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ट्रेडिशनल ड्रेसस पहनने के हैं शौकीन तो जंगल में बसे इस गांव में पहुंचे, महिलाओं का काम देख हो जाएंगे इनके मुरीद

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आशीष कुमार/पश्चिम चम्पारण. एक समय था जब कपड़ों का निर्माण बड़ी-बड़ी कंप्यूटराइज्ड मशीनों द्वारा नहीं, बल्कि लकड़ी से निर्मित मशीनों पर होता था. जिसे कारीगर खुद अपने हाथों से बनाते थे. आज उन कुशल कारीगरों और पारंपरिक मशीनों की जगह ऑटोमेटिक चलने वाली विशालकाय मशीनों ने ले ली है. हथकरघा का शानदार प्रदर्शन अब शायद ही कहीं देखने को मिलता है, लेकिन पश्चिम चम्पारण जिले में एक ऐसी जगह मौजूद है, जहां आदिवासी थारू समाज के लोगों ने हथकरघा को आज भी जीवित रखा है.

कभी राज्य के 7 जिलों में चलने वाला हथकरघा, आज सिर्फ पश्चिम चंपारण जिले तक ही सीमित रह गया है. जिले के हरनाटांड में आज भी आदिवासी महिलाएं उसी पारंपरिक तरीके से शानदार गर्म कपड़े और बेड शीट बनाती हैं, जिसे शौकीन लोग बड़े पैमाने पर खरीदते हैं.

राज्य का एकमात्र हथकरघा केंद्र
जिला मुख्यालय बेतिया से तकरीबन 90 किलोमीटर दूर वीटीआर क्षेत्र के अंतर्गत आने वाला हरनाटांड़ एक ऐसी खूबसूरत जगह है, जहां की आदिवासी महिलाओं ने भारत की सभ्यता तथा संस्कृति को आज भी बेहद खुबसूरती से संजो कर रखा है. दरअसल, यहां राज्य का एकमात्र हथकरघा केंद्र मौजूद है, जहां आज भी लकड़ियों के फ्रेम पर हाथों से बनाए जाने वाले गर्म कपड़े, चादर और गमछों का निर्माण किया जाता है. खास बात यह है कि यहां की आदिवासी महिलाएं इस कार्य में पूर्णतः निपुण हैं. उन्होंने इसे अपनी रोजी-रोटी का एक उत्तम साधन बना लिया है. केंद्र के संचालक हरेंद्र ने बताया कि हरनाटांड़ स्थित इस हथकरघा केंद्र की स्थापना 1984 में हुई थी. हालांकि उनके पूर्वज पिछले 300 वर्षों से इस कार्य को करते आ रहे हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलता ही जा रहा है.

1 घंटे में 1 शॉल हो जाता है तैयार
हरेंद्र ने बताया कि आज हथकरघा भले ही समाप्ति के कगार पर है, लेकिन यहां बनाई जाने वाली वस्तुओं की मांग बड़े पैमाने पर होती है. खास बात यह है कि यहां का 12 महीने काम चलता रहता है. एक महिला महज 1 घंटे में 1 शॉल बनाकर तैयार कर लेती है. केंद्र पर कुल 40 लकड़ी के फ्रेम हैं, जिसपर कुल 40 महिला कारीगर काम करती हैं. ऐसे में एक दिन में तकरीबन 100 शॉल सहित अन्य कई चीजों को तैयार कर लिया जाता है.

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बड़ी मात्रा में है डिमांड
हरेंद्र ने बताया कि अगर अप्रैल से लेकर अक्टूबर तक की बात की जाए, तो इन 6 महीनों में 25 हजार शॉल, 27 हजार बेड शीट, 5 हजार मफलर-स्वेटर और 23 हजार गमछे तैयार किए जाते हैं. जहां तक बात बिक्री की है, तो इसे राज्य के कुछ खास जिलों जैसे पटना, सिवान, पूर्वी चंपारण और पश्चिम चम्पारण में बेचा जाता है. समझने वाली बात यह है कि अन्य कपड़ों की तुलना में महंगे होने के बावजूद इन्हें बड़े पैमाने पर पसंद किया जाता है.

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