Home Film Review Mai Review: अपनी बेटी के कातिलों से बदला लेने की थोड़ी अलग...

Mai Review: अपनी बेटी के कातिलों से बदला लेने की थोड़ी अलग सी कहानी

104
0
Advertisement

‘एनएच 10’, ‘फिल्लौरी’, ‘परी’ और’ बुलबुल’ जैसी लीक से हटकर चलती फिल्मों और पाताल लोक जैसी बेहतरीन वेब सीरीज के निर्माता क्लीन स्लेट फिल्म्स का नाम देख कर एक बात शर्तिया तौर पर मन में आती है कि ‘माई’ जरूर एक लीक से हट के वेब सीरीज होगी. कुछ हद तक दावा ठीक भी निकलता है. नेटफ्लिक्स पर रिलीज ये ता वेब सीरीज एक बार में बैठ कर देखने वाली वेब सीरीज तो है लेकिन ये पाताल लोक जैसी यादगार नहीं बन पाएगी. कई वजहें हो सकती हैं जिनके बावजूद एक बात तो इस वेब सीरीज में दर्शकों को पता चलती है कि साक्षी तंवर वो अभिनेत्री है जो अपने दिल की रानी है और सिर्फ वही रोल करती है जो उन्हें पसंद आते हैं और समझ आते हैं. इस बात की तस्दीक उनकी प्रिय मित्र एकता कपूर भी करती हैं. माई इस वेब सीरीज में साक्षी तंवर की अभिनय प्रतिभा का एक बार फिर कायल बना दिया है. ऐसा नहीं है कि कहानी घर घर की या बड़े अच्छे लगते हैं में साक्षी का काम प्रशंसा के लायक था लेकिन माई में साक्षी ने अपनी पुरानी सूती साड़ियों, बिना मेकअप और बिखरे बालों वाले लुक की मदद से एक विश्वास योग्य किरदार रचा है. पटकथा में कमी होने की वजह से कहानी की नाटकीयता से दर्शक कोई तारतम्य नहीं बिठा पाते और इस वजह से माई का हश्र पाताल लोक जैसा नहीं हो पाता।

माई एक अच्छी वेब सीरीज है. कुल जमा 6 एपिसोड हैं और वो तेज़ी से चलते हैं इसलिए बोरियत नहीं होती लेकिन इस तरह की कहानी में मुख्य किरदार के साथ जो इमोशनल अटैचमेंट होना चाहिए वो हुआ नहीं क्योंकि इस तरह की कहानी पर हम पिछले कुछ सालों में दो फिल्में देख चुके हैं. एक रवीना टंडन की फिल्म ‘मातृ’ और एक श्रीदेवी की फिल्म ‘मॉम’. वैसे देखें तो माई नाम भी इन्हीं का पर्यायवाची है. साक्षी तंवर एक ओल्ड ऐज होम में नर्स है और अपने जेठ के क्लिनिक में भी काम करती हैं. उसका पति (विवेक मुश्रान) इलेक्ट्रीशियन का काम करता है. बेटी (वामिका गब्बी) डॉक्टर है. साक्षी और विवेक ने अपना बेटा, विवेक के बड़े भाई को गोद दिया था क्योंकि उनकी कोई संतान नहीं थी और उनके काफी एहसान भी थे साक्षी-विवेक पर. एक दिन अचानक साक्षी के देखते देखते उसकी बेटी का एक्सीडेंट हो जाता है एक ट्रक से और वो गुज़र जाती है. अपने दर्द से अकेले जूझती साक्षी को पता चलता है कि शायद उसकी बेटी का एक्सीडेंट नहीं कत्ल किया गया था. अपने सीमित संसाधनों की मदद से वो इसकी तहकीकात करने की कोशिश करती है. इस सफर में उसे मिलते हैं धूर्त नेता, उनकी रखैल, एडमिशन माफिया, दवाई घोटाला करने वाले, हत्यारे और कुख्यात अपराधी. एक मां अपनी बेटी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहती है लेकिन क्या वो सच का सामना करने के लिए तैयार है? इस वेब सीरीज में बिना फालतू नाटकीयता के भावनाओं के बदलते ही रिश्तों के बदलने के छोटे छोटे किस्सों का समावेश किया गया है.

