गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले.
यूं तो यह गजल फैज अहमद फैज ने लिखी है मगर हममें से अधिकांश लोग जब भी इस शेर का जिक्र मेहदी हसन की गजल के रूप में ही करते हैं. यही वह गजल है जिससे मेहदी हसन की आवाज ने लोकप्रियता का आसमान छूआ था. आज जब मेहदी हसन इस दुनिया में नहीं है और उनकी गजलें उनके न होने का अहसास नहीं होने देती मगर फिर भी उन्हें लाइव कार्यक्रम में सामने बैठ कर सुनने का रूहानी आनंद सभी खूब याद करते हैं और तब उनके न होने की कसक से भर कर यही कहते हैं, ‘उस्ताद, चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले.’
18 जुलाई को मौसकी के चाहने वाले मेहदी हसन को याद करते हैं क्योंकि यह उनका जन्मदिन है. 18 जुलाई 1927 को राजस्थान के लूना नामक गांव में जन्मे मेहदी हसन आज होते तो 96 बरस के होते. हालांकि, 1957 से 1999 तक गायकी की दुनिया में अपना सिक्का जमाने वाले मेहदी हसन ने गले के कैंसर की वजह से 80 के दशक में फिल्मों में गाना बंद कर दिया था. वे मौसिकी की दुनिया से लगभग 12 साल तक दूर रहे और फिर 13 जून 2012 को वे इस दुनिया से कूच कर गए. उनके न गाने के इतने बरसों बाद भी उनकी आवाज का जादू हम सब पर वैसा ही बना हुआ है जैसा बरसों पहले था.
इस असर का कारण जानने के लिए हमें सुरों की मकबूल यात्रा को जानना होगा. संगीतकारों के परिवार में जन्मे मेहदी हसन को पिता उस्ताद अजीम खान और चाचा उस्ताद इस्माइल खान ने कम उम्र में ही संगीत की शिक्षा देनी शुरू कर दी थी. घर में मिली शिक्षा के चलते युवा होते-होते मेहदी हसन की गायिकी को पसंद किया जाने लगा था. उनकी गायिकी से प्रसन्न होकर राज घरानों से परिवार को संरक्षण भी मिला लेकिन फिर बंटवारे का वक्त आ गया. 1947 में बीस साल के मेहदी हसन अपने परिवार के साथ पाकिस्तान चले गए. मुफिलिसी के दौर में उन्हें साइकल की एक दुकान में बतौर मैकेनिक काम करना पड़ा, कार और ट्रैक्टर की भी मरम्मत की. मगर मन तो संगीत में रमा था और किसी तरह संगीत की राह भी खुल गई. लगभग 10 बरस के आर्थिक संसाधन जुटाने की जद्दोजहद के बाद 1957 में उन्हें रेडियो पाकिस्तान पर गाने का मौका मिला. शुरुआत में वह ठुमरी गाते थे, जिसे काफी पसंद किया गया. फिर श्रोताओं का मन भांपते हुए उन्होंने गजल गायकी को अपनाया तो वे अधिक प्रसिद्ध हो गए. फिल्म ‘फरंगी’ (1964) के लिए फैज अहमद फैज की गजल ‘गुलों में रंग भरे’ को गाने पर उनकी प्रसिद्धि ने दायरे तोड़ दिए.
1947 में देश छोड़ कर गए मेहदी हसन की गजलों ने सीमाओं को तोड़ कर भारत में भी जगह बनाई और यहां उन्हें खूब चाव से सुना गया. भारत से पाकिस्तान गए मेहदी हसन जब पूरी दुनिया में अपनी पहचान बना चुके उसके 31 साल बाद 1978 में फिर अपने मूल वतन भारत यात्रा पर आए. तब उनका दिल खोल कर स्वागत किया गया. प्रशंसकों की दीवानगी की हद यह कि हर शो फुल. हर जगह प्रशंसकों की भीड़. प्रख्यात गीतकार गुलजार ने एक साक्षात्कार में बताया था कि भीड़ से एकांत पाने के लिए मेहदी हसन उनके घर आ जाया करते थे. ऐसी ही एक शाम गुलजार ने अभिनेत्री रेखा की गुलजार से मुलाकात करवाई थी. रेखा भी मेहदी हसन की फेन हैं और आपको याद दिला दूं यूट्यूब पर 1983 में बीबीसी द्वारा लिया गया एक इंटरव्यू मौजूद है जिसमें रेखा अपनी खरज युक्त आवाज में मेहदी हसन की गाई गजल ‘मुझे तुम नज़र से गिरा तो रहे हो गाती देखी और सुनी जा सकती है.
इस यात्रा के बाद से बीमारी का इलाज करवाने भारत आने तक की यात्राओं के दौरान के वक्त में मेहदी हसन की गाई हर गजल पाकिस्तान से भारत पहुंची और सारे भेद भुलाते हुए उन्हें दिल से सुना गया. हमेशा यह जानने की जिज्ञासा रहती है कि दो बड़े कलाकार मिलते हैं तो क्या होता होगा? इस जिज्ञासा पर गुलजार कहते हैं कि दो कलाकार मिलते हैं तो हमेशा कला की बात नहीं करते हैं. मेहदी हसन जब भी भारत आते थे वे गुलजार के घर आते थे. दोनों को पक्का पंजाबी बताते हुए गुलजार कहते हैं कि हम अकसर खाने की बात किया करते थे. वे कहते हैं कि मेहदी हसन उठते-बैठते कहा करते थे, ‘एक झप्पी डालो’. बार-बार झप्पी का अर्थ यही समझा जाना चाहिए कि वे अपने वतन के करीब महसूस करना चाहते थे. यही कारण है कि जब वे अपने गांव लूना पहुंचे थे तो भावविभोर हो मिट्टी में लोट गए थे.
पाकिस्तानी फिल्म ‘जीनत’ की गजल ‘रफ्ता रफ्ता वो मेरे हस्ती का सामां हो गए, पहले जां, फिर जानेजां, फिर जानेजाना हो गए’ हो या अहमद फराज की गजल ‘रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ , आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ’ को खूब खूब पसंद किया गया. किसी के लिए ‘पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है’ गजल मेहदी हसन की प्रतिनिधि गजल है तो कोई ‘केसरिया बालम आओ नी पधारो म्हारे देश’ को सुन कर मेहदी हसन के जरिए राजस्थान की प्रसिद्ध मांड को शिद्दत से जी लेता है.
जहां चाहने वालों ने मेहदी हसन को दिल भर कर मोहब्बत दी वहीं सरकारों ने भी गजल गायकी के लिए कई अवॉर्ड से नवाजा गया था. पाकिस्तान ने उन्हें ‘तमगा-ए-इम्तियाज’, ‘प्राइड ऑफ परफार्मेंस’ और ‘हिलाल-ए-इम्तियाज़’ से नवाजा था. भारत सरकार ने 1979 में उन्हें ‘सहगल अवॉर्ड’ से सम्मानित किया था. मेहदी हसन की गिनती हमेशा उन गायकों व कलाकारों में होगी जिन्होंने सरहदों को तोड़ कर दुनिया मिटाने का काम किया है. उनकी आवाज में यह जादू है कि उन्हें सुनते वक्त हम खुद को वर्तमान में भूल कर अंतस की यात्रा करते हैं और यही वह यात्रा है जिसके लिए कला या संगीत बना है जो हमें अपने अस्तित्व का अहसास करवाती है.
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पहले प्रकाशित : 18 जुलाई, 2023, 4:41 अपराह्न IST