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Twenty One Hour Review: मसाला भात है कन्नड़ फिल्म ट्वेंटी वन अवर्स

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कभी-कभी रात को जब मां को खाना बनाने का मूड नहीं होता था या वो थकी होती थीं तो वो दिन भर की सारी सब्ज़ियों को चावल में पकाकर ‘मसाला भात’ बना देती थी. इसके टेस्ट अच्छा भी हो सकता था और बुरा भी. किसी को उसका स्वाद पसंद था और किसी को नहीं. अमेज़ॉन प्राइम वीडियो पर दिखाई जा रही कन्नड़ फिल्म ट्वेंटी वन अवर्स भी एक तरह का ‘मसाला भात’ है. इसका स्वाद पसंद आ भी सकता है और नहीं भी. इस फिल्म को लेकर कोई भी राय कायम करना एक कठिन सौदा है क्योंकि फिल्म के कुछ हिस्से अच्छे हैं, और कुछ बहुत ही खराब. पुरानी सस्पेंस थ्रिलर और मर्डर मिस्ट्री फिल्मों के बचे खुचे हिस्सों को मिला कर एक फिल्म बनायी गयी जिसमें कलाकार बहुत ही चालू किस्म का अभिनय कर रहे हैं लेकिन पटकथा अच्छी है. नाटकीयता ज़्यादा है तो दृश्य विन्यास अच्छा है. अमूमन फिल्म देखने के बाद ये तय करना आसान होता है कि फिल्म किसी को सुझाई जाए या नहीं. ट्वेंटी वन अवर्स की विडम्बना है कि इसे न तो सुझाया जा सकता है और न ही इसके बारे में बात करना टाला जा सकता है.

ट्वेंटी वन अवर्स एक सस्पेंस फिल्म है, जिसमें एक लड़की गायब हो जाती है. उसकी ज़िन्दगी से जुड़े हर शख्स को पुलिस एक होटल में ठहरा कर उनसे पूछताछ करती है. शक के घेरे में हर शख्स है. लड़की के माता पिता, लड़की का पति, लड़की की सास, लड़की का एक्स-बॉयफ्रेंड, लड़की के पिता का दोस्त, एक अदद मंत्री. अभी आधिकारिक तौर पर पुलिस ने जांच नहीं शुरू की है लेकिन लड़की के पिता के दोस्त के कहने पर मंत्रीजी ने अपने एक विश्वासपात्र क्राइम ब्रांच अधिकारी को सबसे जरा ख़ुफ़िया किस्म की पूछताछ करने को भेजा है. हर किसी शख्स से बात करते करते वो उनके कोई न कोई राज उजागर करता रहता है ताकि वो अपना जुर्म कबूल कर लें. फिर खबर आती है कि लड़की की लाश ड्रग माफिया की कुछ लाशों के साथ मिली है. पूरी कहानी का सुर बदल जाता है और सभी को छोड़ दिया जाता है. क्या लड़की सचमुच मर चुकी है, उसकी लाश के साथ ड्रग माफिया की लाशें क्यों मिली, क्या क्राइम ब्रांच इंस्पेक्टर को कोई ऐसी बात पता है जो किसी को नहीं पता. इन सबका मसालेदार भात है ये फिल्म ट्वेंटी वन अवर्स.

कन्नड़ अभिनेता धनञ्जय इस फिल्म में चावल हैं यानि सब कुछ यही हैं. क्राइम ब्रांच के ऑफिसर बने हैं, मंत्रीजी के सभी प्रकार के काम करने वाले और उनकी विशेष अनुकम्पा पाने वाले. धनञ्जय को कन्नड़, तेलुगु, तमिल फिल्मों में काम मिलता रहता हैं. हिंदी दर्शक उन्हें जॉली रेड्डी के किरदार में अल्लू अर्जुन की बहुचर्चित फिल्म पुष्पा में देख चुके हैं. धनञ्जय की कद काठी फिल्म के हीरो की तरह है और उनका अभिनय भी काफी अच्छा है. कन्नड़ फिल्मों में जिस तरह हीरो का नाटकीय होना अनिवार्य है, धनञ्जय उस जगह एकदम फिट बैठते हैं. उनके किरदार के बारे में फिल्म में क्लाइमेक्स में जो खुलासा होता है वहां वो सही इम्पैक्ट नहीं डाल पाए हैं. उसके अलावा पूरी फिल्म में धनञ्जय छाये हुए हैं. शुरुआत में वो एक बेहतरीन डिटेक्टिव की तरह नज़र आये हैं और जैसे जैसे फिल्म आगे बढ़ती है उनकी सनक हावी होने लगती है. मलयालम फिल्मों की अभिनेत्री दुर्गा कृष्णा को फिल्म की हीरोइन कहा जा सकता है क्योंकि फिल्म में गायब होने वाली लड़की का किरदार इन्ही का है और सारे फिल्म इन्हीं को ढूंढने में खर्च हो जाती है. स्क्रीन टाइम कम है लेकिन उस से ज़्यादा की गुंजाईश भी नहीं थी. धनञ्जय के अलावा जिन कलाकारों ने अच्छा काम किया है उसमें हैं सुदेव नायर (पति की भूमिका में), रविकुमार राव (पिता के दोस्त की भूमिका में) और राहुल माधव (एक्स बॉय फ्रेंड की भूमिका में).

निर्देशक जयशंकर पंडित मूलतः एड फिल्म बनाते हैं. ट्वेंटी वन अवर्स उनकी पहली फिल्म है और इस वजह से वे पारम्परिक फॉर्मूलों से दूर रहने की कोशिश कर रहे थे लेकिन कन्नड़ फिल्म है तो थोड़ी तो लाउड बनेगी ही. अच्छा है कि फिल्म में नाच गाना नहीं रखा गया है. जयशंकर ने ये फिल्म एक सत्य घटना पर लिखी और निर्देशित की है. इसके बावजूद, कहानी में ड्रामा की काफी जगह है. कैमरा संभाला तो एस थिरु ने है लेकिन सिनेमेटोग्राफी थोड़ी अजीब लगी है. लगभग 60% फिल्म में क्लोज और मिड शॉट रखे हैं और 80% फिल्म इंडोर में है. फिल्म का बजट जरूर कम हो जाता है इस से लेकिन जो इम्पैक्ट आना चाहिए वो नहीं आ पाया। मिस्ट्री है, लेकिन कार चेस नहीं है, लड़की को तलाश करने की कोई कोशिश नहीं है बल्कि सिर्फ इंटरोगेशन पर फिल्म में फोकस है. विक्रम वेदा के एडिटर रिचर्ड केविन ने फिल्म एडिट की है लेकिन उनके पास भी बहुत कुछ खेलने को था नहीं फिर भी फिल्म का लगभग 90% हिस्सा काफी रोचक और रोमांचक लगता है.

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ट्वेंटी वन अवर्स एक एक्सपेरिमेंटल किस्म की फिल्म है. धनञ्जय के लिए भी इस तरह की फिल्म करना एक एक्सपेरिमेंट ही है और निर्देशक की तो पहली ही फिल्म है. अगर छोटी मोटी कमियों को नजरअंदाज करें, और मसलों के अनुपात की चिंता न हो तो ये मसाला भात आपको पसंद आ सकती है.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

टैग: अमेज़न प्राइम वीडियो, छवि समीक्षा

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