Chandigarh Kare Aashiqui Review: कहने को हमारे देश को कामसूत्र का देश कहा जाता है लेकिन खजुराहो की मूर्तियों को देखकर अश्लील ख्याल पैदा करने के अलावा हमारे देश में कभी भी यौन शिक्षा पर कोई जोर नहीं दिया जाता. माता-पिता सदैव अपने बच्चों से सेक्स के बारे में बात करने से कतराते हैं. कई पिता तो अपनी बेटियों के पीरियड्स शुरू होने पर अपनी पत्नी को सब हैंडल करने के लिए कह देते हैं. कुछ मित्रों से और कुछ इंटरनेट से अधकचरा ज्ञान पा कर हम पीढ़ी दर पीढ़ी सेक्स के बारे में अज्ञानी बच्चे पैदा करते जा रहे हैं. ये तो शिक्षा का सवाल है इसलिए देर सवेर हल हो जायेगा लेकिन हम जिस खतरे को अभी भांप नहीं पा रहे हैं वो है अपने बच्चों को अपनी अपनी सेक्सुअलिटी को समझने और उसे स्वीकार करने की ताक़त देना. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी देखा जाये तो ज़रूरी नहीं है कि एक लड़का बड़ा हो कर पुरुष बने ही और एक लड़की बड़ी हो कर औरत बने ही. कई बार हॉर्मोन्स और कई बार परिस्थितिवश ये संभव है कि जिस सेक्स के साथ बच्चे का जन्म हुआ हो, उसके अंदर उसके विपरीत सेक्स की भावनाएं तीव्र हों और समय के साथ वो इतनी भारी पड़ने लगें कि उस शख्स का मानसिक संतुलन ख़राब हो जाए. ऐसे में सही समय पर इसका मानसिक परीक्षण और उचित लगने पर सेक्स चेंज करवा लेना सही होता है, लेकिन क्या हम इस बात को स्वीकार कर सकेंगे? यही प्रश्न उठाती है नेटफ्लिक्स पर हाल ही में रिलीज – चंडीगढ़ करे आशिकी.

बॉडीबिल्डर मनविंदर उर्फ़ मनु (आयुष्मान खुराना) को प्यार हो जाता है मानवी (वाणी कपूर) से. दोनों की दोस्ती और रिश्ता प्रगाढ़ होता जाता है. एक समय पर आ कर मानवी उसे बताती है कि वो एक “ट्रांस” है अर्थात जन्म के समय वो लड़का थी लेकिन समय के साथ उसके अंदर लड़कियों वाली फीलिंग्स बहुत मज़बूत होती गयीं इसलिए उसने ऑपरेशन और दवाइयों के ज़रिये खुद को लड़की बना लिया है. इस विस्फोटक खुलासे के बाद सब कुछ तहस नहस हो जाता है और आयुष्मान इस रिश्ते पर प्रश्न चिन्ह लगा देते हैं. कुछ समय और थोड़ी रिसर्च के बाद उन्हें एहसास होता है कि प्रेम बड़ा है इसलिए वो वाणी के पास लौट जाते हैं और थोड़ी स्ट्रगल के बाद दोनों फिर से एक हो जाते हैं.

