Review: वैसे तो अब ये मान लेना उचित होगा कि अक्षय कुमार के अभिनय में नयापन नहीं है क्योंकि वो अब प्रवचन देते हुए या फिर राष्ट्रवाद के भाषण झड़ते हुए ही नजर आते हैं. ये भी मान लेना चाहिए कि सारा अली खान के पास गिन के 3-4 एक्सप्रेशन है और वो भी इसलिए याद नहीं रहते क्योंकि उन्होंने लव आजकल 2 में ‘तुम मुझे परेशान करने लगे हो’ वाले मीम को जन्म दिया और फिर वहीं अटक कर रह गयी और ये तो तब है जब ये वाले निर्देशक अक्सर अपनी फिल्मों में हीरोईन को बेहतर रोल देते है. ये मान लेने में भी कोई हर्ज नहीं है कि जब जब निर्देशक आनंद एल राय ने फिल्म बनाते समय हीरो की सुनी है, उनकी फिल्म ज़ीरो ही साबित हुई है और अंत में ये मान लेना भी उचित होगा कि ‘अतरंगी रे’ का जितना हल्ला किया गया, माहौल बनाया गया, फ़िल्म उतनी ही बदरंगी रे है. अब अकेला धनुष कब तक रांझणा का कुंदन बनता रहेगा जब की इस बार तो उसके हिस्से मज़ाक मस्ती भी नहीं है. डिज़्नी+ हॉट स्टार पर रिलीज फ़िल्म ‘अतरंगी रे’ नहीं देखेंगे तो कुछ भी नहीं जाएगा और देखेंगे तो निराशा तो मिल ही जाएगी.

धनुष, तमिलनाडु छोड़ कर बिहार में डॉक्टरी की इंटर्न्शिप करने जाते हैं और वहां दूल्हा पकड यानि पकडुआ विवाह का शिकार हो जाते हैं. लेकिन मज़े की बात, सारा को वो पहले ही देख चुके होते हैं और वो उन्हें पसंद भी होती है. सारा की ज़िंदगी में एक और शख़्स है जिस से वो प्यार करती हैं- अक्षय कुमार. शादी धनुष से और प्यार अक्षय से. ऐसा लगता है कि ‘वो सात दिन’ या ‘हम दिल दे चुके सनम’ जैसा कुछ मसला होगा. लेकिन ये तो कुछ और ही निकलता है. जो निकलता है वो सर पीटने पर मजबूर कर देता है. अब धनुष डॉक्टर हैं तो वो इलाज भी करेंगे सारा का. लेकिन ये कोई ‘आनंद’ या ‘मिली’ नहीं है जहां मुख्य किरदार को प्राण घातक बीमारी होती है. ये तो दर्शकों के दिमाग के साथ खिलवाड़ की बीमारी है जो लेखक हिमांशु शर्मा और निर्देशक आनंद राय ने मुफ़्त में दी है.

धनुष की प्रतिभा पर प्रश्न उठाना नहीं चाहिए मगर इस बार उन्होंने रोल को पढ़ा समझा नहीं है वरना वो इतनी अतरंगी फ़िल्म नहीं करते. रांझणा में धनुष का किरदार बड़ी ख़ूबसूरती से लिखा गया था. ‘पटक के मारेंगे’ कह कर उन्होंने बनारसी लौंडे होने का दायित्व भी निभाया था. नयी फ़िल्म में वो तमिल बने है जो तमिल में दो चार डायलॉग चिपका देते हैं. एकतरफ़ा टाइप का प्रेम और ताजमहल पर ताली बजाने के लिए क़रीब 100-150 लोगों को 500-500 रुपए देना, एक फ़र्ज़ी ऑपरेशन करना और नकली बारात लाना जैसे काम करते हैं. किसी तरीक़े से विश्वसनीय किरदार नहीं लगते जबकि उनकी ताकत इसी बात में है कि वो किरदार को विश्वसनीय बना देते हैं.

सारा अली खान को किस तरह की फिल्में करनी चाहिए ये कहना मुश्किल है क्योंकि उनकी कोई छवि बन नहीं पा रही. इस फिल्म से उन्हें काफी उम्मीदें हैं जो पूरी नहीं होंगी. उनका रोल तो अच्छा है लेकिन वो अपनी तरफ से इस रोल में कुछ जोड़ नहीं पाती हैं. रोमांस के समय चेहरे पर भौंचक्का, रोने के समय अजीब मुस्कुराहट, इमोशनल सीन में नकलीपन- ये सारा की ख़ासियत हैं. सारा ने डांस अच्छा किया है. ‘चकाचक’ वाले गाने में वो तमिल फ़िल्म की एक्ट्रेसेस की तरह नाचते हुए नजर आती हैं. अक्षय कुमार की हालत अब 90 के दशक के अमिताभ की तरह हो गयी है. आप सब कुछ प्रेडिक्ट कर सकते हैं. उनका अभिनय, उनका रीऐक्शन और उनका एक्सप्रेशन. अक्षय ने कुछ मेहनत की है ऐसा लगता नहीं है. देशभक्ति वाला कुछ आया नहीं है फिल्म में तो हिंदू मुस्लिम लव जिहाद डाल दिया गया है.

