ज्ञानवापी मामला और कार्बन डेटिंग: वाराणसी की जिला अदालत ने ज्ञानवापी परिसर के वैज्ञानिक सर्वेक्षण यानी कार्बन डेटिंग को मंजूरी दे दी है. ये सर्वे भारतीय पुरातत्व सर्वे करेगा. डिस्ट्रिक्ट कोर्ट ने हिंदू पक्ष की याचिका पर 21 जुलाई 2023 यानी शुक्रवार को फैसला सुनाते हुए कार्बन डेटिंग की इजाजत दी. ज्ञानवापी मस्जिद और श्रृंगार गौरी मामले में 7 मुकदमे क्लब होने के बाद 14 जुलाई को दोनों पक्षों की बहस पूरी होने के बाद जिला जज अजय कृष्ण विश्वेश ने फैसला सुरक्षित कर लिया था. जिला जज ने इस मामले में आज अपना फैसला सुनाया.
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया अब ज्ञानवापी परिसर में मिले कथित शिवलिंग की रेडियो कार्बन डेटिंग के लिए स्वतंत्र है. लेकिन, सवाल ये उठता है कि क्या कार्बन डेटिंग के जरिये कथित शिवलिंग की सही उम्र का पता लग सकता है? इससे कैसे किसी चीज की सही उम्र का पता लगता है? रेडियो कार्बन डेटिंग क्या होती है? क्या इसके बजाय किसी दूसरी तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकता है? आज हम आपको इस केस से जुडे आपके मन में उठने वाले ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब दे रहे हैं.
रेडियो कार्बन डेटिंग क्या होती है
कार्बन डेटिंग को रेडिया कार्बन डेटिंग के नाम से भी पहचाना जाता है. माना जाता है कि कार्बन डेटिंग से किसी जीवाश्म या पुरातत्व संबंधी वस्तु की आयु की पुख्ता जानकारी मिल जाती है. लेकिन, असल में ऐसा नहीं होता है. इससे किसी भी वस्तु की सिर्फ अनुमानित उम्र ही पता चल पाती है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, हर प्राचीन वस्तु पर समय के साथ कार्बन के तीन आइसोटोप आ जाते हैं, जो पृथ्वी की प्राकृतिक प्रक्रियाओं के कारण होते हैं. इनमें कार्बन-12, कार्बन-13 और कार्बन-14 शामिल हैं. कार्बन-14 के जरिये ही डेटिंग विधि का इस्तेमाल किया जाता है. विज्ञान के नजरिये से समझें तो कार्बन-14 के मुकाबले 12 और 13 वायुमंडल में ज्यादा मौजूद रहते हैं. दोनों को जीवाश्म ईंधन के जलने के साथ अध्ययन के लिए कम भरोसेमंद माना जाता है. कार्बन -14 भी बढ़ता है, लेकिन इसकी सापेक्ष दुर्लभता का मतलब है कि इसकी वृद्धि ना के बराबर होती है.
माना जाता है कि कार्बन डेटिंग से किसी जीवाश्म या पुरातत्व संबंधी वस्तु की आयु की पुख्ता जानकारी मिल जाती है.
कैसे पता की जाती है वस्तु की उम्र
कार्बन-14 के जरिये उम्र तय करने की विधि का इस्तेमाल पुरातत्व-जीव विज्ञान में जंतुओं व पौधों के प्राप्त अवशेषों के आधार पर जीवन काल, समय चक्र का निर्धारण करने में किया जाता है. इसमें कार्बन 12 और 14 के बीच अनुपात निकाला जाता है. वैज्ञानिक नतीजों से ये साबित हो चुका है कि कार्बन-14 का एक तय मात्रा का नमूना 5,730 वर्षों के बाद आधी मात्रा का हो जाता है. ऐसा रेडियोधर्मिता क्षय के कारण होता है. बता दें कि कार्बन-14 की खोज 27 फरवरी 1940 में मार्टिन कैमेन और सैम रुबेन ने कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी रेडियेशन प्रयोगशाला बर्कले में की. जब कार्बन का अंश पृथ्वी में दब जाता है, तब कार्बन-14 की रेडियोधर्मिता के कारण कमी होती रहती है. धरती में दबे कार्बन में उसके दूसरे आइसोटोप के साथ अनुपात जानकर उसके दबने की उम्र का पता किया जा सकता है.
किन चीजों की हो सकती है कार्बन डेटिंग
रेडियो कार्बन डेटिंग तकनीक का आविष्कार 1949 में शिकागो यूनिवर्सिटी के विलियर्ड लिबी और उनकी टीम ने किया था. उन्हें इस खोज के लिए 1960 में रसायन विज्ञान के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया था. उन्होंने कार्बन डेटिंग के जरिये पहली बार लकड़ी की उम्र का पता लगाया था. रेडियो कार्बन डेटिंग का इस्तेमाल कार्बनिक पदार्थों पर ही किया जा सकता है. इसके जरिये लकड़ी, चारकोल, बीज, बीजाणु, पराग, हड्डी, चमड़े, बाल, फर, सींग, रक्त अवशेष, मिट्टी, शैल, कोरल, चिटिन, बर्तन, भित्ति चित्र, पेपर और पार्चमेंट की उम्र का पता लगाया जा सकता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, पत्थर और धातु की कार्बन डेटिंग नहीं की जा सकती है. दरअसल, उस वस्तु की उम्र का ही पता लगाया जा सकता है, जिसमें कार्बन हो. इसीलिए कथित शिवलिंग की उम्र का पता लगाने के लिए कार्बन डेटिंग के इस्तेमाल पर सवाल उठ रहे हैं.
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पहले प्रकाशित : 21 जुलाई, 2023, 20:21 IST