फिल्म की कहानी नयी है. इस तरह का कोई प्रेम, हिंदी फिल्मों में दिखाया नहीं गया है. समलैंगिकता का मज़ाक उड़ाती कई फिल्में हमने देखी हैं और कुछ फिल्मों में समलैंगिकता को बहुत ही नाज़ुक खूबसूरती के साथ फिल्म में रखा गया है. चंडीगढ़ करे आशिक, समलैंगिक रिश्तों पर आधारित नहीं है. प्रसिद्ध लेखक खुशवंत सिंह ने अपने उपन्यास दिल्ली में एक हिजड़े के साथ शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करने को लेकर बहुत विस्तार से लिखा है. यह फिल्म इस तरह के रिश्ते पर भी नहीं हैं. ना ही ये अर्जुन के वृहन्नला के रूप में छुप कर अज्ञातवास काटने की कहानी है और ना ही अर्धनारीश्वर के कॉन्सेप्ट को समझाने की कोई कोशिश हैं. इस फिल्म में वाणी कपूर का जन्म होता है तब वो एक लड़का होती है. समय के साथ उसके अंदर लड़कियों की भावनाएं जागती है और वो खुद को लड़की समझने लगती है. बढ़ती उम्र के साथ उसके अंदर की भावनाएं इतनी तीव्र हो जाती हैं कि वो अपने ब्रिगेड़ियर पिता (कंवलजीत सिंह) की अनुमति और अपनी माँ (सतवंत कौर) की नाराज़गी झेलते हुए अपना ऑपरेशन करवा लेती है और लड़के से लड़की बन जाती है.

कहानी का आयडिया बहुत अच्छा है. आयुष्मान खुराना को अजीबोगरीब रोल करने का शौक़ है. उनकी खासियत ये है कि वो इन रोल्स को आत्मसात कर लेते हैं. पहली ही फिल्म विक्की डोनर में वो स्पर्म डोनर बनते हैं, ड्रीम गर्ल में वो लड़की की आवाज़ में एडल्ट हॉटलाइन टेलीफोन ऑपरेटर बनते हैं तो कभी शुभमंगल ज़्यादा सावधान में वो गे (समलैंगिक बनते हैं). इस फिल्म में आयुष्मान एक पंजाबी बॉडीबिल्डर बने हैं. खुद चंडीगढ़ से हैं और पंजाबी हैं तो ये रोल जैसे उन्हीं को सोच के लिखा गया था. इस तरह के शोहदे आपको चंडीगढ़ में दर्जनों के हिसाब से मिल जायेंगे. खुद की अंग्रेजी माशाअल्लाह होगी मगर लड़की एकदम सुपर मॉडल अंग्रेजी बोलने वाली चाहिए है. वाणी कपूर, फिल्म दर फिल्म निखरती जा रही हैं लेकिन इस फिल्म में उन्होंने एक अप्रत्याशित काम किया है. वो आयुष्मान की राह पर चल पड़ी हैं और “ट्रांस” लड़की का किरदार निभाया है. फिल्म में भी वो पंजाबी हैं और असल ज़िन्दगी में भी. ये रोल भी जैसे वाणी को देख कर ही लिखा गया था. उन्होंने इस किरदार को निभाने में कमाल कर दिया है.

