बेवजह लंबा खींचना.
निष्कर्ष
कुल मिलाकर ‘सलाम वेंकी’ मां-बेटे के दर्द की एक ऐसी कहानी है जो आपको थोड़ा हटकर सोचने पर मजबूर करती है. इस फिल्म में एक मां का अपने बच्चे के लिए डेडीकेशन, बलिदान दिखता है तो ये भी दिखता है कि कई कानूनी मसले आपकी जिंदगी की सच्चाई पर भारी पड़ते हैं. साथ ही इस फिल्म में कुछ ऐसे सीन भी हैं जिसे देखने के बाद ये सीख मिलती है कि 4 दिन की जिंदगी है, जी भर कर जी लो.
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टैग: छवि समीक्षा, काजोल
पहले प्रकाशित : 09 दिसंबर, 2022, 12:13 अपराह्न IST
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