तेलुगु फिल्मों में ही नहीं बल्कि पूरे भारत भर की फिल्मों में अब निर्देशक एसएस राजामौली ने अपनी फिल्मों के स्केल के जरिये कुछ ऐसे मापदंड तय कर दिए हैं, जिन्हें पार पाना अब संभव होता दिख नहीं रहा है. राजामौली की फिल्मों में बेहतरीन कहानी की अलावा भी बहुत कुछ होता है जैसे भव्य सेट और बिलकुल नए किस्म का एक्शन. उनकी फिल्मों में एक बात जो और काबिल-ए-तारीफ होती है वो है फिल्म में सभी तरह की इमोशन का अच्छा संतुलन. उनकी फिल्मों में मुख्य पात्र हमेशा ही एक सहृदय व्यक्ति होता है और उसकी आंख में आंसू आते ही आते हैं. राजामौली की फिल्मों में माइथोलॉजी, पुरातन मंदिरों पर उकेरी आकृतियों, सदियों पुरानी पेंटिंग्स से काफी इंस्पिरेशन ली जाती है और जब आपको ऐसा लगता है कि उनकी एक दो फिल्में देख कर आप उनकी स्टाइल समझ जायेंगे, वो कुछ और ही नया ले आते हैं. ये जो नयापन है ये फिल्मों के तयशुदा फॉर्मूलों को एक नए ढंग से प्रस्तुत करने की वजह से आता है. कई निर्देशक उनकी इस स्टाइल को अपनाने की कोशिश कर रहे हैं और लगभग सभी असफल हो रहे हैं. इसी कड़ी में नया नाम है निर्देशक कोरतला सिवा का. इनकी ताज़ा फिल्म आचार्य हाल ही में अमेज़ॉन प्राइम वीडियो पर रिलीज हुई. खूबसूरत स्पेशल इफेक्ट्स, बेहतरीन कंप्यूटर ग्राफ़िक्स, सुपरस्टार चिंरजीवी और उनके पुत्र राम चरण के साथ साथ प्रतिभाशाली पूजा हेगड़े, कम से कम 30 हिट फिल्मों के संगीत देने वाले सुप्रसिद्ध संगीतकार मणि शर्मा और बेहतरीन सिनेमेटोग्राफर थिरु का साथ होने के बावजूद “आचार्य” देखने में हतप्रभ होने का कोई मौका नहीं आया. फिल्म वैसे तो मनोरंजक है लेकिन फिर भी फिल्म देख कर कोई विशेष प्रेम नहीं उमड़ता जैसे शायद बाहुबली या आरआरआर देख का लगता है.

कहानी एक लालची व्यापारी (जीशु सेनगुप्ता) के जंगल पर कब्ज़ा कर उसे काट कर खनिज पदार्थों के उत्खनन की है. उसकी निगाह धर्मस्थल और उसके पास स्थित गाँव पादघट्टम को तबाह कर के उस इलाके की पूरी ज़मीन हथियाने की है. इसके लिए वो धर्मस्थल में अराजकता फैलाता है और उसका साथ देता है वहां का स्थानीय गुंडा सोनू सूद. धर्मस्थल बहुत जल्द अधर्मस्थल बन जाता है और इसे रोकने के लिए गाँव में कारपेंटर का भेष धारण कर के आना होता है (आचार्य) चिरंजीवी का जो दरअसल एक नक्सलवादी है और उस व्यापारी के लोगों के साथ पहले भी भिड़ चुका है. गाँव में आ कर वो धीरे धीरे सोनू सूद के धंधों को ख़त्म करने लगता है, उसके गुर्गों की धुलाई कर देता है. इन सबके बीच में अचानक राम चरण का किरदार भी आ जाता है जो कि धर्मस्थल में पला होता है लेकिन असल में वो एक वीर नक्सलवादी पिता की संतान होता है. अपनी जड़ों को खोजता वो आचार्य से मिलता है और फिर एक लड़ाई में आचार्य को बचते हुए शहीद हो जाता है. मरने से पहले वो आचार्य को अपने गाँव को बचाने की दरख्वास्त करता है. आचार्य अंत में सभी गुंडों को मार कर, सब कुछ ठीक कर देता है.

गाँव में ज़मीन पर अवैध कब्ज़े की कहानियों पर कई फिल्में बन चुकी हैं तो कोरतला सिवा की कहानी में नवीनता नहीं है ये तय है. इस फिल्म में कुछ बातें फिर भी मार्के की हैं जैसे लाजवाब संगीत. मणि शर्मा ने गानों में खासी मेहनत की है. फिल्म का पहला गाना “लाहे लाहे” की रिदम ज़बरदस्त है अपने आप थिरकने पर मजबूर कर देती है. ये गाना संगीता कृष और चिरंजीवी पर फिल्माया गया है. मेलोडियस गीत “नीलाम्बरी” राम चरण और पूजा हेगड़े पर फिल्माया रोमांटिक गीत है और कर्णप्रिय है. रेजिना कसांड्रा और चिरंजीवी “साना कस्तम ” नाम के आइटम सॉन्ग में नज़र आते हैं. इस गीत की जगह फिल्म में बनायीं गयी है ऐसा प्रतीत होता है. रेजिना बहुत सुन्दर हैं और उनका डांस भी धुआंधार है. ऐसा ही एक आइटम सॉन्ग है “भले भले बंजारा” जो राम चरण और चिरंजीवी को साथ दिखाने के लिए बनाया गया है. शुरूआती धुन “जहाँ तेरी ये नज़र है” गाने से प्रभावित लगती है. गाना हिट है लेकिन कहानी में मिसफिट है. इस फिल्म में अगर गाने नहीं होते तो शायद फिल्म पूरी देखना अपने आप में एक सज़ा होती।

