‘इंडियन प्रीडेटर: द डायरी ऑफ ए सीरियल किलर’ समीक्षा: क्राइम यानी अपराध हमेशा से आम इंसान को आकर्षित करता आया है. नेटफ्लिक्स पर क्राइम विषय पर ढेरों फिल्म्स, वेब सीरीज और डॉक्यूमेंटरीज देखी जा सकती है. जब बुराड़ी के एक ही परिवार के 11 लोगों द्वारा सामूहिक आत्महत्या की थी तो नेटफ्लिक्स ने एक बेहद ही सनसनीखेज अंदाज में बनी डॉक्यूमेंटरी “हाउस ऑफ़ सीक्रेट्स – द बुराड़ी डेथ्स” रिलीज़ की थी. उसके बाद नेटफ्लिक्स ने भारत के एक कुख्यात सीरियल किलर चंद्रकांत झा की जिंदगी पर बनी “इंडियन प्रिडेटर- द बुचर ऑफ़ डेल्ही” रिलीज़ की थी जो कि बड़े ही बोरिंग से अंदाज़ में बनी लगती थी लेकिन कहानी उसकी भी रोचक थी.

अब इस डॉक्यूमेंटरी सीरीज का दूसरा अध्याय आया है जिसमें एक और सीरियल किलर राजा कोलंदर द्वारा किये गए 14 मर्डर्स की कहानी को दिखाया. इस डॉक्यूमेंटरी का नाम है- इंडियन प्रिडेटर: डायरी ऑफ़ अ सीरियल किलर. डॉक्यूमेंटरी की कहानी तो अंदर तक झकझोर देती है, लेकिन डॉक्यूमेंटरी बनायी बड़ी ही औसत तरीके से गयी है. अपराध पर छपने वाली मैगज़ीन मनोहर कहानियां की तरह. दिलचस्पी सिर्फ सीरियल किलर की कहानी में है. डॉक्यूमेंटरी की पटकथा पर न जाएं तो अपराध करने वाले की मंशा समझने में ज़रूर मदद करेगी ये डाक्यूमेंट्री.

डॉक्यूमेंटरी 1997 से लेकर 2000 तक किये गए 14 मर्डर्स की जांच की है. साल 2000 में इलाहबाद, उत्तर प्रदेश में एक पत्रकार के गायब होने से शुरू हुई इस कहानी की अगली कड़ियां इतनी भयावह और खूंखार हैं कि सोच कर जुगुप्सा, घृणा और भय एक साथ जन्म लेते हैं. पत्रकार धीरेन्द्र एक दिन तड़के घर से निकला और देर रात तक घर नहीं पहुंचा. उसके मोबाइल का चार्जर घर पर ही था. दो दिन तक कोई खबर न आने से घरवालों ने पुलिस की मदद ली. फ़ोन रिकॉर्ड की मदद से अंतिम कॉल्स की जानकारी मिली जिसके ज़रिये एक शख्स राम निरंजन उर्फ़ राजा कोलंडर तक पहुंचे.

शक होने पर राजा और उसके साथी वक्षराज को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. थोड़ा पुलिसिया ट्रीटमेंट मिला और राजा कोलंडर की ज़ुबान खुल गयी. उसने कबूल किया कि क़त्ल उसी ने किया था क्योंकि वो उसका उधार नहीं लौटा रहा था. पत्रकार को गोली मारी गयी थी, फिर उसका सर काट कर तालाब फेंक दिया गया था, सारे कपडे कहीं और फेंके गए थे और बचा हुआ शरीर खेतों में. राजा कोलंदर को जेल भेज दिया गया. उसकी और बच्चों से भी पूछताछ की जाने लगी. कमाल की बात थी कि उसके घरवालों ने, उसके दोस्तों ने, और उसके गांव के किसी शख्स ने इस बात को सिरे से नकार दिया कि राजा किसी तरह से इस खून में शामिल था.

पुलिस को जांच के दौरान एक डायरी मिली जिसमें 13 नाम लिखे हुए थे और 14 वे नंबर पर था उस पत्रकार का नाम. पुलिस को शक हुआ कि राजा ने इन 13 लोगों को भी मार डाला है. ज़रा दबाव बढ़ाया गया तो राजा पुलिस को अपने सूअर पालने के फार्म पर ले गया. पीपल के पेड़ नीचे खोदने पर कई नरकंकाल मिले और दो सिरों की खोपड़ियां भी बरामद हुई. इसके बाद की खोजबीन से ये पता चला कि डायरी का पहला नाम राजा के दोस्त का था जिसके परिवार का अभी भी राजा के घर आना जाना था. पूछताछ में राजा ने बताया कि उसने अपने दोस्त को पैसे उधार दिए थे, और वो दोस्त लौटा नहीं रहा था.

