ज़्यादातर वेब सीरीज निर्माता एक ऐसे संसार की रचना करते हैं, जिसमें मध्यमवर्ग को लगभग नजरअंदाज ही किया जाता है जबकि भारत में टेलीविजन की शुरुआत में ही हम लोग, बुनियाद या नुक्कड़ जैसे सीरियल मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग ही कहानी का हीरो हुआ करता था. कुछ वेब सीरीज की सफलता से निर्माता निर्देशकों ने ये धारणा बना ली है कि गाली गलौच, अश्लीलता, हिंसा और नैतिकता का ह्रास ही उनकी वेब सीरीज की सफलता का फार्मूला है. ये धारणा बीच बीच में कुछ वेब सीरीज तोड़ने का प्रयास करती हैं. अमेज़ॉन प्राइम की पंचायत या लाखों में एक, नेटफ्लिक्स पर कोटा फैक्ट्री सफलता के तयशुदा फार्मूला के खिलाफ विद्रोह करते नजर आये हैं. टीवीएफ के अधिकांश टेलीविज़न या वेब प्रोग्राम्स की तो खासियत है कि वे सिर्फ मध्यमवर्ग की कहानियों पर ही टिके रहते हैं और करोड़ों दर्शकों को गाली, हिंसा और अश्लीलता के बगैर कॉन्टेंट परोसते हैं. सोनी लिव पर एक छोटे शहर के मध्यमवर्गीय परिवार की कहानी ‘गुल्लक’ के तो तीन सीजन आ चुके हैं. इसी से प्रेरित हो कर डिज्नी+हॉटस्टार ने भी एक प्रयास किया है 6 एपिसोड की सीरीज “होम शांति” प्रस्तुत कर के. यदि आप ओटीटी के वाहियात और अपरिवारिक कॉन्टेंट से त्रस्त हैं तो होम शांति एक ठंडी बयार है, इसे तुरंत देख लेना चाहिए.

होम शांति में एक छोटा सा परिवार है जिसमें पिता मनोज पाहवा एक बेरोज़गार कवि हैं, माँ सुप्रिया पाठक एक टीचर हैं, बेटी चकोरी द्विवेदी कॉलेज में पढ़ती है और बेटा पूजन छाबड़ा अभी स्कूल में पढ़ रहा है. माध्यम वर्ग की त्रासदियों को झेलते हुए भी ये परिवार अपने खरीदे हुए प्लॉट पर एक घर बनाना चाहता है. छोटे शहर में आर्किटेक्ट नहीं होते, एक ठेकेदार होता है जो किसी न किसी रिश्तेदार का परिचित होता है, एक पंडित जी भी होते हैं जो पूजा इत्यादि करवाते हैं, एक ज्योतिषी नुमा व्यक्ति होते हैं जो किसी दोस्त के रिश्तेदार होते हैं और घर का वास्तु सेट करते हैं. कभी कभी एक आर्किटेक्ट भी आ जाता है जो मकान के बजाये हवाई किले बनाने में महारत रखता है. ऐसे ही कुछ और किरदारों के बीच घर बनाने की कवायद शुरू होती है और फिर घर के सभी सदस्य अपनी अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए घर बनाने के काम में या तो मदद करते हैं या फिर इस ज़िम्मेदारी से भागना चाहते हैं. होम शांति में ऐसी की कुछ खट्टी मीठी घटनाओं से एक एक एपिसोड रचा गया है. यदि आप किसी छोटे शहर के रहने वाले हैं और आपने कभी अपने माता पिता को प्लॉट पर घर बनाने की कसरत करते हुए देखा है तो आप इस सीरीज के एक एक सीन से इत्तेफाक रख सकेंगे. अत्यंत ही प्यारी और मीठी घटनाएं हैं. गर्मी के दिनों में दूध औटा कर पंसारी से लाये नमक के डले और नुक्कड़ वाले से बर्फ के टुकड़े लाकर जो आइस क्रीम बनायीं जाती थी उसका स्वाद कुछ और ही होता था. ये वही आइस क्रीम है.

