फिल्म समीक्षा शाबाश मिठू हिंदी में: क्रिकेट वो है, जिसने इस देश में सबसे ज्यादा पॉपुलर खेल का दर्जा पाया है. हाथ में थापी या बैट लेकर गली में क्रिकेट खेलने का किस्सा लगभग हर किसी की यादों में शुमार होता है. लेकिन क्रिकेटरों को भगवान का दर्जा देने वाले इस देश में जब यही खेल लड़कियां खेलने निकलती हैं तो उनकी जिंदगी क्या होती है, उन्हें अपनी पहचान बनाने के लिए कितनी जद्दोजहद करनी पड़ती है. यही वो जरूरी बात है जो इंडियन विमेन क्रिकेट टीम की कप्तान मिथाली राज की बायोपिक के जरिए बताई गई है. इस फिल्म के ट्रेलर ने पहले ही बता दिया था कि ये कहानी आपको कुछ ऐसा दिखाने जा रही है, जो इससे पहले क्रिकेट की फिल्मों में नहीं दिखाया गया.
कहानी: शाबाश मिथु कहानी है भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान रही मिताली राज की जो एक तमिल परिवार में हैदराबाद में जन्मीं. भरतनाट्यम सीखते-सीखते एक सहेली के चलते मिथाली का रुख क्रिकेट की तरफ कुछ ऐसा पड़ा कि उसे उसके दोस्त सचिन कहने लगे. मिथाली के लिए क्रिकेट चुनने में परिवार की तरफ से कोई समस्या नहीं आई, लेकिन क्रिकेट अकेडमी में पहुंचकर फीमेल क्रिकेटरों के बीच खुद को सेट करने से लेकर महिला क्रिकेट टीम को सुविधाएं दिलाने तक मिथाली की कहानी हर पहलू दिखाती है.
इस फिल्म में एक सीन है- महिला क्रिकेट टीम इंग्लैंड जा रही है अपनी मैच के लिए, लेकिन उन्हें एयरपोर्ट पर लाइन से हटा दिया जाता है और अपने लगेज से वजन कम करने को कहा जाता है. सारी खिलाड़ी एयरपोर्ट पर नीचे बैठ अपने सामान से जरूरी चीजें निकाल रही हैं, तभी लोग चिल्लाते हैं ‘इंडिया इंडिया…’ क्योंकि पुरुष क्रिकेट टीम के खिलाड़ी वहां से गुजर रहे हैं. ये अकेला सीन सुपर पॉपुलर खेल के दो खिलाड़ियों के बीच के अंतर को दिखाने के लिए काफी है. इस फिल्म में आपको ऐसे कई सीन मिलेंगे जिन्हें देखकर आपको ये परेशानी साफ नजर आएगी.
मिथाली राज की इस बायोपिक में तापसी पन्नू, मिथाली के किरदार में नजर आई हैं. तापसी अपने किरदार में असरदार रही हैं. निर्देशक श्रीजित मुखर्जी की इस कहानी में तापसी कहीं भी हीरो नहीं बनी हैं, हीरो हमेशा उनका बल्ला ही रहा है, वहीं तापसी खुद बस धीरे से मुस्कुराती चुप-चाप अपने ही अंदाज में लोगों को चौंकाने में लगी हैं. मिथाली के बचपन का किरदार निभाने वाली चाइल्ड आर्स्टिट ने भी बढ़िया काम किया है.
स्पोर्ट्स ड्रामा में जो भी जरूरी चीजें होनी चाहिए, वो सब इस फिल्म में हैं. हालांकि मुझे ये फिल्म थोड़ी स्लो लगी. साथ की कुछ सीक्वेंस ऐसे थे, जिन्हें काफी ज्यादा खींचा गया. लेकिन श्रीजित मुखर्जी इसी तरह के ठहराव के साथ अपनी कहानी कहते हैं. दूसरी चीज मुझे सीक्वेंसिंग को लेकर लगी कि आखिर में वर्ल्ड कप का सीक्वेंस दिखाते हुए जो क्रिकेट दिखाया गया है वो हिस्सा ओवरडोज जैसा लगा. यहां एडिटिंग की जरूरत थी. शाबाश मिथु को मेरी तरफ से 3 स्टार.
डिटेल्ड रेटिंग
कहानी | : | |
स्क्रिनप्ल | : | |
डायरेक्शन | : | |
संगीत | : |
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पहले प्रकाशित : 15 जुलाई, 2022, 12:23 अपराह्न IST