Home Film Review Zombivili Review: हंसते-हंसते जॉम्बीज से लड़ती एक प्यारी सी फिल्म ‘जॉम्बीवली’

Zombivili Review: हंसते-हंसते जॉम्बीज से लड़ती एक प्यारी सी फिल्म ‘जॉम्बीवली’

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हॉरर फिल्मों का अपना एक अलग क्रेज होता है. कई दर्शक एक अच्छी हॉरर फिल्म की तलाश करते रहते हैं. हॉरर फिल्मों का ही एक स्वरुप है जॉम्बी फिल्म्स जिसमें किसी बीमारी या कुछ खाने-पीने की वजह से अच्छा भला मनुष्य एक ऐसी अवस्था में पहुंच जाता है जहां वो न जीवित इंसान कहा जा सकता है और न ही मृत. दरअसल वो फंस जाता है जिन्दगी और मौत के बीच की एक अवस्था में जहां, उसे पता नहीं होता कि वो क्या कर रहा है बस उसे एक ही बात याद रहती है कि जितने भी जीवित इंसान नजर आएं उन्हें काट कर उन्हें भी अपने जैसा बना देना यानी जॉम्बी। इस तरह की फिल्मों को या तो कॉमेडी बनाया जाता है या फिर थ्रिलर. हाल ही में ज़ी5 पर एक मराठी जॉबी फिल्म रिलीज की गयी है – ज़ॉम्बीवली जो कि एक कॉमेडी है. मराठी फिल्मों में एक बात और ध्यान रखने वाली है वो है कि इसमें अधिकांश किरदार मध्यमवर्ग के होते हैं और कहानी भी इन्हीं लोगों की ज़िन्दगी पर बनायीं जाती है ताकि कहानी की विश्वसनीयता कायम रहे. जॉम्बीवली एक छोटी सी फिल्म है लेकिन बड़ी प्यारी है. इसे देखने का अपना ही मज़ा है.

जैसा कि मुंबई के हर उपनगर की कहानी है एक ही इलाके में ऊंची इमारतें हैं और साथ है गरीबों की बस्ती और फिल्म में ये इलाका है डोम्बिवली. वहां एक फ्लैट में रहने आते हैं सुधीर (अमेय वाघ) और उसकी गर्भवती पत्नी सीमा (वैदेही). इलाके में पानी का संकट है. पास की गरीब बस्ती में एक नौजवान है विश्वास (ललित प्रभाकर) जो बस्ती वालों के हक़ की लड़ाई लड़ता रहता है. सुधीर एक मिनरल वॉटर की सामान्य में काम करता है जहाँ का मालिक कुछ गलत कामों में संलग्न है. जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है पूरा का पूरा डोम्बिवली ज़ॉम्बीज़ के चपेट में आ जाता है और इनका आतंक फैलते जाता है. सुधीर, सीमा, विश्वास, सुधीर के कुछ पडोसी और न्यूज़ चैनल का एक कैमरामैन और रिपोर्टर पूरी रात अपने आप को बचाने के लिए यहाँ वहां भागते रहते हैं. उन्हें पता चलता है कि सुधीर का बॉस अपने मिनरल वॉटर के ज़रिये पानी में कुछ मिला रहा है जिस वजह से लोग ज़ॉम्बीज़ बने हैं. वो फैक्ट्री पहुँच कर ज़ॉम्बीज़ का मुक़ाबला करते हैं और फिर फिल्म का सुखद अंत होता है.

महेश अय्यर की कहानी का प्लॉट बहुत मामूली लगती है लेकिन फिल्म का स्क्रीनप्ले (सिद्धेश पुरस्कर, साईनाथ गणुवाड, योगेश विनायक जोशी) इस छोटी सी कहानी को 2 घंटे की बेहतरीन फिल्म में बदलने में कामयाब हुआ है. सिद्धार्थ, साईनाथ और योगेश ने इस फिल्म के चुटीले संवाद लिखे हैं. मराठी दर्शकों को इन डायलॉग्स में बहुत मज़ा आएगा क्योंकि ये उनकी ज़िन्दगी से सीधे सीधे उठाये हुए हैं. कथा और पटकथा के बीच काफी कुछ ऐसा है जो दर्शकों को गुदगुदाएगा और साथ ही ज़ॉम्बीज़ के आतंक से हल्का फुल्का डरायेगा भी. लॉरेंस डाकुन्हा की सिनेमेटोग्राफी फिल्म का मूड और माहौल बनाये रखती है. कम रोशनी वाले और ज़ॉम्बीज़ से लड़ाई वाले शॉट्स अच्छे से फिल्माए गए हैं. ज़ॉम्बीज़ के अटैक के शॉट्स में भी हिंसा कम से कम रखी गयी है. नटरंग जैसी विख्यात मराठी फिल्म के एडिटर अनुभवी जयंत जठार कहानी को बाँध के रखते हैं. इस फिल्म में रोमांच के लिए सही एडिटिंग होना ज़रूरी थी और जयंत की कैंची ने एक भी शॉट लम्बा नहीं होने दिया है. निर्देशक आदित्य सरपोतदार ने एक से बढ़कर एक मराठी फिल्मों का निर्देशन किया है. उनकी शुरुआत “उलाढाळ” से हुई थी. रितेश देशमुख की दूसरी सुपरहिट मराठी फिल्म “माउली” का निर्देशन भी आदित्य ने ही किया था.

अभिनय सभी ने अच्छा किया है. अमेय वाघ अपनी बड़ी बड़ी आंखों और अजीब सी दाढ़ी की वजह से खुद ही ज़ॉम्बी लगते हैं लेकिन उन्होंने एक साधारण मध्यमवर्गीय नौकरीपेशा इंजीनियर की भूमिका बड़ी सहजता से निभाई है. अमेय कभी कभी हिंदी फिल्मों में या वेब सीरीज में छोटे छोटे किरदार निभाते नज़र आते हैं. वैसे मराठी दर्शक उन्हें उनकी डिजिटल कंपनी भारतीय डिजिटल पार्टी के बनाये हुए वायरल वीडियो की वजह से बेहतर जानते हैं. ललित प्रभाकर ने सबसे ज़्यादा प्रभावित किया खासकर तब जब वो अपने दाहिने हाथ को जग्गू कहकर पुकारते हैं और जग्गू नियंत्रण में नहीं रहता इसलिए हमेशा उस हाथ को जेब में ही डाले रहते हैं. वैसे तो फिल्म ज़ॉम्बी पर बनी है मगर फिल्म में विलन की भूमिका निभाई है विजय निकम ने. इन्हें कई बार छोटे छोटे रोल करते हुए हिंदी फिल्मों में भी देखा गया है. सुधीर की पत्नी सीमा के किरदार में वैदेही ने भी मराठी की गाली का बहुत ही बढ़िया इस्तेमाल किया है. सैफ अली खान वाली जो गोवा गॉन देख कर अगर ज़ॉम्बी कॉमेडी देखने में मजा आया हो तो जॉम्बीवलीभी देखिये, क्योंकि भाषा समझने की जरुरत नहीं पड़ेगी, बस हंसते रहेंगे. फिल्म के क्रेडिट रोल्स आखिर में हैं, जिसमें एक बेहतरीन गाना ‘अंगात आलय’ डाला गया है और उसमें सिद्धार्थ जाधव की उपस्थिति भूतिया मजा दिला देती है. गाने पर नाचने का मन करेगा.

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डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

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