सिया मूवी समीक्षा: प्रोड्यूसर से नि‍र्देशक बने मनीष मुंदड़ा (Manish Mundra) की फिल्‍म ‘सि‍या’ (Siya) 16 स‍ितंबर को स‍िनेमाघरों में र‍िलीज हो रही है. मुंदड़ा के प्रोडक्‍शन हाउस दृश्‍यम फिल्‍म्‍स की इस फिल्‍म को ल‍िखा भी मनीष ने ही है. मनीष इससे पहले ‘मसान’, ‘आंखों देखी’ और ‘न्‍यूटन’ जैसी फिल्‍में का न‍िर्माण कर चुके हैं. लेकिन एक न‍िर्देशक के तौर पर ‘स‍िया’ के जरिए वह पहली बार अपने व‍िजन को पर्दे पर उतार रहे हैं. ‘स‍िया’ में पूजा पांडे और व‍िनीत कुमार स‍िंह नजर आ रहे हैं. पूजा जहां पहली बार पर्दे पर हैं, वहीं व‍िनीत इससे पहले ‘मुक्‍काबाज’, ‘सांड की आंख’ जैसी फिल्‍मों और ‘रंगबाज’ जैसी वेब सीरीज में भी नजर आ चुके हैं. आज जब फ्लॉप होती फिल्‍मों के बीच बार-बार ये सवाल उठ रहा है कि क्‍या ह‍िन्‍दी स‍िनेमा के पास अच्‍छे कंटेंट की कमी हो गई..? क्‍या हम कहान‍ियों को पीछे और स‍ितारों को आगे रख रहे हैं.. ? ऐसे में अकेली ‘स‍िया’ इन कई सवालों का जवाब बनकर सामने आई है. आइए बताती हूं कि मैंने ऐसा क्‍यों कहा…

स‍िया कहानी है 17 साल की लड़की सीता स‍िंह की, ज‍िसका सामूह‍िक बलात्‍कार क‍िया जाता है. एक नहीं वो भी कई द‍िनों तक. देवगंज में रहने वाली सीता अचानक अपने घर से गायब हो जाती है. ऐसे में सीता के परिवार को जानने वाला महेंद्र (व‍िनीत कुमार स‍िंह) और सीता के गरीब माता-प‍िता उसके गायब होने की एफआईआर कराने थाने जाते हैं, लेकिन ऊंची जाति का थानेदार इन लोगों की श‍िकायत को ध्‍यान देने लायक ही नहीं मानता. लेकिन जब लोकल न्‍यूज पेपर इस लड़की के खोने की खबर अपने अखबार में छाप देता है, तब एक नेता के कहने पर पुल‍िस उसे ढूंढना शुरू करती है.

प्रोड्यूसर मनीष मुंदड़ा ने पहली बार न‍िर्देशन की कमान संभालते हुए ‘स‍िया’ बनाई है और अपनी इस पहली फिल्‍म के लिए उन्‍होंने बलात्‍कार जैसा गंभीर और बेहद संजीदा विषय चुना है. तारीफ करनी होगी मनीष की कि उन्‍होंने न‍िर्देशन की अपनी पहली ही कोशिश में एक खूबसूरत फिल्‍म को पर्दे पर उतारा है. ‘स‍िया’ की कहानी बलात्‍कार जैसे अपराध की भयावहता को पर्दे पर ज‍िस तरीके से उतारती है वो आपको बेचैन कर देगा. अक्‍सर स‍िनेमा के पर्दे को ‘रूपहला’ कहा जाता है, लेकिन मनीष मुंदड़ा की इस फिल्‍म में ‘रूपहला’ कुछ नहीं है. बल्‍कि समाज, स‍िस्‍टम और राजनीति की ऐसी काली स्‍याही पर्दे पर चारों तरफ बिखरी द‍िखेगी कि आप एक अजीब सी बेचैनी से भर जाएंगे. अब इसे इस फिल्‍म का नकारात्‍मक पहलू भी कहा जा सकता है कि ये फिल्‍म कुछ भी रूपहला, सजीला या उम्‍मीद से भरा पर्दे तक नहीं लाती. ‘फिल्‍म में आखिर में सब ठीक हो जाता है, और अगर ठीक नहीं है, तो प‍िक्‍चर अभी बाकी है मेरे दोस्‍त…’ वाले व‍िचार के साथ अगर आप स‍िनेमाहॉल जाएंगे तो ये फिल्‍म आपके लिए नहीं है.

‘स‍िया’ में क‍िसी भी हालात या सीन की भयावहता बढ़ाने या द‍िखाने के लिए न तो कोई जोरदार बैकग्राउंड म्‍यूजिक द‍िया गया है और न ही कुछ कैमरों के भागते हुए एंगल. कमाल की बात है कि ‘बलात्‍कार’ की कहानी द‍िखाती इस फिल्‍म में पर्दे पर इससे जुड़ा एक भी सीन नहीं द‍िखाया गया. लेकिन बलात्‍कार के साथ आने वाली तकलीफ, दर्द, बेचैनी, भयावहता, मानस‍िक पीड़ा जैसे हर भाव और दर्द को पर्दे पर उतार द‍िया गया है. हर सीन के बैकग्राउंड में भैंसों के गले में बंधी सांकल की आवाज से लेकर मोर की आवाज तक, सबकुछ धीरे-धीरे ऐसे सुनाई देगा कि आपको धोखा हो सकता है कि आप उसी परिवेश में हैं, पर बस इसे देखते जा रहे हैं और व‍िचल‍ित हो रहे हैं, मगर कर कुछ नहीं सकते.

दरअसल आज फिल्‍मों की सफलता का पैमाना उसके ‘कलेक्‍शन’ के आधार पर तय होने लगा है. लेकिन पूजा पांडे और व‍िनीत कुमार सिंह अभ‍िनीत ‘सि‍या’ वह फिल्‍म है, जो स‍िनेमा को एक कदम आगे ले जाने का काम करेगी. पूजा पांडे पहली बार पर्दे पर बतौर एक्‍ट्रेस नजर आ रही हैं, लेकिन ज‍िस खूबसूरती से उन्‍होंने इस क‍िरदार को पर्दे पर उतारा है, वह काब‍िल-ए-तारीफ है. इस जघन्य अपराध की पीड़‍िता होने के बाद भी जब स‍िया ‘न्‍याय’ की मांग करती है, तब एक एक्‍ट्रेस के तौर पर पूजा की सफलता पर्दे पर साफ देखी जा सकती है. वहीं महेंद्र के क‍िरदार में व‍िनीत कुमार स‍िंह एक ऐसा क‍िरदार बनकर नजर आ रहे हैं, ज‍िन्‍हें बस देखा ही जा सकता है. व‍िनीत का क‍िरदार रोटरी में काम करने वाला एक वकील है, जो इस गलत के ख‍िलाफ ‘हमें न्‍याय चाहिए’ की लड़ाई में कंधे से कंधा म‍िलाकर खड़ा है, लेकिन न तो वह कहीं च‍िल्‍लाता है, न उसका क्रांति लाने का कोई इरादा है. वह बस सहज है. उतना ही सहज ज‍ितना कोई देवगंज का रहने वाला महेंद्र हो सकता है. मेरी तरफ से इस फिल्‍म को 4 स्‍टार.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

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