‘द फेम गेम’ समीक्षा: 2002 में माधुरी दीक्षित ने देवदास जैसी सफल फिल्म में काम किया और परिवार पर फोकस करने के लिए उन्होंने फिल्मों से ब्रेक लिया था. रूपहले पर्दे का सम्मोहन उन्हें 2007 में अमेरिका से भारत खींच लाया और उन्होंने फिल्म “आजा नचले” से वापसी की. इसके बाद एक और लम्बा ब्रेक, 2010 में रियलिटी टेलीविजन शो “झलक दिखला जा” में बहैसियत जज लौटीं और तब से किसी न किसी तरीके से फिल्मों में अपना मुकाम फिर से पाने की जद्दोजहद में लगी हुई हैं.

माधुरी का करियर 1984 में अबोध फिल्म के साथ शुरू हुआ था. 1988 की फिल्म तेज़ाब ने उन्हें भारत की सबसे लोकप्रिय अभिनेत्री बना दिया. 38 साल लम्बे करियर में 14 साल तक बॉक्स ऑफिस की मलिका बनकर रहीं और शादी और दो बच्चे होने के बाद और कई कई सालों के करियर ब्रेक के बावजूद भी, माधुरी के प्रति दीवानगी आज भी कायम है. इसका ताज़ा उदहारण है नेटफ्लिक्स का नया शो “द फेम गेम”. इसे देखकर लगता है कि ये रोल माधुरी को सोच कर ही लिखा गया है और उन्होंने अपनी अद्वितीय अभिनय क्षमता से एक एक सीन में अपने होने का एहसास पुरज़ोर तरीके से करवाया है. फैमिली थ्रिलर “द फेम गेम” एक बेहतरीन वेब सीरीज है. अभी पहला सीजन रिलीज़ हुआ है, और जिस मोड़ पर ख़त्म हुआ है, दूसरे सीजन की सम्भावना आती है.

बरसों से बॉक्स ऑफिस की सफलतम अदाकारा अनामिका आनंद (माधुरी दीक्षित) अपने पति निखिल मोरे (संजय कपूर), अपनी मां कल्याणी (सुहासिनी मुळे) और दो बच्चों अमारा (मुस्कान जाफरी) और अविनाश (लक्षवीर सरन) के साथ रहती है. अनामिका अपने परिवार को बिखरते देखती रहती है. उसको छोटी उम्र में ही फिल्म लाइन में हीरोइन बनने के लिए धकलने वाली और फिर उसके करियर पर गिद्ध बन कर जमी उसकी मां को जुए में लाखों हारते हुए देखती है अनामिका. अपने पति के मूर्खतापूर्ण व्यावसायिक निर्णयों की वजह से अपनी पूरी कमाई से हाथ धोते हुए, अपनी सम्पत्ति को नीलामी के कगार पर खड़ी देखती है अनामिका.

अपनी बेटी के हीरोइन बनने के ख्वाब को पूरा करने से डरती हुई है अनामिका. अपने बेटे के समलैंगिक होने और उसका एक संगीतकार के तौर पर करियर चुनने के निर्णय से असमंजस में पड़ी एक भावुक मां है अनामिका. अपने पूर्व प्रेमी सुपरस्टार मनीष खन्ना (मानव कौल) के साथ एक नयी ज़िंदगी का सपना बुनती है अनामिका और अपनी बढ़ती उम्र और ढलते करियर की चिंता में अपने आप को हर पल जलाती है अनामिका. एक दिन अनामिका अचानक गायब हो जाती है. यहां पुलिस की जांच शुरू होती है और वहीं अनामिका की ज़िंदगी से जुड़े हर शख्स के अपने-अपने घाव बाहर आ जाते हैं, जिनका एक ही मकसद होता है – अनामिका का खात्मा. इन षडयंत्रों की परिणीति क्या होती है, ये है अनामिका आनंद द सुपरस्टार की प्रसिद्धि के साथ जुड़े हुए कुछ बेहद ही घटिया खेल.

इस सीरीज के मुख्य रचयिता हैं श्री राव जो कि न्यू यॉर्क में पिछले कई बरसों से टेलीविज़न और फिल्म की दुनिया में काम कर रहे हैं. उन्होंने इसके न्यू यॉर्क और बदमाश कंपनी फिल्में प्रोड्यूस की थीं और एक निहायत ही फ्लॉप फिल्म बार-बार देखो (कटरीना, सिद्धार्थ मल्होत्रा) लिखी भी थी. इस बार उनके साथ सीरीज लिखने में साथी हैं श्रेया भट्टाचार्य, बधाई हो और हाल ही में रिलीज़ बधाई दो फिल्म के लेखक अक्षत घिल्डियाल, अमिता व्यास, और हॉलीवुड में बतौर लेखक काम कर रहीं निशा मेहता. वेब सीरीज बहुत ही सुलझी हुई है और इसमें उलझनें भी बेहतरीन तरीके से दिखाई गयी हैं. माधुरी और उनकी मां सुहासिनी के आपसी संवाद और सीन देख कर हिंदी फिल्मों की अभिनेत्री नूतन और उनकी मां अभिनेत्री शोभना समर्थ की याद आ जाती है.