राजा का ये दोस्त खुद को बहुत चतुर बताता था और इस बात से राजा ने चिढ कर उसे अपने फार्म पर काट डाला. उसकी खोपड़ी को उबाल कर उसका सूप बना कर पी गया ताकि उसकी चतुराई, राजा के दिमाग में आ सके. वैसे जांच में पता चला है कि जिन 13 लोगों के नाम लिखे हैं और राजा को उनके मर्डर का दोषी बताया गया है, उनमें से कुछ लोग अभी भी ज़िंदा हैं. राजा अभी उन्नाव की हाई सिक्योरिटी जेल में बंद है. 2012 में उस पर कार लूटने और दो लोगों की हत्या के आरोप के आलावा पत्रकार धीरेन्द्र सिंह की हत्या मिला कर कुल तीन केस चल रहे हैं जिसमें उसे उम्र कैद की सज़ा सुनाई गयी है.

डॉक्यूमेंटरी के तीसरे और आखिरी एपिसोड में ये समझाया गया है कि राजा कोलंदर एक महत्वकांक्षी व्यक्ति था. वो मूलतः कोल जनजाति का था लेकिन जनजाति का अधिकार छीनकर कोल समाज के लोगों को अनुसूचित जाति का दर्ज़ा दे दिया गया. राजा ने अपनी पत्नी को जिला परिषद का चुनाव लड़वाया जिसमें वो विजयी रही. राजा खुद एक सरकारी महकमे में क्लर्क था. पत्नी के चुनाव जीतने के बाद राजा ने काफी संपत्ति जमा कर ली. वो लोगों को पैसे उधार देने लगा था फिर जब उधार वापस पाने में कोई आनाकानी करता या देरी करता तो राजा उन्हें अपने सूअर पालन केंद्र बुलाता या किसी सुनसान जगह पर बुलाकर उनका सर कलम कर देता. राजा किसी नरपिशाच की तरह बर्ताव करता था ये बात किसी को भी यकीन करने में मुश्किल हो रही थी लेकिन पुलिस के मुताबिक राजा ने खुद खोपड़ी उबालकर सूप पीने वाली बात पुलिस को बताई थी. बहरहाल, डॉक्यूमेंटरी में राजा कोलंदर से बातचीत भी दिखाई गयी है जिसमें राजा खुद को पुलिस के षडयंत्र का शिकार बता रहा है. हक़ीक़त सिर्फ राजा जानता है.

डॉक्यूमेंटरी दिल दहला देती है लेकिन इसका प्रेजेंटेशन बहुत ही बोरिंग सा है. पहला एपिसोड तो किसी लो बजट डॉक्यूमेंटरी का लुक लिए हुए है. राजा कोलंदर का ज़िक्र भी है लेकिन घटनाओं का नाटकीयकरण बहुत ही बचकाना है. राजा के परिवार की एंट्री दूसरे एपिसोड में होती है. राजा की मानसिक स्थिति की कल्पना इसी बात से की जा सकती है कि अपने बच्चों का नाम अदालत, ज़मानत और आंदोलन रखे थे. पत्नी जिला परिषद् की सदस्य थी तो वो उसके रुतबे के दम पर पैसा जमा करने लगा. उसके पास दो बड़ी कार, एक स्कूटर, एक पिग फार्म और कई सारी उपभोग की वस्तुएं थी. उसके बच्चे उसके लिए सब कुछ थे. उसका पड़ोसियों और मित्रों से भी बड़ा अच्छा व्यवहार था. उसके दोस्त तो उसकी दोस्ती के कायल थे. राजा लोगों को ज़रुरत के समय पैसे उधार देता था. हालांकि राजा ने इस बात से इंकार किया लेकिन उसके परिवारवालों और मित्रों ने इस बात की तस्दीक की थी कि राजा और उस पत्रकार धीरेन्द्र के बीच पुरानी बातचीत थी और दोनों मिलते भी रहते थे.

डॉक्यूमेंटरी में बहुत रिसर्च की गयी है लेकिन प्रस्तुतीकरण कमज़ोर पड़ गया है. संगीत भी कर्कश है जिस वजह से बार बार देखने में व्यवधान होता रहता है. सौरभ प्रभुदेसाई (क्रिमिनल जस्टिस, अनदेखी और अन्य) की एडिटिंग भी धीमी है. इसे दो एपिसोड में ही ख़त्म किया जा सकता था. स्कैम 1992 – द हर्षद मेहता स्टोरी के सिनेमेटोग्राफर प्रथम मेहता सिनेमेटोग्राफी काफी प्रभावी है लेकिन सिर्फ इसी वजह से डॉक्यूमेंटरी देखी जाए, ये तो संभव नहीं है. धीरज जिंदल का निर्देशन औसत है. अगर आप कमज़ोर दिल वाले हैं तो इसे ना ही देखें.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

टैग: समीक्षा, वेब सीरीज

Source link

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *