‘Ghar Waapsi’ Review: 2011 में एक प्राइवेट एफएम रेडियो स्टेशन पर पत्रकार नीलेश मिसरा ने एक प्रोग्राम शुरू किया था- यादों का इडियट बॉक्स. एक छोटे शहर से ज़िंदगी शुरू करने वाले युवा, नौकरी और करियर की तलाश में बड़े शहरों और महानगरों की तरफ भागते हैं. हतप्रभ स्थिति में कुछ दिन गुज़ारने के बाद, वो उस महानगर के आसमान में अपनी ज़मीन तलाश लेते हैं. कुछ साल गुजरने के बाद, अपने घरवालों से कटे-कटे, कुछ ऐसा होता है कि अपने शहर की याद चली आती है. दिल की पुकार जब अपने घर, अपने शहर वापस ले जाती है तो अपनी मिटटी कुछ देर तक बड़ी सौंधी लगती है लेकिन कुछ दिन बाद आज़ाद रहने का आदी हो चुका मन, फिर से अपने महानगर की सिमटी सी छत की और जाना चाहता है.

कभी-कभी हालात ऐसे बन जाते हैं कि महानगर दुत्कार देता है और फिर वो छोटे शहर का छोटी सी नदी में तैरने वाला, उस महासागर से निकाल फेंका जाता है. उसे लौटना होता है अपने घर जहां उसे सब अजनबी से लगते हैं लेकिन कुछ दिनों बाद वही अचार, वही सब्ज़ी और वही लाड, उसे अपनी मिटटी में रोपने के लिए रोक लेता है. छोटे शहर से बड़े शहर में सपना तलाशने गए लड़के को जब नौकरी से निकाल दिया जाता है तो वो अपने घर पहुंचता है, और ज़िंदगी को कुछ साल पीछे ले जा कर कोशिश करता है. परिवार के साथ बिताने वाला हर वो पल जो वो उस महानगर की ऊंची ईमारत से नीचे फेंक आया था, उसे जी सके. डिज्नी+ हॉटस्टार पर घर वापसी नाम की वेब सीरीज, अपनी जड़ों को तलाशती एक ज़िंदगी की कड़वी दास्तान है. देखने लायक सीरीज है.

बैंगलोर में एक सॉफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाले शेखर त्रिवेदी (विशाल वशिष्ठ) को नौकरी से निकल दिया जाता है. एक ऐसी नौकरी जहां उसके काम की सब तारीफ करते हैं लेकिन उसका डिवीज़न ही बंद कर दिया जाता है. अपनी सेविंग्स और कार वगैरह बेच कर कुछ महीने तो ईएमआई की जुगाड़ हो जाती है लेकिन आखिर में उसे अपने गृहनगर, अपने परिवार के पास इंदौर लौटना पड़ता है. करीब 30 साल से एक ट्रेवल एजेंसी चलाने वाले उसके पिता, एक स्नेहिल लेकिन कड़वा बोलने वाली मां, एक भाई जो बड़े बड़े सपने देखता है और किसी छोटे शहर के लड़के की तरह स्कीम बनता रहता है और एक छोटी बहन जो पहले हर बात अपने बड़े भाई को बताती थी लेकिन अब उस से सब कुछ छुपाती रहती है.

फॅमिली के अंदर के समीकरण बिगड़े हुए हैं. शेखर नौकरी की तलाश करता रहता है लेकिन कुछ दिनों बाद वो अपने पिता की ट्रेवल एजेंसी को एक नए रंग में डालने का प्रयास करता है. बाकी समय में वो अपने परिवार के साथ जो न बिताये हुए पल हैं, उन्हें फिर से लाने की कोशिश करता रहता है. एक मिडिल क्लास फॅमिली में बिना नौकरी के लड़के की क्या मनोदशा होती है वो इस वेब सीरीज में बखूबी दिखाया गया है. कुछ सीन तो कमाल के हैं.

लेखक द्वय भरत मिश्रा और तत्सत पांडेय दोनों ही पिछले कुछ सालों से डिजिटल मीडिया में शॉर्ट फिल्मस, वेब सीरीज और ब्रांडेड कॉन्टेंट लिखते आ रहे हैं. तत्सत इंदौर के रहने वाले हैं और इसलिए घर वापसी में इंदौर छाया हुआ है. शहर की छोटी छोटी बातों को कहानी में मज़े से छिड़का है और शेखर के क्लासमेट दर्शन बाफना (अजितेश गुप्ता) तो पक्के इंदौरी हैं हीं. उनकी भाषा, उनका बोलने का अंदाज़, उनकी भाव भंगिमाएं, उनके रिएक्शंस और सबसे बड़ी बात उनका अभिनय पूरा इंदौर है.

अजितेश कई सालों से अभिनय कर रहे हैं लेकिन उनकी पहचान एक दास्तानगो के रूप में है. अमीर खुसरो पर लिखे, निर्देशित, अभिनीत और मंचित उनके कार्यक्रम “जो डूबा सो पार” में अजितेश खुसरो बनते हैं और क्या कमाल बनते हैं. सबसे पते की बात अजितेश खुद सीतापुर, उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं. क्लाइमेक्स की तरफ बढ़ते हुए जब विशाल वशिष्ठ उनसे कहते हैं कि तू मुझसे जलता है क्योंकि मेरे पास तो तेरे जैसा दोस्त है लेकिन तेरे पास तो दोस्त नहीं है, अजितेश की ऑंखें सभी को रुला देती हैं. छोटे भाई संजू के किरदार में उत्तर प्रदेश के साद बिलग्रामी हैं. इन्हें कुछ समय पहले गुल्लक में देखा था, फिर खुदा हाफिज 2 में एक महत्वपूर्ण किरदार में नज़र आये. क्या कमाल अभिनय करते हैं साद! पूरे छोटे भाई बने हैं. वो भी छोटे शहर के.

ऐसा लगता है कि साद की निजी ज़िंदगी में भी वो छोटे भाई ही हैं. आकांक्षा कौशिक ने छोटी बहन का रोल किया है. कहानी में प्रेम और रिश्तों को लेकर एक ऐसा मोड़ आता है जब परिवार की मूल कल्पना में व्यवधान पैदा होता है, वो सुरुचि (आकांक्षा) की वजह से होता है और तब आकांक्षा ने संयत चेहरे से बहुत सी बातें बयां कर दी हैं. विभा छिब्बर तो तूफ़ान हैं हीं. मां हैं और पूरी मां हैं, पक्की वाली, एकदम छोटे शहर में ब्याही, कुछ संस्कार और रीति रिवाजों को लेकर चलने वाली मां, बार बार अपने बच्चों से हकीकत के नए नए वर्शन देखती रहती है, चिढ़ती रहती है, कुढ़ती रहती है लेकिन मां बनना नहीं छोड़ पाती. पिता की भूमिका अतुल श्रीवास्तव ने निभाई है. अपने बाग़ के पौधों को मन्त्र सुनकर उनकी रक्षा करने के दृश्यों में पूरी सीरीज लूट ले जाते हैं.

घर वापसी अद्भुत है. लगभग हर शख्स जिसने ये 6 एपिसोड की छोटी सी सीरीज देखी है उसे अपने दिन याद आ रहे हैं. उसे हर वो त्यौहार याद आ रहा है जो उसने अपने ऑफिस के काम की वजह से नहीं मनाया. उसे वो दिवाली भी याद आ रही है जो उसने सिर्फ दो दिन की छुट्टी में निपटाई थी. उसे अपने भाई, बहन, माता, पिता, दोस्त और रिश्तेदार का वो कॉल याद आ रहा है जो उसने अटेंड नहीं किये क्योंकि वो मीटिंग में था. उसे हर वो बर्थडे याद आ रहा है, वो एनिवर्सरी याद आ रही है जिसे मनाने के लिए उसने ऑनलाइन बुके और केक भिजवा दिया था. उसे अपनी ऊटपटांग खरीद नज़र आ रही है जिस पर उसने बिना सोचे पैसा बहाया है, उसे अपने वर्क-फ्रेंड्स के साथ मनाई पार्टीज और वेकेशंस याद आ रही हैं जहां वो अपने घरवालों के बारे में एक पल भी नहीं सोचता था.

ये घर वापसी की सफलता है. अच्छी कहानी, अच्छी पटकथा, अच्छे डायलॉग, अच्छा अभिनय, अच्छा निर्देशन सब छोड़ दीजिये, सिर्फ घर वापसी देखते समय एक बार भी आप रो दिए तो सीरीज सफल है. रुचिर अरुण को अद्भुत निर्देशक के लिए बधाई. पटकथा की छोटी से छोटी मांग भी वो पूरी करते गए और सीरीज को फिल्माते गए. इंदौर इस सीरीज में अपने आप में एक किरदार बन कर नज़र आया है. शहर की बारीकियां तो तत्सम ने लिखी होंगी मगर उन्हें परदे पर उतारने का अंदाज़ बहुत ही लाजवाब रहा,

घर वापसी की सफलता बताती है कि बड़े शहर में भी कमाल तो छोटे शहर के लोग ही करते हैं बस नीयत से सीधे और दिमाग से भोले ये छोटे शहर के लोग कॉर्पोरेट राजनीति में फंस कर अपने आप को खो देते हैं. जब सारा देश बड़ा शहर बन जायेगा तो भोलापन, मीठी जुबां, आत्मीयता, प्रेम, बिना मतलब के बने रिश्ते और संस्कार भी कहीं खो जायेंगे. इन्हें खोने से बचाना चाहिए. अपनी जड़ों की याद फिर से ताज़ा करनी हो तो घर वापसी देखिये. रोना भी अलाउड है, क्योंकि बरसों की तन्हाई में तो रोने के लिए भी जगह और वजह दोनों नहीं मिलती. इस सीरीज के लेखकों, निर्देशकों, अभिनेताओं और निर्माताओं को साधुवाद. इसका कोई दूसरा भाग बनाना चाहिए, अबकी बार ए1 ट्रेवल एजेंसी को तरक्की करते दिखाने की कहानी हो जाए.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

टैग: समीक्षा, वेब सीरीज

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