शोभना अपनी बेटी नूतन का करियर और बिज़नेस संभालती थीं और इसके साथ ही नूतन की निजी ज़िंदगी में भी उनका दखल कुछ ज़्यादा ही था. नूतन के हर निर्णय में उनकी टीका टिप्पणी के साथ हस्तक्षेप भी इतना ज़्यादा था कि नूतन को एक समय आकर अदालत का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा था. वेब सीरीज में सुहासिनी को जैसे ही पता चलता है कि माधुरी का उसके सह अभिनेता मानव कौल के साथ अफेयर चल रहा है और शायद माधुरी गर्भवती है तो वो उसकी शादी अपनी बहन के बेटे यानि भांजे संजय कपूर से करवा देती है.

माधुरी की सफलता और काम काज से घर चलता है और ये बात उसके पति संजय कपूर को कचोटती रहती है. इसलिए वो माधुरी के साथ मार पीटकर के अपना फ़्रस्ट्रेशन जाहिर करता है. संजय कपूर इस रोल में अच्छे लगे हैं. जब उन्हें पता चलता है कि माधुरी के बेटे के असली पिता वो नहीं हैं, उस पल उनके चेहरे के भाव एकदम सटीक लगे थे. जब पति खुद न कमा कर पत्नी की कमाई मैनेज करने का काम करता हो तो उसे अपने निर्णयों को सही ठहराने के लिए बहुत मुश्किल होती है. संजय काम कम करते हैं और भले ही अनिल कपूर न हों, फिर भी काम अच्छा करते हैं. ये बात और भी अच्छी है कि उन्होंने उम्र सहेज ली है और उन्हें 45 पार के रोल करने में कोई हिचकिचाहट नहीं होती. लक्षवीर सरन ने पाताल लोक और अनपॉज़्ड : नया सफर में अच्छा काम किया था लेकिन द फेम गेम में उनका अभिनय भी ज़बरदस्त है. माधुरी की सार्वजानिक सफलता और छवि से परेशान, संजय की विफलताओं को देखता, अपनी ही सेक्सुअलिटी से जूझता एक युवा, जब अपने आप को समझ पाता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. अपने किसी भी प्रियजन को मन, वचन और कर्म से चोट न पहुंचाने की उसकी ज़िद ने उसके दिमाग में काफी कॉम्प्लीकेशन्स भर दिए हैं. लक्षवीर ने किरदार बड़ी संजीदगी से निभाया है.

लक्षवीर की बहन के रूप में मुस्कान जाफरी ने भी अपने अभिनय से दर्शकों को प्रभावित किया है. मां की तरह हीरोइन तो बनना है लेकिन उसके जैसा स्ट्रगल कर पाएंगी कि नहीं पता नहीं, उनके जैसी अभिनय क्षमता है कि नहीं पता नहीं, उनके जैसी खूबसूरती नहीं है बस इतना पता है. एक सफल और सुन्दर अभिनेत्री के बच्चों की दिमागी हालत पर प्रसिद्धि, असुरक्षा, मां के फैंस, इंडस्ट्री के लोगों का बर्ताव, मित्रों का बर्ताव यहां तक कि अपनी खुद की सोच भी बहुत बुरा असर करती है और मुस्कान ने ऐसे कॉम्प्लेक्स कैरेक्टर को बड़ी खूबसूरती से निभाया है. इस बहुकोणीय कहानी का एक कोण मानव कौल है. एक बाइपोलर फ़िल्मी एक्टर के रूप में मानव प्रभाव तो छोड़ते हैं लेकिन उनके किरदार से सहानुभूति नहीं जागती.

माधुरी और अपनी फिल्म के संगीत के लॉन्च पर उनके और संजय कपूर के बीच के संवाद, कहानी को नया मोड़ देना तो चाहते हैं लेकिन इसकी कीमत उन्हें मानव के किरदार को कमज़ोर कर के चुकानी पड़ती है. नेटफ्लिक्स की पहली ओरिजिनल इंडियन वेब सीरीज “सेक्रेड गेम्स” में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी की परिचित सुभद्रा का किरदार निभाने वाली राजश्री देशपांडे की अभिनय प्रतिभा पर यदि किसी को शक रहा भी होगा तो इस सीरीज से ख़त्म हो जायेगा. एक सीन में राजश्री अपनी सुपर सीनियर सुहासिनी मुळे पर भी भारी पड़ी हैं. राजश्री इसी तरह से काम करती रहीं तो जल्द ही इस समय की बेह्तरीन अदाकाराओं में उनका नाम शमिल होने में ज़्यादा देर नहीं लगेगी। मकरंद देशपांडे, गगन अरोरा, कश्यप शांगरी आदि ने अपने अपने रोल अच्छे से निभाए हैं.