ओटीटी की दुनिया थोड़ी अजीब है. पारम्परिक है भी और नहीं भी. ओटीटी की वजह से जहाँ एक ओर कई पुरानी फिल्मों को देखने का अवसर मिलता है वहीँ दूसरी ओर बिलकुल ही नए विषयों पर बनी फिल्में और वेब सीरीज भी मिल जाते हैं. न केवल भारतीय भाषाओँ की बल्कि दुनिया भर की अन्य भाषाओँ का भी कॉन्टेंट अब ओटीटी की वजह से सहज और सुलभ रूप से उपलब्ध है. साक्षी के करियर की उम्र लम्बी है लेकिन करियर में काम बड़ा ही सेलेक्टिव है. जब तक रोल समझ नहीं आता, साक्षी किसी भी रोल को हां नहीं करती. ओटीटी में साक्षी का मुख्य भूमिका में ये पहला कदम है. गज़ब का आत्मविश्वास, ग़ज़ब का डर, गजब का साहस और गजब का भय, साक्षी एक मां के तौर पर लाजवाब लगी हैं. रवीना और श्रीदेवी से भी बेहतर काम किया है. अपने जेठ के रहमोकरम पर पलने वाली एक निम्न मध्यम वर्ग की स्त्री जिसका पति भी अपने भाई से बेहतर नहीं था और जिसकी बेटी भी अपनी पहचान के लिए संघर्षरत थी, साक्षी ने किरदार के साथ पूरा न्याय किया है. विवेक मुश्रान का किरदार भी बेहतरीन है. निहायत घोंचू किस्म का, दब्बू छोटा भाई जो अपने बड़े भाई के दम पर ज़िन्दगी चला रहा है. एक पल के लिए लगता है कि पूरे गेम के पीछे विवेक का हाथ है लेकिन उनका किरदार इतना कमज़ोर है कि ये ख्याल निकालना ही पड़ता है. राइमा सेन और प्रशांत नारायण ने किरदार लिखे तो ठीक गए थे लेकिन उन्होंने किरदारों से बाहर निकलने की गलती कर दी. प्रशांत नारायण तो फ़िल्मी भी हो गए थे. मुख्य विलन के तौर पर अनंत विधात शर्मा से अपने आप ही घिन सी होने लगती है.

कहानी जिस मोड़ पर आ कर ख़त्म की गयी है उस से लगता है कि दूसरा सीजन भी आएगा हालांकि पहला सीजन इतना अच्छा भी नहीं है कि दूसरे सीजन की प्रतीक्षा की जाए. नेटफ्लिक्स ने पहले भी कई बार ऐसा किया है, कमज़ोर सीजन वाली वेब सीरीज बीच में ही बंद कर दी हो. लिखने वाली टीम में अतुल मोंगिया, तमाल सेन, सृष्टि रिंदानी, अमिता व्यास और विश्रुत सिंह शामिल थे, और इसके बावजूद इस सीरीज में कोई याद रखने वाले मोमेंट नहीं बन पाए. मेलोड्रामा से बचने की कोशिश में ये वेब सीरीज कहीं जरुरत से ज़्यादा ही सरल बन गयी. प्रशांत नारायण को दो अलग अलग रोल में भी रखा गया लेकिन पहला रोल ज़्यादा जल्दी ख़त्म हो गया और दूसरा कुछ ज़्यादा ही फ़िल्मी किस्म का हो गया जिस वजह से कहानी की विश्वसनीयता पर संदेह होने लगता है. रवि किरण अय्यगरी का कैमरा बहुत कुछ बोलने की कोशिश करता है लेकिन साक्षी तंवर के किरदार को किसी ऊंचाई पर नहीं ले जाता जिस वजह से सिनेमेटोग्राफी का जो मज़ा सेक्रेड गेम्स या पाताल लोक जैसी वेब सीरीज में आया है वो माई में पूरी तरह से गायब रहा. यही बात मानस मित्तल की एडिटिंग के बारे में भी कही जा सकती है. सस्पेंस नहीं बना, किसी एक सीन को इतनी प्राथमिकता ही नहीं दी गयी की दर्शक उसे किसी खास मौके की वजह से याद रख सकें.

Advertisement

माई वैसे तो एक अच्छी वेब सीरीज है लेकिन ये बेहतरीन नहीं बन पायी. दर्शकों ने इसके पहले भी कई वेब सीरीज को इसी वजह से नकार दिया है. थोड़े से ड्रामा की उम्मीद की जानी चाहिए थे लेकिन वो कहीं रह गया. छोटी वेब सीरीज है. अगर आप साक्षी तंवर की अदाकारी का एक नया रंग देखना चाहते हैं तो इसे जरूर देखिये लेकिन बहुत उम्मीद लगा कर मत देखिएगा. उम्मीद की रेस में इसे सिर्फ सांत्वना पुरस्कार ही मिलेगा.

डिटेल्ड रेटिंग

कहानी :
स्क्रिनप्ल :
डायरेक्शन :
संगीत :

टैग: छवि समीक्षा, NetFlix

Source link

Previous articleLondon files Review: न तो लंदन से और न फाइल्स से, ‘लंदन फाइल्स’ का लेना देना किसी से नहीं
Next articleRunway34 Review: कुर्सी की पेटी बांध लीज‍िए, अजय देवगन की एंटरटेनमेंट फ्लाइट ‘Runway34’ लैंड कर गई है

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here