‘एनिमी’ फिल्म समीक्षा: किसी फिल्म के निर्माता और निर्देशक के लिए यह अच्छा होता है कि वे जानते हैं कि उनकी फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है जो पहले की किसी भी फिल्म से अलग हो, उसमें ऐसा कोई तत्व भी मौजूद नहीं है जो उसे ब्लॉकबस्टर बना सकता है. अपनी फिल्म की क्षमताओं को जानने वाले निर्माता और निर्देशक फिल्म में ऐसा कोई दावा नहीं करते जो दर्शकों को हज़म न हो. सोनी लिव पर रिलीज़ की गयी तमिल फिल्म “एनिमी” के बारे में ये बात और भी ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि इस फिल्म के दोनों हीरो बहुत बड़े स्टार हैं और दोनों की ही अपनी फैन फॉलोइंग है, जिन्हें नाराज़ करना इनकी आदत नहीं है.

एक्शन स्टार के तौर पर विख्यात विशाल और चेन्नई की बॉक्सिंग परंपरा पर बनी एक बेहतरीन फिल्म “सरपट्टा परम्बरायी” के हीरो आर्या, दोनों ने ही इस फिल्म में बेहतरीन काम किया है, कमज़ोर स्क्रिप्ट होने के बावजूद, दोनों फिल्म को अपने अपने कंधे पर ढोते रहते हैं. फिल्म ठीक ठाक है, कुछ भी अचानक या अप्रत्याशित रूप से नहीं होता इसलिए फिल्म देख सकते हैं.

फिल्म की कहानी थोड़ी जानी पहचानी लग सकती है. दो दोस्त, जिनमें से एक को कानून का पालन पसंद है और दूसरे को कानून का उल्लंघन. बड़े होकर दोनों एक दूसरे के आमने सामने होते हैं, और फिर अच्छे या बुरे में से किसी एक की विजय होती है, जिसमें अच्छे के जीतने की सम्भावना ज़्यादा होती है. एनिमी में राजीव और चोज़न बचपन के मित्र हैं. राजीव के पिता (प्रकाश राज) दोनों लड़कों को बेहतरीन इन्वेस्टीगेशन एक्सपर्ट बनने की ट्रेनिंग देते हैं जिसमें चोज़न हमेशा राजीव से आगे निकलता है. राजीव के पिता की हत्या के बाद चोज़न के पिता (तम्बी रमैया) उसे लेकर चले जाते हैं. बरसों बाद एक बम विस्फोट में चोज़न के पड़ोसियों की निर्मम हत्या हो जाती है. अपने स्तर पर जांच करते करते चोज़न की मुलाक़ात होती है राजीव से जो अब एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर का मुजरिम बन चुका है. इसके बाद की कहानी में राजीव की चालों का सामना करते करते चोज़न और उसके बीच कई द्वंद्व होते हैं, और आखिर में चोज़न मजबूरी में राजीव को ख़त्म कर देता है.

इस फिल्म की स्क्रिप्ट कई सवाल खड़े करती है. शान करूप्पासामी, एस रामकृष्णन और निर्देशक आनंद शंकर ने मिल कर इसे लिखा है. सीबीआई के रिटायर्ड अफसर प्रकाश राज की हत्या की गुत्थी सुलझती नहीं है. कहानी अचानक ही सिंगापुर पहुंच जाती है. राजीव और चोज़न की किशोरावस्था से युवा होने तक के सफर को फिल्म में शामिल ही नहीं किया है. राजीव (आर्या) का किरदार अंतर्राष्ट्रीय स्तर का अपराधी कैसे बन जाता है, वो हिस्सा गायब है. चोज़न (विशाल) के मन में समाज से अपराध हटाने के ख्याल इतने बलशाली कैसे हो जाते हैं कि वो किराने की दुकान चलाने के साथ साथ पार्ट टाइम में अपराधियों से भिड़ता रहता है.

आर्या के अंदर की अच्छाई दिखाने के लिए हीरोइन वाला एंगल भी डाला गया है जो बेहद लचर है. विशाल की लव स्टोरी अजीब तरीके से शुरू होती है और फिर कहीं छूट जाती है. सिंगापुर में अपराध करना बहुत मुश्किल काम है लेकिन आर्या इतनी आसानी से पुलिसवालों की हत्या कर देता है, भारत की विदेश मंत्री को मारने के लिए ज़रूरी उपकरण जुगाड़ लेता है, और उसकी हत्या का षड्यंत्र तकरीबन सफल हो ही जाता है. और भी कई कमज़ोरियां हैं जिन्हें दूर करने की कोई संभावना लेखकों के लिए महत्वपूर्ण नज़र नहीं आती.

विशाल और आर्या, दोनों ने यथासंभव प्रयास किया है कि अपने अपने रोल में एकदम बेहतरीन काम करें. विशाल की अधिकांश सफल फिल्में एक्शन फिल्में ही हैं इसलिए उन्हें ज़्यादा मेहनत करनी चाहिए थी क्योंकि इसमें उनका एक्शन क्लाइमेक्स के आसपास ही नज़र आया है. आर्या की अभी अभी सरपट्टा परमबराई में ज़बरदस्त प्रशंसा हुई थी, इस फिल्म में उनका नेगेटिव शेड कमज़ोर राइटिंग के चलते हल्का रह गया.

बचपन में ईर्ष्या का इतना ज़बरदस्त प्रभाव हो कि जवानी तक आप अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अपराधी बन जाएं और इस पूरे वक्फे में उस शख्स को ढूंढें भी नहीं जिस से आपको ईर्ष्या रही हो, ये बात हज़म करने लायक नहीं है. माता पिता के बिना बड़े हुए आर्या की ज़िन्दगी कैसे आगे बढ़ी, ये समझाना ज़रूरी था. प्रकाश राज, ममता मोहनदास, मृणालिनी रवि के किरदार छोटे थे, लगभग व्यर्थ थे. हीरोइन होना चाहिए इसलिए उनके किरदारों को डालना आजकल की पटकथाओं में लॉजिक के अभाव की गारंटी है. बाकी किरदार छोटे छोटे थे, उनका कहानी में कोई बड़ा योगदान नहीं था. फिल्म का संगीत भी साधारण ही था और कोई गाना ऐसा नहीं था जो जुबां पर चढ़ सके.

एनिमी को देखते समय दर्शक ये ज़रूर सोचते हैं कि बचपन में दोनों किरदार एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं, प्रकाश राज उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार करते हैं, कभी रुबिक क्यूब, कभी इन्वेस्टीगेशन की किताबें, कभी निशानेबाज़ी और कभी भीड़ में अपराधी को ढूंढना जैसी अभ्यास करवा कर. बड़े होने के बाद दोनों के आपसी मुक़ाबले में तेज़ दिमाग का इस्तेमाल किये जाने को ज़रूरी नहीं समझा गया, दोनों की निशानेबाज़ी का कोई प्रदर्शन नहीं था. जिस उम्मीद से फिल्म शुरू होती है, वो किरदारों के बड़े होने के साथ ही समाप्त हो जाती है. आधी अधूरी पटकथा और बिना बात का सिंगापुर दर्शन फिल्म की कहानी पर भारी है. फालतू समय हो तो फिल्म देख सकते हैं.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

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