माधुरी दीक्षित के बारे में क्या ही लिखा जाए. उनके जैसी अभिनेत्रियां कम ही हुई हैं. इस सीरीज में उन्हें अपने अभिनय की सभी कलाओं को दिखाने का अप्रतिम अवसर मिला है. फिल्म अभिनेत्री बनी हैं तो नृत्य कला का प्रदर्शन भी शामिल कर लिया गया है. कई बार ऐसा लगता है कई कि वेब सीरीज की कहानी माधुरी की खुद की कहानी हो सकती है. पशोपेश एक ऐसी भावना है जिसको स्क्रीन पर निभा पाना अच्छे अच्छे कलाकारों के बस की बात नहीं है. माधुरी ने इसे कम से कम आधा दर्ज़न बार दर्शकों तक सीधे पहुंचाया है. अपने मेकअप मैन के साथ उनका अंतिम दृश्य माधुरी की परिपक्वता का एक छोटा सा नमूना है. माधुरी ने इस सीरीज में अपनी उम्र छुपाने की कोई कोशिश नहीं की है. अपनी मां के साथ तल्खी और तंज़ से भरे संवाद, अपने बेटे-बेटी के साथ सहानुभूति और सम्बल प्रदान करते संवाद, अपने प्रेमी के साथ एक नई ज़िन्दगी की आस वाले संवाद, माधुरी ने हर मोर्चे पर कमाल किया है. ऐसा लगता है कि ये पूरी सीरीज तभी बनाने का निर्णय लिया होगा जब माधुरी ने इसके लिए हां की होगी.

इस सीरीज के दो निर्देशक हैं – बिजॉय नाम्बियार और करिश्मा कोहली। बिजॉय की फिल्में शैतान और वज़ीर काफी पसंद की गयी थी. करिश्मा कोहली से कम लोग वाकिफ हैं. करिश्मा के पिता कुकू कोहली हैं, जो राज कपूर के असिस्टेंट थे और अजय देवगन की पहली फिल्म फूल और कांटे के निर्देशक. करिश्मा ने जेपी दत्ता, कुणाल कोहली और कबीर खान जैसे निर्देशकों के साथ बतौर सहायक काम किया है. उनकी निर्देशकीय क्षमता के कायल सलमान और कटरीना जैसे सितारे हैं. बिजॉय और करिश्मा की स्टाइल अलग अलग हैं लेकिन इस सीरीज में दोनों के काम में फर्क करना ज़रा मुश्किल है. वेब सीरीज की सिनेमेटोग्राफी मनोज कुमार खटोई ने की है. भव्यता के साथ साथ इंटिमेट सीन्स में भी उनका कैमरा वर्क बोलता है. फार्म हाउस के शॉट्स कमाल के लगे हैं. नीरजा, बदला और धमाका जैसी फिल्मों की एडिटर मोनिशा बल्दुआ ने इस वेब सीरीज पर कैंची चलाने में थोड़ा ढीलापन परता है. कहानी कहीं कहीं मूल से भटकी जा रही थी, कुछ साइड ट्रैक्स को छोटा किया जा सकता था. कुछ सीन बहुत लम्बे लम्बे लगते हैं जबकि फॅमिली थ्रिलर के तौर पर इतने बड़े सीन की ज़रुरत नहीं थी.

वेब सीरीज बहुत कायदे से बनी है. करण जौहर के ओटीटी प्रोडक्शंस कंपनी धर्माटिक ने प्रोड्यूस की है तो कुछ बातें तो ज़रूर होनी ही चाहिए. जैसे माधुरी का नाच. एक अदद समलैंगिक किरदार, सौभाग्य से इस किरदार को मज़ाक का जरिया नहीं बनाया है. इसमें कुछ सेक्स सीन्स होना भी ज़रूरी हो गए हैं जबकि ज़रुरत नहीं थी. गगन अरोरा का माधव वाला किरदार भी हटाया जा सकता था. अपने हिस्से की कमज़ोरियों के बावजूद, द फेम गेम बहुत अच्छी बनी वेब सीरीज है. किसी तरह के खर्चे में कोई कसर नहीं छोड़ी है इसलिए प्रोडक्शन का स्केल बहुत आला दर्जे का है. ये बात भी करण से सीखने वाली है कि या तो खुल के खर्च किया जाए ताकि कोई कसर न रह जाये या फिर प्रोडक्शन किया ही न जाए. वेब सीरीज करीब सवा 6 घंटे का इन्वेस्टमेंट है, ये जोखिम जान कर ही कीजियेगा.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

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