अब बात करते हैं फिल्म कहाँ गड़बड़ करती नज़र आयी है. पटकथा कमज़ोर है. डायलॉग फिर भी चुटीले हैं और ऐसा लगता है कि आयुष्मान ने काफी इम्प्रोववाइज किया है क्योंकि वो चंडीगढ़ के लड़कों की भाषा और उनके अंदाज़ से भली भांति वाक़िफ़ हैं. जिन पहलुओं पर थोड़ा ध्यान देने की ज़रुरत थी वो बहुत जल्दी में निपटा दिए गए हैं. सेक्स चेंज ऑपरेशन बहुत महंगा सौदा है, इसके बारे में कोई ज़िक्र नहीं है सिवाय एक एनिमेशन वीडियो के. जितने भी सेक्स चेंज के केसेस हिंदुस्तान या बाहर हुए हैं, उनमें लड़के से लड़की बनाना संभव तो है लेकिन लड़की कभी भी वाणी कपूर जैसी सुन्दर बनते हुए नहीं देखी गयी है. वाणी की कहानी में बचपन से लेकर जवानी तक की समस्याओं और भावनाओं को सीधे सीधे स्क्रिप्ट से गायब ही कर दिया है. रोमांस पर इतना ज़ोर है कि सेक्स चेंज ऑपरेशन कहानी का फालतू हिस्सा लगता है. आयुष्मान की ज़बरदस्त बिल्ट और वाणी की स्लिम और फर्म बॉडी के साथ जितने भी किरदार हैं, सब कमज़ोर हैं. आयुष्मान के विधुर पिता को एक मुस्लिम लड़की से प्रेम का किस्सा जाया कर दिया गया है. आयुष्मान की बहनें निहायत ही कच्चा किरदार हैं और ओवर द टॉप एक्टिंग करती हैं. आयुष्मान के बिज़नेस पार्टनर जुड़वाँ भाई रिज़ और जोमो के किरदार का कोई किरदार ही नहीं है, फालतू में आये से लगते हैं. वाणी की माँ, वाणी के कजिन, वाणी की दोस्त सब के सब फिल्म से हटा भी दिए जाते तो कोई फर्क नहीं पड़ता. इसके बजाये वाणी की बैक स्टोरी को तवज्जो दी जाती तो फिल्म में गंभीरता भी आ सकती थी. आयुष्मान का गुस्सा भी नक़ली जान पड़ता है और वो जितनी आसानी से कन्विंस हो जाता है वो बचकाना लगता है. पंजाब में पुरुष सत्तात्मक समाज है, वहां इस तरह के रिश्ते को स्वीकृति नहीं मिलती और कोई लड़का भी इस तरह के रिश्ते को स्वीकार नहीं कर पाता लेकिन आयुष्मान ने बहुत थोड़े सीन में कर लिया। हिजड़ा शब्द का इस्तेमाल करने से चिढ़ते आयुष्मान अंत में एक हिजड़े से ही जा कर अपने और वाणी के रिश्ते को समझने की कोशिश करते हैं. ये विचित्र लगता है.

2004 में जस्सी सिद्धू ने चंडीगढ़ के लड़के लड़कियों के लिए ये गाना लिखा था जो बहुत हिट हुआ था. इसी गाने के नाम पर फिल्म का भी नाम रखा गया है. सिनेमेटोग्राफी मनोज लोबो की हैं और काफी हद तक चंडीगढ़ का रंग पकड़ पाती है. फिल्म का संगीत सचिन-जिगर का है और चंडीगढ़ के मिज़ाज का है. कल्ले काले और खींच ते नाच की बीट्स बढ़िया है. फिल्म टी-सीरीज ने प्रोड्यूस की है तो तनिष्क बागची का एक रीमिक्स “चंडीगढ़ करे आशिकी” भी रखा गया है. एडिटिंग की ज़िम्मेदारी अनुभवी चन्दन अरोड़ा की हाथों है और शायद लेखक और एडिटर के बीच की लड़ाई में एडिटर जीत गए हैं क्योंकि बैकस्टोरी और सपोर्टिंग कास्ट को बहुत जल्दी निपटा दिया गया है.

नए आयडिया के लिए निर्देशक अभिषेक कपूर को पूरे नंबर दिए जा सकते हैं लेकिन ख़राब पटकथा के लिए सुप्रतीक सेन, तुषार परांजपे और खुद अभिषेक को एक बार फिर से सोचना चाहिए. आयुष्मान की तारीफ करनी चाहिए कि वो हर बार कुछ नया करते हुए नज़र आते हैं और सबसे ज़्यादा तारीफ वाणी की होनी चाहिए कि इतनी सुन्दर होने के बावजूद इस तरह का कोई रोल स्वीकार करना और उसे शिद्दत से निभाना, बहुत बड़ी बात है. शुद्ध देसी रोमांस से लेकर वॉर और अब चंडीगढ़ करे आशिकी, संभवतः इस फिल्म से वाणी को सही फिल्में चयन करने का रास्ता मिले. फिल्म देखनी चाहिए ताकि मन की कुंठाओं को विराम मिले और थोड़ा सा दिमाग खुले. फिल्म की पटकथा कमज़ोर होने के बावजूद, फिल्म के मनोरंजक होने में कोई खास फर्क नहीं पड़ता.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

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