देश की राजनीति के एक अहम् हस्ताक्षर एम करुणानिधि, उनके सुपुत्र और तमिलनाडु के वर्तमान मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और इनके पुत्र और तमिलनाडु के विधायक उदयनिधि स्टालिन, तीनों ही द्रविड़ मुनेत्र कषगम पार्टी के झंडाबरदार हैं/ रहे हैं. उदयनिधि स्टालिन एक सुलझे हुए विचारों वाले अभिनेता हैं और इसलिए जब वो अपनी पार्टी के प्रचार की ज़िम्मेदारी लेते हैं तो पार्टी की जीत सुनिश्चित करते हैं. कहते हैं जब उदयनिधि स्टालिन ने आयुष्मान खुराना अभिनीत फिल्म आर्टिकल 15 देखी तो उसका तमिल भाषा में रीमेक बनाने का निर्णय ले लिया था. हालांकि हाथों से मैला ढोने की प्रथा से उदयनिधि स्वयं इतने व्यथित रहते थे कि उन्होंने अपने चुनाव क्षेत्र चेपॉक-थिरुवल्लिकेनि में सीवर साफ करने के लिए एक रोबोटिक मशीन लगा दी थी, आर्टिकल 15 के थिएटर में आने के ठीक एक हफ्ते पहले. नेंजुकु नीति फिल्म सोनी लिव पर उपलब्ध हुई है, और जिन्होंने 2019 की आर्टिकल 15 देखी है वो इसे रीमेक तो नहीं बल्कि एक बेहतरीन तमिल वर्शन कहना पसंद करेंगे क्योंकि आर्टिकल 15 उत्तर प्रदेश में बसाई गयी थी और ये फिल्म तमिलनाडु के देहात की असली कथा मालूम होती है और परिवेश का तमिलिकरण बहुत ही नाज़ुक तरीके से किया गया है.

एम करुणानिधि की ऑटोबायोग्राफी का नाम है नेंजुकु नीति और उनके जैसे दलित और मजलूम वर्ग के रक्षक लीडर को सम्मानित करने के इरादे से फिल्म का नाम भी नेंजुकु नीति ही रखा गया था और इसका अर्थ है दिल के लिए न्याय. एक नए पुलिस अफसर का गांव में आना वैसे तो बड़ी हलचल की बात होनी चाहिए लेकिन ऐसा होता नहीं है क्योंकि इस जगह के लोगों ने ये दिल में मान लिया है कि अमीर का काम है शोषण करना, गरीब का काम है शोषित और अपमानित होना. विजयराघवन (उदयनिधि) की नयी पोस्टिंग के स्वागत में कई चुनौतियां पहले से खड़ी रहती हैं. गाँव में पुलिस ही शोषक है. जात पाँत का इतने भयावह बंटवारा है कि नीची जात के कॉन्सटेबल के हाथ से दिया हुआ पानी तक स्वीकार्य नहीं है और नीची जात की स्त्री द्वारा बनाया गया खाना यूँही सड़क पर फेंक दिया जाता है और नीची जात के कई बच्चे उस खाने को ललचायी निगाहों से देखते ही रह जाते हैं. गांव में गटर साफ़ करने के लिए अभी भी लोग लगभग नंगे बदन सीवर में उतारते हैं और डुबकी लगा कर नाले की गंदगी बाहर निकालते हैं.. थाने के अंदर भी विजयराघवन को अपनी टीम में हर किसी की अलग अलग जाति सुन कर चक्कर ही आ जाते हैं. ऊंची जाति का कॉन्सटेबल नीची जाति के इंस्पेक्टर की बात नहीं सुनता. ऐसे में दलित परिवारों की तीन लड़कियां गायब हो जाती हैं और दो के शव पेड़ से लटके हुए मिलते हैं. इसे हॉनर किलिंग बताया जाता है गांव की राजनीति समझने की कोशिश करते हुए विजयराघवन स्थानीय नेता तक पहुंच जाते हैं और तब उन्हें पता चलता है कि स्वयं विजयराघवन का बॉडीगार्ड भी उन लड़कियों के रेप और हत्या में शामिल था. खैर, तीसरी लड़की मिल जाती है और गुनाह पर से पर्दा उठता है. विजयराघवन के राह में रोड़ा बनता है सीबीआई अफसर लेकिन सबूतों की वजह से उसकी धमकी भी किसी काम नहीं आती.

फिल्म किसी किसी जगह आर्टिकल 15 से बेहतर हो गयी है. उदयनिधि स्टालिन के चेहरे में कुछ मासूमियत बरकरार है लेकिन उनकी अदाकारी एक बेहतरीन आईपीएस अधिकारी की तरह है. वो फ़िल्मी हीरो नहीं बनते, वो कोई काम कानून के दायरे के बाहर जा कर नहीं करते. उनका अभिनय भी अव्वल दर्ज़े का है और आयुष्मान से बेहतर लगे हैं. उदयनिधि की ये भूमिका उनके पोलिटिकल करियर के लिए भी अच्छी साबित होगी क्योंकि वो ऐसी समस्या को उजागर कर रहे हैं जो कि तमिलनाडु की राजनीति को परिभाषित करती रही है. दलितों की आवाज़ को दबाने का संविधान किसी को अधिकार नहीं देता, इसी बात को उदयनिधि चाहें तो अपनी पॉलिटिक्स में और बेहतर ढंग से शामिल कर पाएंगे. बाकी कलाकारों का रोल छोटा है लेकिन अभिनय शक्तिशाली है.

दिनेश कृष्णन का कैमरा वर्क धीरे धीरे चोट करता है दर्शकों के मन-मस्तिष्क पर. कुछ कुछ सीन इतने वीभत्स लगते हैं कि कमज़ोर दिलवालों को आंखें बंद ही रखना चाहिए और मजबूत दिलवालों को शर्म आनी चाहिए. एडिटिंग रुबेन की है और निर्देशक हैं अरुणराजा कामराज जिन्होंने इसके पहले कन्ना नाम की एक सफल फिल्म बनायीं थी लेकिन ये एक प्लेबैक सिंगर के तौर पर ज़्यादा जाने जाते हैं. फिल्म एक रीमेक बन कर न रह जाए इसलिए इसे तमिलनाडु के देहात के रंग से सराबोर करना था. अरुणराजा ने ये काम बेहद खूबसूरती से किया है. आर्टिकल 15 जहां थोड़ी नाटकीय हो रही थी नेंजुकु नीति, एक तमिल फिल्म होने के बावजूद उतनी नाटकीय नहीं बनी. न कोई ड्रामेटिक कैमरा, न कोई अजीब से शॉट्स और बेतरतीब एक्शन जिसमें हीरो किसी सुपर हीरो की तरह लड़ता है. आर्टिकल 15 देखी है तो नेंजुकु नीति शायद देखने में मज़ा नहीं आएगा लेकिन फिल्म लाजवाब है. हिंदी फिल्म की आत्मा को तमिल भाषा का शरीर किस तरह मिला है, ये देखना चाहिए.

डिटेल्ड रेटिंग

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टैग: बोनी कपूर, छवि समीक्षा

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