फिल्म के लेखक हिमांशु शर्मा और निर्देशक आनंद एल राय की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने एक संवेदनशील विषय चुना. मुश्किल विषय है लेकिन उसको दिखाने के तरीके में ज़रा भी विश्वसनीयता नहीं है. ये एक लव ट्राइऐंगल है. लेकिन ऐसा लव त्रिकोण हमने पहले नहीं देखा है. यश चोपड़ा की फिल्मों में प्रेम त्रिकोण के कई प्रकार हमने देखे हैं. कभी कभी हो या सिलसिला या चांदनी, उन्होंने एक नया नजरिया पेश किया. इस फिल्म का नजरिया भी हिंदी फ़िल्मों में पहली बार ही है लेकिन इसी वजह से कहानी, एक सूत्र में पिरोने की असफल कोशिश करती है. हिमांशु और आनंद को कॉमडी की बढ़िया समझ है लेकिन इस फ़िल्म में वो सिचुएशन के जरिए पैदा हो नहीं पा रही है. इस फ़िल्म में एक अदद बारात है जो आनंद की हर फिल्म में होती ही है.

धनुष एक डॉक्टर हैं और उनके मित्र मनोचिकित्सक हैं और जिस अंदाज में दोनों इलाज करते हैं. उसको देखके लगता है मेंटल हेल्थ हमारे देश में हमेशा मजाक की वस्तु ही मानी जाएगी. प्रेम, विश्व की सभी समस्याओं का हल है, लेकिन जो बीमारी है उसके लिए तो डायग्नोसिस सही होना चाहिए और फिल्म में इतने हल्के में इस विषय के बारे में बात की है कि गुस्सा आ जाता है. एक गोली दे कर आप डिसोशीएटिव डिसॉर्डर या पैराकॉज़्म जैसी मानसिक स्थिति का इलाज नहीं कर सकते. बस यूंही मुक्ति नहीं पा सकते. कॉमडी के प्रयास में हर बात एक मजाक बन कर रह गयी है. सारा का किरदार कभी भी तय नहीं कर पाता कि उसे करना क्या है. वो हर हाल में हर परिस्थिति में ख़ुश है बस उसे अपनी नानी की पिटाई से दूर भागना है. ट्रॉमा का इतना सतही ढंग से दिखाया जाना, भारत में बढ़ते मेंटल हेल्थ केसेस की देखते हुए, खलता है. कहानी की कमजोरी बना दिया है इसे क्योंकि धनुष और सारा के बीच सीन हलके फुलके रखने थे. जबरिया शादी में सिडेटिव समझ सकते हैं लेकिन लाफ़िंग गैस से दूल्हे को कुछ और सोचने ना देना, अतरंगी ही है.

वो तो अच्छा है कि आनंद ने फ़िल्म के अंत में लिख दिया है कि ‘अ फ़िल्म बाय एआर रहमान’ क्योंकि फ़िल्म में सबसे अच्छा तो रहमान का संगीत ही हैं. इरशाद कामिल के लिखे हुए शब्दों से या तो रहमान या प्रीतम ही न्याय कर पाते हैं और इस फिल्म में ये बात एक बार फिर साबित हो गयी है. चकाचक एक आइटम नंबर जैसा है लेकिन बाक़ी गीत बहुत गूढ़ अर्थवाले हैं. तूफ़ान सी कुड़ी, अरिजीत का तुम्हें मोहब्बत है, तेरे रंग कमाल हैं और दलेर मेहंदी का गाया हुआ गर्दा, एकदम तूफानी है. सबसे अलग गीत हैं रेत ज़रा सी और लिटिल लिटिल. गीतों के कोरियोग्राफर हैं विजय गांगुली जिन्होंने चकाचक गाने में सारा अली खान से अद्भुत नृत्य करवा लिया है. अक्षय पर फिल्माया गर्दा ज़रूर गणेश आचार्य ने कोरियोग्राफ किया है. इस फिल्म में एक नई परंपरा और शुरू की गयी है, फिल्म के सभी महत्वपूर्ण व्यक्तियों जैसे रहमान, सिनेमेटोग्राफर पंकज कुमार, लिरिसिस्ट इरशाद कामिल, लेखक हिमांशु शर्मा, एडिटर हेमल कोठरी, प्रोडक्शन डिज़ाइनर नितिन चौधरी सभी के नाम एन्ड क्रेडिट में ‘अ फिल्म बाय’ के साथ दिए गए हैं.

रिश्तों की इस गूढ़ कहानी में मूल विषय को जितने सतही तौर पर लिया गया है वो इस फिल्म पर भारी पड़ेगा. फिल्म ओटीटी पर है तो लोग देख लेंगे लेकिन फिल्म देख कर सिवाय गानों के और कुछ हद्द तक धनुष के रोल के किसी को कुछ भी याद नहीं रहेगा. रंग बिरंगी अतरंगी रे थोड़ा बदरंग कर देती है.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

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