साई पल्लवी (Sai Pallavi) फिल्मों में अपने असाधारण प्रदर्शन के लिए पूरे भारत में एक जाना-माना नाम बन गई हैं. अभिनेत्री हर फिल्म में अपने बेजोड़ अभिनय से लोगों को इंप्रेस करती हैं. उनकी राणा दग्गुबाती के साथ ‘विराट पर्वम’ (Virata Parvam) भी खूब पसंद की गई और आज (15 जुलाई) को उनकी ‘गार्गी’ (Gargi movie) सिनेमाघरों में रिलीज हुई है. फिल्म में वे एक बिंदास बेटी गार्गी की भूमिका निभाती हैं जो बलात्कार के मामले में पांचवें आरोपी बने अपने पिता ब्रम्मानंदम (RS Shivaji) को बचाने के लिए कड़ी मेहनत करती है.

पिता की गिरफ्तारी बनती बिंदास ‘गार्गी’ की बड़ी टेंशन

फिल्म की शुरुआत गार्गी के एक स्कूल में कैजुअल इंट्रोडक्शन से होती है, जहां वो एग्जाम को कंडक्ट कर रही होती. उसका एक सांसारिक जीवन है, उसके पिता एक अपार्टमेंट में सुरक्षा गार्ड हैं जबकि मां एक छोटे व्यवसाय के साथ एक हाउस वाइफ होती हैं. यह एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार (lower middle-class family) परिवार है जिसमें लोग जितना कमाते हैं, उतने से ही गुजारा कर संतुष्ट रहते हैं. इस परिवार का जीवन उस वक्त समस्याओं से घिर जाता है जब पुलिस गार्गी के पिता को 9 साल की बच्ची के रेप के मामले में 4 अन्य आरोपियों के साथ गिरफ्तार कर लेती है. ये घटना गार्गी को पूरी तरह से हिलाकर रख देती लेकिन वो हार नहीं मानती. वह केस लड़ने के लिए वकील इंद्रन्स कालियापेरुमल (Kaali Venkat) की मदद लेती है और उसे हकलाने की समस्या है.

गैंगरेप पीड़िता के दर्द को दर्शाती है ‘गार्गी’

देखा जाए तो गार्गी एक इमोशनल कहानी लगती है जो एक यौन शोषण से संबधित है लेकिन ये सहानुभूतिपूर्ण भी है. इसमें और भी परतें हैं जो दर्शकों को बांधे रखती है. ब्रम्मानंदम (गार्गी के पिता) के खिलाफ सबूत इतने मजबूत होते हैं कि उन्हें जेल से छुड़ाना मुश्किल है. साथ ही पुलिस और पब्लिक प्रोसिक्यूटर आरोपियों से नाराज हैं और उन्हें सलाखों के पीछे पहुंचाने की पूरी कोशिश करते हैं. फिल्म में गैंगरेप के सीन दिखाते समय बहुत ज्यादा ग्राफिक का इस्तेमाल नहीं होता है और न ही बच्चे का चेहरा दिखाया जाता है. बच्चे के साथ जो हुआ उसके लिए गार्गी को बहुत बुरा लगता है, लेकिन वो ये सब किसी भी कीमत अपने पिता की लड़ाई के रास्ते में नहीं आने देना चाहती.

सराहनीय है गौतम रामचंद्रन का निर्देशन

एक ट्रांसपर्सन जज है जो मामले की देखरेख करता है. पब्लिक प्रोसिक्यूटर ने उसका मजाक उड़ाते हुए कहा कि अगर ये एक ‘सामान्य व्यक्ति’ होता तो मामला बंद हो जाता. न्यायाधीश ने कहा, ‘मैं एक पुरुष के अहंकार और एक महिला के दर्द को जानता हूं. मैं केस की देखरेख करने वाला सबसे अच्छा व्यक्ति हूं.’ इस खास सीन के लिए डायरेक्टर गौतम रामचंद्रन (Gautham Ramachandran) की तारीफ होनी चाहिए. एक और मोढ़ तब आता है जब गार्गी अपने घर के दरवाजे बंद कर लेती है. ऐसे में जेल में बंद उसके पिता के साथ उसके खुद के जीवन में भी सभी दरवाजे बंद होने लगते हैं. गार्गी की लाइफ विडंबना से भरी होती है, जो ये बयां करती है कि कोई भी जगह महिला के लिए सुरक्षित नहीं है.

शानदार है गार्गी का क्लाइमेक्स

फिल्म का क्लाइमेक्स ही गार्गी को इस जॉनर की अन्य फिल्मों से अलग बनाता है. यह या तो आपको झटका दे सकता है या आपको दूर कर सकता है. चूंकि अंत का सीन परेशान करने वाला है, लेकिन आपको यह सोचने पर भी मजबूर करता है कि हम किस दौर में रह रहे हैं और महिलाएं कितनी कमजोर हैं. जब गार्गी को सच्चाई का पता चलता है, तो वह रोने लगती है, जो आपको भीतर से हिला देती है. साई पल्लवी का अभिनय फिल्म का मुख्य आकर्षण है. काली वेंकट और आरएस शिवाजी ने ने भी अपने अभिनय से एक्ट्रेस को कड़ी टक्कर दी है.

म्यूजिक और तकनीकि में भी शानदार है ‘गार्गी’

‘गार्गी’ तकनीकी रूप से भी मजबूत है. गोविंद वसंता का म्यूजिक शानदार है और संवेदनशील मुद्दे पर होने के कारण ये इमोशन्स से भी भरपूर है. विषय की बात आती है तो गार्गी जरूर देखी जाने वाली फिल्म है, जो आज के समय में बहुत प्रासंगिक है. इसमें हर एक कैरेक्टर ने अपना 100 फीसदी दिया है, दो समाज की एक सच्चाई को बयां करती है.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

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