मनोज पाहवा अपने विशालकाय शरीर और तरल चेहरे के साथ मध्यमवर्ग के उस व्यक्ति की असली छवि है जो छोटी छोटी बातों से खुश हो जाता है. उसे क्रिकेट पसंद है तो मोबाइल पर मैच देखने से ज़्यादा ज़रूरी कुछ नहीं है. अपने आप को कवि समझने का गुमान है और इसलिए अपनी आधी अधूरी थकी हुई कविताओं को वो साहित्य समझता है. हालाँकि हर एपिसोड में उनकी लिखी हुई एक कविता का इस्तेमाल ज़रूर किया गया है जो कि मार्मिक हैं. कॉलेज जाने वाली बिटिया चकोर द्विवेदी अद्भुत हैं. अपने शहर के छोटेपन से नाखुश है लेकिन उसे अपने शहर की महत्ता भी पता है. इन शहरों में लडकियां जल्दी बड़ी हो जाती हैं और ज़िम्मेदारी से लाद दी जाती हैं. छोटा भाई पूजन छाबड़ा तो माँ का लाडला है और उसकी हर छोटीबड़ी इच्छा की पूर्ती होती रहती है जिस वजह से बहन उस से चिढ़ती भी है लेकिन उस से प्यार भी बहुत करती है. सबसे अच्छा किरदार सुप्रिया पाठक ने निभाया है जिसका सपना है ये घर बनाना। वो टीचर हैं. शहर में उनकी इज़्ज़त भी है. घर वही चलाती हैं. बेटी को ज़िम्मेदार बनाने की पारम्परिक आदत जाती नहीं और बेटे को लाड़प्यार से बिगड़ने से फुर्सत नहीं है. इन सबके बावजूद वो अपने घर के सपने को पूरा करने के लिए अपने पति, बेटी और कभी कभी बेटे को झाड़ भी लगा देती हैं.

सीरीज के निर्माताओं में वो टीम है जिसने टीवीएफ के अधिकांश वेब सीरीज को मध्यमवर्ग का फ्लेवर दिया था और इसलिए होम शांति कभी भी अपने निर्दिष्ट से नहीं भटकती. फिल्लौरी और सचिन अ बिलियन ड्रीम्स में सहायक निर्देशन और बिष्ट प्लीज और मिस्टर एंड मिसेस जैसी वेब सीरीज का सफल निर्देशन करने के बाद होम शांति, निर्देशिका आकांक्षा दुआ के छोटे से करियर का एक बड़ा पड़ाव है. उन्होंने अपना काम बखूबी निभाया है. टीवीएफ के दिनों की उनकी साथी निधि बिष्ट के अलावा आकांक्षा ने अक्षय अस्थाना, सौरभ खन्ना (कोटा फैक्ट्री, ये मेरी फॅमिली, हॉस्टल डेज़) मयंक पांडेय और निखिल सचान की टोली के साथ इस सीरीज को लिखा है. प्लेबैक सिंगर शाश्वत सिंह ने होम शांति का संगीत दिया है जो कि छोटे शहर की याद दिलाता है. इस वेब सीरीज में कुछ और बातें उल्लेखनीय हैं जैसे किरदारों के कपड़ों का चयन. इन शहरों के ब्रांड भी अलग ही होते हैं जो थोड़े मुंबई के फैशन और थोड़ा फिल्मों से प्रभावित होते हैं. घरों की साज सज्जा पर विशेष ध्यान दिया गया है. किस तरह मध्यमवर्ग का डाइनिंग टेबल दरअसल कभी पढ़ाई के तो कभी लिखाई के काम आता है. नए घर में बेटी अपने लिए अलग बाथरूम चाहती है तो बेटा जिम चाहता है. माँ बाप को एक स्टडी बनाने का मन है ताकि वहां वो रिश्तेदारों को बुला कर बिठा सकें और सत्संग करवा सकें. इतनी सुखद और जमीनी सोच आजकल देखने को कम मिलती है.

‘होम शांति’ एक प्यारी वेब सीरीज है. छोटे एपिसोड हैं. बड़े कनफ्लिक्ट नहीं हैं. गलियां या अश्लीलता नहीं हैं. प्यार है, ब्रेकअप है और भाई बहन की जुगलबंदी के बीच माता पिता के संस्कार भी हैं. जब गन्ने का रस निकलकर गुड़ बनाया जाता है तो ताज़े ताज़े गुड़ को चने के साथ खाने का रिवाज़ है. होम शांति ठीक वैसा ही है. ये गर्मी में सत्तू, या बेल का शरबत है. ‘होम शांति’ रूह-अफजा है. डर सिर्फ इतना है कि डिज्नी+हॉटस्टार पर इस तरह की वेब सीरीज देर से आयी है और मध्यम वर्ग पर बनी कहानियों की सफलता की अब कोई गारंटी नहीं है. परिवार के साथ देखिए, बहुत मजा आएगा सिर्फ इस बात की गारंटी दी जा सकती है.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

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