यूपी बोर्ड (UP Board) की 12वीं की परीक्षा में 3 लाख 71 हजार छात्र-छात्राएं फेल हो गए हैं. अगर आपके बच्चे का नंबर कम आया है या वो फेल हो गया है तो निराश होने की जरूरत नहीं है. क्योंकि नंबर जिंदगी से बड़ा नहीं है. नंबरों की चिंता में डूबकर जिंदगी मत दीजिए. कई विकल्प आपके सामने हैं. करियर काउंसलर अंजू दुआ जैमिनी कहती हैं कि मैं सचिन तेंदुलकर, धोनी और कम पढ़े-लिखे सफल बिजनेसमैनों का उदाहरण तो दे ही सकती हूं. जिन्होंने पढ़ाई-लिखाई से पार पाकर समाज में अच्छा मुकाम हासिल किया. इन्हें देखिए और जिंदगी नंबरों से बड़ी बनाईए.

शिक्षाविद् मनजीत सिंह कहते हैं कहते हैं कि जब से नंबर ज्यादा मिलने लगा है तभी से प्रॉब्लम ज्यादा बढ़ी है. वरना जब 60 फीसदी बहुत होता था. तब इतने बच्चे आत्महत्या नहीं करते थे. टीचरों और पैरेंट्स का इतना दबाव हो गया है कि वे सौ फीसदी नंबर की दौड़ में लगे रहते हैं. टीचर का अपना बिजनेस और पैरेंट्स की उम्मीदें और प्रतिष्ठा. करियर काउंसलर अंबादत्त भट्ट कहते हैं कि बच्चा फेल हो गया है तो कोई बात नहीं. उसका आत्मविश्वास ऊंचा कीजिए, बताईए कि हम तुम्हारे साथ हैं. पढ़ाई-लिखाई ट्रिक से भी सहज की जा सकती है. हमने कई असफल बच्चों को फिर से सफल होते देखा है.

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यूपी बोर्ड का परीक्षा परिणाम जारी हो गया है

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अगर हम पढ़ाई लिखाई को जिंदगी से बड़ा मान बैठे हैं तो हमें एक बार दूसरी ओर भी देखना चाहिए. देश चलाने के लिए पढ़ाई कोई योग्यता नहीं है. कम पढ़े-लिखे भी राज कर रहे हैं. एमपी, एमएलए और मंत्री बनने के लिए संविधान ने पढ़ाई-लिखाई की बाध्यता ही नहीं रखी है. फिर फेल पास होने की काहें को इतनी टेंशन. एडीआर की मानें तो 16वीं लोकसभा के 121 सांसद 12वीं या उससे कम पढ़े लिखे हैं. 17वीं का चुनाव हो रहा है इसमें भी कम पढ़े-लिखे नेताओं की भरमार होने वाली है.

आजादी के बाद 1952 में पहली लोकसभा गठित हुई थी. इसमें 23 प्रतिशत एमपी ऐसे थे जिन्होंने 10वीं तक भी पढ़ाई नहीं की थी. हाईस्कूल और इससे कम पढ़े-लिखे सांसदों की संख्या 112 थी. जिन्होंने देश को खड़ा किया. 16वीं लोकसभा में 13 फीसदी सांसद ऐसे हैं जिन्होंने मैट्रिक पास नहीं की है. 5 सांसद ऐसे हैं, जो कभी स्कूल ही नहीं गए, हालांकि वे साक्षर जरूर हो गए हैं. जबकि 6 सांसद ऐसे हैं, जिन्होंने सिर्फ प्राथमिक शिक्षा ही हासिल की है. हां, हरियाणा सरकार ने पहली बार जरूर अपने यहां स्थानीय निकाय के चुनावों में आठवीं और 10वीं पास होना अनिवार्य किया था. हालांकि, इससे आप ये भी मत मान लिजिए कि पढ़ाना-लिखना गैरजरूरी है. बस इतना ध्यान रखिए कि जीवन है तो ही पढ़ाई है.

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