चिरंजीवी मेगा स्टार हैं. देश भर में कोई भी तेलुगु फिल्म बनती है उसमें चिरंजीवी का धन्यवाद ज़रूर दिया जाता है. बतौर अभिनेता ये उनकी 152 वीं फिल्म है. चिरंजीवी एक्शन और डांस की वजह से दर्शकों में काफी लोकप्रिय हैं. इस फिल्म में भी उन्होंने ज़्यादातर इसी बात पर फोकस किया है. उनकी डायलॉग डिलीवरी को पसंद करने वाले काफी निराश हुए हैं. निर्देशक कोतराला इस से पहले महेश बाबू के साथ फिल्में कर चुके थे और इसलिए उन्होंने एक स्पेशल गेस्ट रोल के लिए उन्हें चुना था. महेश किसी वजह से वो रोल नहीं कर पा रहे थे तो चिरंजीवी ने अपने बेटे राम चरण को फिल्म में लेने की बात की लेकिन फिल्म में राम का रोल बढ़ाया गया. नयी स्क्रिप्ट के मुताबिक फिल्म के दूसरे हिस्से में सारा फोकस राम चरण के किरदार पर ही रखा गया. चिरंजीवी के साथ एक हीरोइन का किरदार रखा गया था. पहले इस किरदार को तृषा निभाने वाली थीं. फिर उनकी जगह काजल अग्रवाल ने ले ली. फिल्म के दौरान वो गर्भवती हो गयी और कोविड की वजह से प्रोडक्शन में देरी हो रही थी. किरदार के साथ न्याय न कर पाने की वजह से निर्देशक ने उनके रोल को फिल्म में रखा नहीं. फिल्म में चिरंजीवी के साथ कोई हीरोइन नहीं है लेकिन राम चरण के साथ पूजा हेगड़े को रखा गया है. पूजा हेगड़े सुन्दर अभिनेत्री हैं और नृत्य भी अच्छा करती हैं. राम चरण के साथ उनके रोमांटिक सीन, छेड़छड़ वाले सीन बहुत लुभाते हैं.

सोनू सूद को विलन बनाया गया है. कोविड के दौरान किये गए मानवतावादी कामों की वजह से सोनू सूद की छवि कुछ इस तरह की हो गयी है कि वो किसी भी कोण से विलन नहीं लगते. इस फिल्म में राम चरण के साथ उनके सीन अच्छे हैं और उनका गेटअप भी अच्छा है लेकिन बाद के सभी दृश्यों में वो बेहद ही फूहड़ किस्म के गेटअप में नज़र आये हैं खास कर केशभूषा के मामले में. उनका रोल टिपिकल है. कुछ भी नयापन नहीं है. सोनू सूद हिंसक दृश्यों में भी हिंसक नहीं लगते. जीशु सेनगुप्ता का रोल छोटा है. जीशु बंगाली के अलावा हिंदी, तमिल और तेलुगु जैसी अन्य भाषाओँ की फिल्मों में भी नज़र आ रहे हैं. इसके अलावा दक्षिण भारतीय फिल्मों में अक्सर नज़र आने वाले अनुभवी अभिनेता जैसे नसर, तनिकेल्ला भरणी, वेंनेला किशोर, अजय, रवि प्रकाश और सत्यदेव भी छोटी छोटी भूमिकाओं में हैं. इस तरह के अभिनेताओं को लेने का ये फायदा होता है कि इनके अभिनय पर विशेष मेहनत नहीं करनी पड़ती. स्वयं इतने मंजे हुए कलाकार होते हैं कि छोटे से सीन में भी जान डाल देते हैं.

फिल्म बॉक्स ऑफिस पर भी ज़्यादा नहीं नहीं क्योंकि उस वक़्त राजामौली की फिल्म “आरआरआर” का तूफ़ान बॉक्स ऑफिस पर छाया हुआ था. कहानी में धर्मस्थल और लोगों की अच्छाई पर इतना ज़्यादा बल दिया गया कि बाकी दृश्यों से फिल्म का मूल कथानक छुप गया. चिरंजीवी और राम चरण को एक साथ एक ही फिल्म में देखने का मोह संवरण भी फिल्म को बचा नहीं सका. वैसे चिरंजीवी कई बार राम की फिल्मों में गेस्ट रोल में नज़र आते रहे हैं लेकिन एक साथ दोनों का रोल इतना बड़ा पहली बार ही किसी फिल्म में देखने में आया मगर इतनी कमज़ोर कहानी और थकी हुई पटकथा की वजह से डगमगा गया. राजामौली से प्रभावित हो कर फिल्म बनाना एक बात है और राजामौली के स्तर की फिल्म बनाना दूसरी. कोतराला सिवा ने इसके पहले अच्छी फिल्में बनायीं है और लगभग सभी चर्चित रही हैं, आचार्य उनकी ज़िन्दगी का एक ऐसा पड़ाव है जिसे वो भूल जाना चाहेंगे. आचार्य फिल्म देखना एक बोरिंग लेक्चर की तरह है. मत अटेंड कीजिए.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

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